Thursday, July 22, 2010

अब कहां सुनने को मि‍लेगी 'मुरली' की तान ...


आज मुथैया मुरलीधरन ने टेस्‍ट क्रि‍केट से संन्‍यास ले लि‍या। इसके साथ ही एक पूरे युग का अंत हो गया। मुरली ने बीते दो दशकों तक श्रीलंकाई स्‍पि‍न गेंदबाजी की कमान संभाली। जातीय हिंसा और तनावग्रस्‍त मुल्‍क के बीच अपने लि‍ये रास्‍ता बनाते चले गये मुरली। एक्‍शन को लेकर वि‍वाद और आलोचनाओं के बीच लगातार आगे बढ़ता गये मुरली। मुथैया मुरलीधरन को भले ही उनके आलोचक रि‍कॉर्डों के लायक न मानते हों, लेकि‍न इन सबके बावजूद उनकी उपलब्‍धि‍यों को दरकि‍नार नहीं कि‍या जा सकता। उन्‍होंने एक पूरे युग को अपने सामने जवान होते देखा। श्रीलंका में वि‍केट लेने वाले गेंदबाज तो कई और भी आ सकते हैं, लेकि‍न मुथैया मुरलीधरन जैसा कोई दूसरा गेंदबाज आना मुश्‍कि‍ल है।

एक शानदार करि‍यर की इससे शानदार वि‍दाई हो ही नहीं सकती थी। मुथैया मुरलीधरन गॉल के क्रि‍केट मैदान से रुखसत लेंगे, तो अपने साथ दोहरी खुशी लि‍ये हुये। खुशी क्रि‍केट इति‍हास के पन्‍नों में दर्ज होने की। खुशी उस शि‍खर तक पहुंचने की, जो भावी पीढ़ि‍यों के लि‍ये हमेशा एक चुनौती रहेगा। खुशी टेस्‍ट क्रि‍केट के इति‍हास में 800 वि‍केट लेने वाले पहले गेंदबाज बनने की। और इन सबसे बढ़कर टीम की जीत के साथ टेस्‍ट क्रि‍केट को अलवि‍दा कहने की। हालांकि‍, मुरलीधरन ने अभी क्रि‍केट को पूरी तरह से अलवि‍दा नहीं कहा है। उन्‍होंने साफ कर दि‍या है कि‍ अगर टीम प्रबंधन चाहेगा, तो वे 2011 में भारतीय उपमहाद्वीप में होने वाले वि‍श्‍व कप में खेल सकते हैं। लेकि‍न, क्‍या सच में श्रीलंकाई प्रबंधन उन्‍हें वि‍श्व कप में मौका देगा यह अपने आप में एक बड़ा सवाल है।

बीते कुछ समय से मुरली के प्रदर्शन पर भी सवाल उठाये जाने लगे थे। आलोचक मुरली की गेंदबाजी की धार को अब कुंद बताने लगे थे। लेकि‍न, वे लगातार खुद को साबि‍त कि‍ये जा रहे थे। साथ ही रंगना हेराथ, सूरज रणदीप और अजंथा मेंडि‍स के रूप में श्रीलंका में स्‍पि‍न गेंदबाजी की एक बि‍लकुल नयी पौध भी मुरली की परंपरा को आगे बढ़ाने के लि‍ये तैयार हो रही है। ऐसे में, मुरली ने उन पर गहरे और तीक्ष्‍ण सवाल उठने से पहले ही संन्‍यास लेने का सही फैसला कि‍या।

वैसे, रि‍कॉर्डों की बात की जाये, तो अपने समकालीन हर गेंदबाज से बीस ही दि‍खायी पड़ते हैं मुरली। क्रि‍केट इति‍हास के पहले और अब तक के इकलौते गेंदबाज जि‍न्‍होंने 1000 से ज्‍यादा वि‍केट लि‍ये हैं। सत्रह अप्रैल 1972 को कैंडी में जन्में मुलरीधरन ने 133 टेस्ट मैचों में 22.72 की औसत से 800 विकेट चटकाये। प्रज्ञान ओझा को महेला जयवर्द्धने के हाथों कैच कराकर 800 टेस्ट विकेट का आंकड़ा छूने वाले दुनिया के पहले गेंदबाज बने। मुरली की इस कामयाबी ने प्रज्ञान ओझा का नाम भी इति‍हास में दर्ज करा दि‍या। अब जब भी मुरली के नाम का जि‍क्र होगा, उसके साथ-साथ ओझा का नाम भी लि‍या ही जायेगा। मुरली की कामयाबी की कहानी सिर्फ टेस्‍ट क्रि‍केट तक ही सीमि‍त नहीं है। यह कहानी वनडे में दोहरायी गयी , यहां भी वे भीड़ में सबसे आगे नजर आये। 337 वनडे मैचों में 515 वि‍केट का आंकड़ा अपने आप में क्रि‍केट के इस रूप में भी उनकी कामयाबी की कहानी कहता है।

लेकि‍न, क्‍या मुरली की कामयाबी को केवल वि‍केटों के आंकड़ों में तोलकर देखना सही होगा। रन प्रति‍ ओवर और स्‍ट्राइक रेट का चश्‍मा चढ़ाकर मुरली की फि‍रकी को घूमते देखना क्‍या सही होगा। इन सबके बीच मुरलीधरन के घरेलू परि‍पेक्ष्‍य को समझना जरूरी है। मुरलीधरन एक ऐसे देश से आते हैं, जो बीते कई दशकों से जातीय हिंसा का शि‍कार रहा। अपनी टीम में वे लंबे समय तक अकेले तमि‍ल खि‍लाड़ी रहे। एक ऐसा देश जहां सिंहली और तमि‍ल एक दूसरे के खून के प्‍यासे रहे, वहां मुरलीधरन को दोनों ने सि‍र-आंखों पर बि‍ठाया। जातीय हिंसा के बीच मुरली दोनों के बीच एक अनदेखे से पुल का काम करते रहे। मुरली की कामयाबी का जश्‍न पूरे समाज ने मि‍लकर मनाया। इसे भी अजब संयोग ही कहा जायेगा कि‍ मुरली की वि‍रासत संभालने वाले अजंथा मेंडि‍स उसी श्रीलंकाई सेना में काम करते हैं, जो अभी कुछ समय पहले तक लि‍ट्टे से युद्ध लड़ रही थी।

चलि‍ये, अब वापस मुरली के क्रि‍केट पर लौटते हैं। मुरली का क्रि‍केटीय जीवन भी कभी वि‍वादों से दूर नहीं रहा। भले ही उनकी कामयाबी बहुत बड़ी हो, लेकि‍न ऐसे भी लोगों की कमी नहीं जो मुरली की कामयाबी को अधूरा बताते हैं। अपने एक्‍शन को लेकर मुरली हमेशा वि‍वादों में रहे। 1995-96 के ऑस्‍ट्रेलि‍याई दौरे पर अंपायर डेरल हेयर ने पहले-पहल मुरली के एक्‍शन को संदि‍ग्‍ध बताया। पहली बार मुरली स्‍कैनर पर थे। बॉक्‍सिंग डे टेस्‍ट मैच में मुरली की गेदबाजी को तीन ओवरों में सात बार नो बॉल करार दि‍या गया। अंपायर हेयर का मानना था कि‍ 23 साल के मुरली का एक्‍शन क्रि‍केट की नि‍यमों पर खरा नहीं उतरता। मैदान में मौजूद 55 हजार से ज्‍यादा लोग मुरली के गेंद फेंकने से पहले ही 'नो बॉल' चि‍ल्‍लाने लगते। मुरली के लि‍ये हालात बदतर होते जा रहे थे। मुरली खुद बताते हैं कि‍ आलोचनाओं से तंग आकर उन्‍होंने एक बार को ऑफ स्‍पि‍न गेंदबाजी छोड़कर लेग स्‍पि‍न गेंदबाजी करने तक का मन बना लि‍या था। ऐसे बुरे वक्‍त में कप्‍तान अर्जुन राणातुंगा ने उनका भरपूर साथ दि‍या।

1996 और 1999 में आईसीसी के परीक्षणों में मुरली के एक्‍शन को सही पाया गया। 2004 में एक बार फि‍र मुरली के एक्‍शन पर सवाल उठे। इस बार नि‍शाने पर उनका हथि‍यार 'दूसरा' थी। परीक्षण में पाया गया कि‍ अधि‍कतर स्‍पि‍न गेंदबाज 5 डिग्री कोहनी मोड़ने पर खरे नहीं उतरते। इसके बाद 5 डि‍ग्री को 15 डिग्री कर दि‍या गया और मुरली का एक्‍शन नि‍यमों में फि‍ट हो गया। क्रि‍केट जगत में आईसीसी के इस फैसले की कड़ी आलोचना भी की गयी।

मुरली की तमाम उपलब्‍धि‍यों के बावजूद उनके आलोचकों की संख्‍या में कभी कमी नहीं आयी। ऑस्‍ट्रेलि‍यन अंपायर रॉस इमर्सन, जि‍न्‍होंने 1999 में मुरली की गेंदों को 'चक' करार दि‍या था, आज भी अपने फैसले को सही मानते हैं। इमर्सन मानते हैं कि‍ मुरली सही मायनों में रि‍कॉर्ड के हकदार ही नहीं हैं। वे कहते हैं कि‍ मुरली का एक्‍शन नि‍यमों के हि‍साब से सही नहीं ठहराया जा सकता। इससे पहले 1996 में भी इमर्सन मुरली की गेंदबाजी एक्‍शन पर सवाल उठा चुके थे। इमर्सन की नजर में शेन वॉर्न मुरली से कहीं बेहतर गेंदबाज हैं और उन दोनों में कि‍सी तरह की कोई तुलना नहीं की जा सकती।

पूर्व भारतीय कप्‍तान और दि‍ग्‍गज ऑफ स्‍पि‍नर बि‍शन सिंह बेदी भी मुरली के सबसे बड़े आलोचकों में से रहे हैं। बेदी कई बार और कई मंचों पर मुरली को चकर बता चुके हैं। बेदी ने अभी हाल ही में यह कहा है कि‍ अब मुरली के संन्‍यास लेने के बाद आईसीसी को गेंदबाजी को लेकर अपने नि‍यमों को लेकर पुर्नवि‍चार करना चाहि‍ये।

लेकि‍न, लंबे समय तक मुरली के प्रति‍द्वंदी रहे दि‍ग्‍गज शेन वॉर्न का हालि‍या बयान मुरली के लिये सुखद समाचार लेकर आया। वॉर्न ने कहा, मुरली कभी चकर नहीं थे। वॉर्न और मुरली की तुलना कई बार की गयी और आंकड़ों के तराजू में रखकर की गयी। लेकि‍न, सही मायनों में दोनों अपनी-अपनी दि‍ग्‍गज और क्रि‍केट के महानतम स्‍पि‍न गेंदबाजों के तौर पर याद कि‍ये जायेंगे।

आज मुरली आखि‍री बार टेस्‍ट क्रि‍केट के उनके जेहन में अपने 19 साल लंबे टेस्‍ट क्रि‍केट की सभी छवि‍यां ताजा हो रही होंगी। 1996 के वि‍श्व कप जीतने की खुशी और एक्‍शन को लेकर उठाये गये सभी सवाल, सब कुछ आंखों के सामने बॉयोस्‍कोप की तरह चल रहा होगा। साथी खि‍लाड़ि‍यों के कंधे पर सवार होकर मुरली आखि‍री बार दर्शकों का अभि‍नंदन स्‍वीकार कि‍या। इसके बाद शायद हमें यह कहने का मौका कभी न मि‍ले ' मुरली की तान पर नाचे बल्‍लेबाज'

Monday, May 10, 2010

आईपीएल को मत कोसो वि‍श्व कप में हार के लि‍ये

वेस्‍टइंडीज के हाथों हारते ही टीम इंडि‍या का वि‍श्व कप टी20 2010 में सफर लगभग समाप्‍त हो गया। हर क्रि‍केट प्रेमी की तरह मेरे लि‍ये भी यह नि‍राशा की बात थी। आखि‍र हमें अपनी टीम को हारते देख हमेशा ही दुख होता है। हम अपनी टीम को जीतते देखना चाहते हैं और जब यह आशा पूरी नहीं होती, तो दुख होना लाजमी है। क्रि‍केट में हमारे देश के करोड़ों लोगों की भावनायें जुड़ी होती हैं। हार, उन भावनाओं को ठेस पहुंचाती है।

लेकि‍न, हैरानी तब हई जब हार के कारणों की वि‍वेचना करते हुये टीवी चैनल आईपीएल पर जा पहुंचे। वि‍श्व कप की हार के लि‍ये आईपीएल को जि‍म्‍मेदार ठहराया जाने लगा। यह बात अखरने लगी। मुझे लगता है कि हम आईपीएल को बेकार में इस सबके लि‍ये कोस रहे हैं। अगर विश्व कप में टीम इंडि‍या के खराब प्रदर्शन के लि‍ये आईपीएल जि‍म्‍मेदार है, तो हमें यह नहीं भूलना चाहि‍ये कि दूसरी कई टीमों के खि‍लाड़ी भी इस टूर्नामेंट का हि‍स्‍सा थे। ऑस्‍ट्रेलि‍या के 7-8 खि‍लाड़ी अलग-अलग टीमों में खेल रहे थे। इंग्‍लैंड, दक्षि‍ण अफ्रीका, वेस्‍टइंडीज, न्‍यूजीलैंड श्रीलंका आदि सभी देशों के खि‍लाड़ी आईपीएल में थे। इन सब टीमों का प्रदर्शन आईपीएल में अच्‍छा रहा है। दूसरी ओर पाकि‍स्‍तान का एक भी खि‍लाड़ी आईपीएल में नहीं था और अंति‍म चार में पहुंचने की उसकी उम्‍मीदें भी अपने प्रदर्शन से ज्‍यादा भाग्‍य के भरोसे टि‍की रहीं।

ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्‍या टीम इंडि‍या की इस गत का जि‍म्‍मेदार आईपीएल को ठहराना उचि‍त है। नहीं, टीम इंडि‍या का खुद का प्रदर्शन इसके लि‍ये जि‍म्‍मेदार है। ऑस्‍ट्रेलि‍या के खि‍लाफ शॉर्ट पि‍च गेंदों का सामना करते हुये भारतीय बल्‍लेबाज कि‍सी स्‍कूली टीम की तरह नजर आ रहे थे। उस मैच में गेंदबाजों से ज्‍यादा बल्‍लेबाजों का अप्रोच टीम की हार के लि‍ये जि‍म्‍मेदार रहा। रोहि‍त शर्मा ने उस मैच में दि‍खाया था कि‍ अगर टि‍ककर बल्‍लेबाजी की जाती, तो उस वि‍केट पर रन बनाने इतने मुश्कि‍ल भी नहीं थे। वेस्‍टइंडीज के खि‍लाफ भी बल्‍लेबाजी के साथ-साथ खराब फील्‍डिंग का भी योगदान रहा। रवींद्र जडेजा दोनों मैचों में अच्‍छा नहीं खेल पाये। उनकी गेंदबाजी पर लगातार छक्‍के पडे और उन्‍होंने कुछ महत्‍वपूर्ण कैच भी छोड़े। बतौर बल्‍लेबाज भी उन्‍होंने कुछ नहीं कि‍या। वे तो इस बार आईपीएल में नहीं खेले, आखि‍र उन्‍हें क्‍या हो गया था।

दूसरी ओर आईपीएल में खेलते समय इंग्‍लैंड के धाकड़ बल्‍लेबाज केवि‍न पीटरसन ने कहा था कि आईपीएल में खेलने से उन्‍हें फायदा हो रहा है। केपी ने इसके साथ ही इंग्‍लि‍श गेंदबाजों के आईपीएल में न खेलने पर दुख जताया था। श्रीलंका की ओर से शानदार बल्‍लेबाजी कर रहे महेला जयवर्द्धने को अपनी फार्म आईपीएल में ही मि‍ली। क्रि‍स गेल भी आईपीएल में थे और केरॉन पोलार्ड भी। श्रीलंकाई टीम के ज्‍यादातर खि‍लाड़ी इस टूर्नामेंट में आने से पहले आईपीएल में खेल रहे थे। इंग्‍लैंड की टीम बांग्‍लादेश में क्रि‍केट खेल रही थी और ऑस्‍ट्रेलि‍या और न्‍यूजीलैंड भी क्रि‍केट खेलने में व्‍यस्‍त थे।
श्रीलंकाई टीम को चारों खाने चि‍त करने वाली ऑस्‍ट्रेलि‍याई टीम के 11 में सात खि‍लाड़ी आईपीएल में अलग-अलग टीमों का हि‍स्‍सा थे। केवल, मि‍शेल जॉनसन, ब्रेड हैडि‍न, स्‍टीव स्‍मि‍थ और माइकल क्‍लार्क ही आईपीएल में नहीं खेले थे। ऐेसे में खि‍लाड़ि‍यों के खराब प्रदर्शन का ठीकरा आईपीएल के सि‍र फोड़ना कहां तक जायज है। वि‍श्व कप में हार की वजह शॉर्ट पि‍च गेंदों के खि‍लाफ बल्‍लेबाजों की नाकामी है। काफी समय से शॉर्ट पि‍च गेंदें भारतीय उपमहाद्वीपीय टीमों की कमजोरी मानी जाती है। इसमें सुधार करने की जरूरत है।

यहां हमें यह भी देखना चाहि‍ये कि‍ आईपीएल और वि‍श्व कप के फॉरमेट में काफी अंतर है। आईपीएल में हर टीम को 14 मैच खेलने थे और टूर्नामेंट में वापसी के मौके ज्‍यादा थे। चेन्‍नई सुपरकिंग्‍स की टीम लगातार चार मैच हार कर भी वापसी कर सकी और चैंपि‍यन बनी। वि‍श्व कप के सुपर आठ में एक मैच हारते ही मुश्कि‍ल शुरु हो जाती है। तो, बेकार में आईपीएल के रूप में आसान शि‍कार ढूढ़ने की कोशि‍श करने की बजाये, बड़ी तस्‍वीर देखनी चाहि‍ये।