Thursday, December 15, 2011

सहवाग का बेखौफ अंदाज

'ही इज फीयरलैस'. वीरेंद्र सहवाग के बारे में यह बात सुनील गावस्‍कर ने कही थी. गावस्‍कर ने सहवाग की किसी एक पारी को देखकर ये बात नहीं कही होगी. सहवाग का पूरा करियर ही बेधड़क और बिंदास बल्‍लेबाजी की तस्‍वीर है. इंदौर के होलकर मैदान पर भी जो कुछ हुआ वो सहवाग के उसी अंदाज का एक और रंग है. पिच, मैच के हालात और गेंदबाज से बेपरवाह होकर बल्‍लेबाजी करते हैं सहवाग. कोचिंग की किताबों से इतर अपने ही खुद की ईजाद की गयी तकनीक में. बिल्‍कुल किसी मस्‍त दरिया की तरह जो जानता है केवल अपने ही अंदाज में बहना.

नौ महीने बाद निकला है सहवाग के बल्‍ले से यह वनडे शतक. सहवाग जैसे बल्‍लेबाज के लिए बहुत लंबा अर्सा होता है नौ महीने.
इसी साल फरवरी में बांग्‍लादेश के खिलाफ सहवाग ने 175 रनों की पारी खेली थी. लेकिन, उसके बाद से उनका बल्‍ला शांत था. लेकिन, इंदौर में शायद वे सारी पुरानी कसर पूरी करना चाहते थे.

भारतीय पारी के 44वें ओवर की तीसरी गेंद पर सहवाग के बल्‍ले से निकला ऐतिहासिक चौका. सहवाग के बल्‍ले से टकराकर गेंद थर्डमैन बाउंड्री से बाहर गई और स्‍टेडियम और टीवी से चिपके दर्शक खुशी से झूम उठे. दो सौ रनों की दहलीज के पार खड़े थे सहवाग.
मुठ्ठियां भींचे हवा में लहराते हुए सहवाग. चेहरे पर बेहद खुशी के भाव. नॉन-स्‍ट्राइकर पर खड़े रोहित को गले लगाकर दर्शकों का अभिवादन स्‍वीकार करते सहवाग. किसी भी क्रिकेट प्रेमी में रोमांच पैदा करने के लिए काफी यह तस्‍वीर.

ये वीरेंद्र सहवाग ही कर सकते थे. धूम-धूम और बूम-बूम के साथ उन्‍होंने सचिन के वनडे में इकलौते दोहरे शतक के रिकॉर्ड को न सिर्फ बराबर किया बल्कि 219 रन बनाकर उससे आगे भी निकल गए. सचिन ने भी एक ख‍बरिया चैनल को मैसेज कर कहा 'मैं वीरू के लिए बहुत खुश हूं, यह बात और भी ज्‍यादा संतोषजनक है कि यह रिकॉर्ड अब एक भारतीय के नाम है.'

अहमदाबाद में उन्‍हें पहली गेंद पर आउट कर कैरीबियाई टीम बेहद खुश थी. लेकिन, इंदौर में एक नयी कहानी उनके इंतजार में थी. कहानी जिसे लिखने वाले थे वीरेंद्र सहवाग. और यह कहानी इंडीज टीम के लिए इतनी 'भयावह' होगी इसका अंदाजा सैमी एंड कंपनी को न होगा. इंदौर में सहवाग का बल्‍ला अपने पूरे रंग में नजर आया. जहां पहले 50 रनों के लिए उन्‍होंने 41 गेंदे खेलीं, लेकिन शतक तक पहुंचने की उनकी बेताबी तो देखिए कि अगले 50 रन सिर्फ 28 गेंदों में ठोक डाले. 150 तक पहुंचने के लिए सहवाग के जहां 112 गेंदों का सामना किया वहीं 200 का जादुई आंकडा़ पार करने तक सिर्फ 140 गेंदों का ही सामना किया सहवाग ने. मैच के बाद सहवाग ने अपने सहज अंदाज में कहा कि आज मेरा दिन था और मैं गेंद को अच्‍छा हिट कर रहा था.

ऑस्‍ट्रेलिया दौरे से पहले वीरू के यह रंग टीम इंडिया के लिए अच्‍छी खबर है. और अगर सहवाग का यह अंदाज ऑस्‍ट्रेलिया में भी जारी रहा, तो कंगारू टीम के लिए बड़ी मुश्किलें हो सकती हैं.

Wednesday, February 23, 2011

डेसचेट फूंक सकते हैं नीदरलैंड्स क्रिकेट में जान

किसी भी क्षेत्र में एक 'हीरो' की दरकार होती है. एक ऐसी शख्यिसत जो लोगों के लिए पैमाना तय करे. एक ऐसा चुंबकीय व्‍यक्तित्‍व जो उस क्षेत्र की ओर लोगों को खींचने की ताकत रखता हो. और, उसमें पहले से मौजूद शख्‍सों के लिए प्रेरणास्रोत का काम भी करे. भारतीय क्रिकेट के लगभग 80 साल के सफर की सबसे यादगार तस्‍वीर की बात की जाए, तो ज्‍यादातर लोगों के दिमाग में लॉर्ड्स की बालकनी में वर्ल्‍ड कप थामे कपिल देव की तस्‍वीर ही चस्‍पां होगी. उस एक तस्‍वीर ने इस मुल्‍क में क्रिकेट दीवानगी को एक नया शिखर दिया. उस एक तस्‍वीर ने भारत में क्रिकेट को महज एक खेल से आगे धर्म की राह दी. उस एक तस्‍वीर ने भारत को 'सचिन तेंदुलकर' दिया. और उस तेंदुलकर को एक सपना दिया. उस तस्‍वीर को दोहराने का सपना. और उस तेंदुलकर ने ना जाने कितने हिन्‍दुस्‍तानियों के दिल में गेंद और बल्‍ले के इस खेल के लिए दीवानगी का बीज बोया. तो अगर क्रिकेट अन्‍य खेलों को हाशिए पर धकेल कर हिन्‍दुस्‍तान में खेलों का बादशाह बना हुआ है, तो कहीं न कहीं इसकी शुरुआत 25 जून 1983 के उस लम्‍हे से हुयी. तो क्‍या नीदरलैंड्स के रेयान डेसचेट (उम्‍मीद है कि मैं उनका नाम ठीक लिख रहा हूं) इसी राह पर चल रहे हैं.

कई लोग इसे बहुत जल्‍दबाजी मान रहे होंगे. उनकी राय में सफर अभी बहुत लंबा है, तो इसके जवाब में मैं एक चीनी कहावत दोहराना चाहूंगा - लंबे से लंबे सफर की शुरुआत एक छोटे से कदम से होती है. हालांकि, इससे पहले भी एसोसिएटेड देशों से आए कुछ खिलाड़ी समय-समय पर अपनी मौजूदगी का अहसास कराते आए हैं, लेकिन अपनी कामयाबी के पौधे के दरख्‍त बनने से पहले ही वे कहीं गुम हो गए. डेसचेट को खुद को इससे बचाना होगा. खैर, उनके कदम अभी तक जमीन पर हैं, इस बात का इशारा उन्‍होंने इंग्‍लैंड के खिलाफ खत्‍म हुए मैच के बाद दिया जब उन्‍होंने कहा, 'बतौर टीम हम अपने प्रदर्शन से खुश हैं. निजी तौर पर मेरा कोई लक्ष्‍य नहीं है, हां टीम के रूप में हम अपनी पहचान दर्ज कराना चाहते हैं.' इससे पहले भी अपनी उपलब्धियों के बारे में उनका कहना था कि अभी तक उन्‍होंने जो शतक लगाए हैं वे सब बड़ी टीमें नहीं हैं, लेकिन उनके भीतर इस चीज का मान नहीं दिखा कि वे खुद भी ऐसी ही एक टीम का हिस्‍सा हैं.

उनका नाम अभी कल तक बहुत कम लोगों ने सुना होगा. लेकिन, जिस राह पर वे चल रहे हैं, उम्‍मीद की जानी चाहिए कि बहुत जल्‍दी इनका नाम काफी सुना जाएगा. दक्षिण अफ्रीका में पैदा हुए डेसचेट ससेक्‍स नीदरलैंड्स एक ऐसा देश, जहां खेलों में सबसे बड़ा धर्म है फुटबॉल. तीन बार फीफा वर्ल्‍ड कप के फाइनल में पहुंच चुका है नीदरलैंड्स. हॉकी में भी इस देश की अपनी अलग पहचान है. दो बार ओलंपिक गोल्‍ड के अलावा इस देश के खाते में पदकों की संख्‍या है कुल 15. यहां से निकले बल्‍ले की आवाज अंतरराष्‍ट्रीय मंच पर बहुत कम सुनी जाती है. यहां से एक शख्‍स हाथ में बल्‍ला लेकर निकलता है और बहुत जल्‍द उसकी टंकार दुनिया सुनती है, तो इसे एक शुभ संकेत ही माना जाए.

इंग्‍लैंड के तेज गेंदबाज स्‍टुअर्ट ब्रॉड की गेंद पर गए ओवरथ्रो की मदद से उनका शतक पूरा हुआ. और शायद वे विश्व कप में 'पांच रनों' की मदद से सैकड़े में दाखिल होने वाले पहले शख्‍स बने हों. उनके चेहरे पर आत्‍मसंतोष और खुशी के मिलेजुले भावों को साफ पढ़ा जा सकता था. यह बड़ी टीमों को एक संदेश है कि 'हमें दरकिनार नहीं किया जा सकता और अगर आपने हमें हल्‍के में लिया, तो शायद आपको पछताना भी पड़ सकता है.' भले ही देर से ही हमारी आवाज दुनिया सुनेगी.

मौजूदा समय में क्रिकेट खेल रहे सभी अंतरराष्‍ट्रीय खिलाडि़यों में सबसे ज्‍यादा औसत डेसचेट का ही है. 28 वनडे मैचों में 71.23 का बल्‍लेबाजी औसत उनकी क्षमता की एक बानगी भर है. इसके साथ ही उनके बल्‍ले से निकले चार शतक और आठ अर्द्धशतक यह दिखाते हैं कि इस खिलाड़ी में निरंतरता भी है. सिर्फ बल्‍ले से ही नहीं, गेंद से भी कमाल दिखाने की कुव्‍वत रखते हैं डेसचेट. अपने देश के लिए वनडे मुकाबलों में 50 विकेट लेने वाले पहले गेंदबाज भी हैं. उनकी इन्‍हीं खूबियों के कारण उन्‍हें आईसीसी के एसोसिएटेड क्रिकेट ऑफ 2010 के खिताब से नवाजा गया. अपने खेल के दम पर वे बेशक किसी भी अंतरराष्‍ट्रीय टीम में अपनी जगह बना सकते हैं.

लेकिन, अब उनकी प्रतिभा को एक बड़ा मंच मिल गया है. वर्ल्‍ड कप के बाद वे आईपीएल के चौथे सीजन में जलवा बिखेरते नजर आएंगे. डेसचेट को कोलकाता नाइटराइडर्स ने 1लाख 50 हजार डॉलर में खरीदा है. यह उनके और नीदरलैंड्स क्रिकेट के लिए एक शुभ संकेत है. और शायद इसके बाद हॉकी और फुटबॉल यह मुल्‍क क्रिकेट में भी अपनी मौजूदगी बेहतर तरीके से दर्ज करा सके.

Friday, January 28, 2011

इंतजार बस कुछ दिन और...

बस कुछ दिन और...। लोगों की बातों में, दिल के जज्‍बातों में। चाय के ठेले पर। सब्‍जी के रेले पर। बस-रेल की भीड़ में। हर जगह बस एक ही बात होगी। हर जगह बस एक सवाल। सब बस एक ही चीज पूछेंगे। 'भाई स्‍कोर क्‍या हुआ है।' सारे देश पर छा जाएगा क्रिकेट का खुमार। एक ऐसा नशा जिसमें हर हिन्‍दुस्‍तानी झूमेगा। और इस बार हमारा साथ देगी सारी दुनिया। जी, क्रिकेट विश्व कप शुरू होने को है। और इस बार मेजबानी का जिम्‍मा मिला है हमें। हम यानी क्रिकेट को मजहब मानने वाले लोग। हम यानी खिलाडि़यों को भगवान वाले लोग। हम यानी खेल को किसी उत्‍सव सरीखा मनाने वाले लोग। तो, क्रिकेट का महाकुंभ शुरू होने को है। इंतजार कीजिये बस कुछ दिन और....।

गली के नुक्‍कड़ पर एक्‍सपर्ट कमेंट होंगे। हर गेंद पर दी जाने वाली सलाहों का दौर होगा। चाय की दुकानों पर मेले सरीखा माहौल होगा। कुल्‍लड़ में भी गेंद सरीखे नजर आयेंगे। रिक्‍शे वाले के रेडियो पर कान गढ़ाये कमेंटरी का आनंद लेने से भी नहीं चूकेंगे। थम-थमकर किसी दुकान में झांकने में भी गुरेज नहीं होगा। अर्सा गुजर गया जिन रिश्‍तेदारों से बात किए हुए, उन्‍हें याद कर करके टिकटों का जुगाड़ करने में भी कोई शर्म महसूस नहीं करेंगे। आखिर, ऐसे मौकों पर ही तो अपनों को याद किया जाता है। घर की लाइट जाने का इससे ज्‍यादा दुख कभी नहीं होगा। इसी समय इन्‍वर्टर की कमी सबसे ज्‍यादा महसूस होगी। दोस्‍तों को फोन करके पहला सवाल पूछेंगे, ' भाई स्‍कोर क्‍या हुआ है।' इंतजार कीजिये बस कुछ दिन और...।

टिकटों के लिए लाइन में लगकर डंडे खाएंगे। इस जूनून के लिए कुछ भी गुजर जाएंगे। मैदान नहीं तो उसके सामने की ऊंची बिल्डिंग की छत ही सही। और, वो भी न मिले तो बाहर खड़ा कोई पेड़ ही सही। हमें तो बस तशरीफ रखने भर की जगह मिल जाये। बस किसी तरह से एक झलक हरी घास पर 22 गज की पट्टी पर खेले जाने वाले खेल की बस एक झलक मिल जाये। उस झलक के लिये कुछ भी कर गुजरने को तैयार होंगे हम। जिन्‍हें सीट मिलेगी वे समझेंगे खुद को खुशकिस्‍मत। और नाकाम रहने वाले जम जायेंगे टीवी के सामने। इंतजार कीजिये, बस कुछ दिन और....।

19 फरवरी को भारत और बांग्‍लादेश के बीच होने वाले मुकाबले की शुरुआत के साथ ही बज जाएगी रणभेरी। शुरू हो जाएगा 'विश्व युद्ध।' देशभक्ति होगी, लेकिन अपने अलग अंदाज में। एक अलग ही कशिश होगी हर किसी के मिजाज में। अपने चहेते खिलाडि़यों के लिये हर दर पर सिर झुकाए जाएंगे। भगवान भी इन दिनों खूब मनाए जाएंगे। मन्‍नतों का दौर चल निकलेगा। महजब और जात की दीवार कुछ तो कम होगी। जीत में साथ जश्‍न और हार में आंखें साथ नम होंगी। ढ़ोल पर साथ थिरकेंगे कदम। हर उम्‍मीद कि कप लाएंगे हम। साथ चल पड़ेंगे शायद तब सबके कदम। इंतजार कीजिये, बस कुछ दिन और....।

Thursday, July 22, 2010

अब कहां सुनने को मि‍लेगी 'मुरली' की तान ...


आज मुथैया मुरलीधरन ने टेस्‍ट क्रि‍केट से संन्‍यास ले लि‍या। इसके साथ ही एक पूरे युग का अंत हो गया। मुरली ने बीते दो दशकों तक श्रीलंकाई स्‍पि‍न गेंदबाजी की कमान संभाली। जातीय हिंसा और तनावग्रस्‍त मुल्‍क के बीच अपने लि‍ये रास्‍ता बनाते चले गये मुरली। एक्‍शन को लेकर वि‍वाद और आलोचनाओं के बीच लगातार आगे बढ़ता गये मुरली। मुथैया मुरलीधरन को भले ही उनके आलोचक रि‍कॉर्डों के लायक न मानते हों, लेकि‍न इन सबके बावजूद उनकी उपलब्‍धि‍यों को दरकि‍नार नहीं कि‍या जा सकता। उन्‍होंने एक पूरे युग को अपने सामने जवान होते देखा। श्रीलंका में वि‍केट लेने वाले गेंदबाज तो कई और भी आ सकते हैं, लेकि‍न मुथैया मुरलीधरन जैसा कोई दूसरा गेंदबाज आना मुश्‍कि‍ल है।

एक शानदार करि‍यर की इससे शानदार वि‍दाई हो ही नहीं सकती थी। मुथैया मुरलीधरन गॉल के क्रि‍केट मैदान से रुखसत लेंगे, तो अपने साथ दोहरी खुशी लि‍ये हुये। खुशी क्रि‍केट इति‍हास के पन्‍नों में दर्ज होने की। खुशी उस शि‍खर तक पहुंचने की, जो भावी पीढ़ि‍यों के लि‍ये हमेशा एक चुनौती रहेगा। खुशी टेस्‍ट क्रि‍केट के इति‍हास में 800 वि‍केट लेने वाले पहले गेंदबाज बनने की। और इन सबसे बढ़कर टीम की जीत के साथ टेस्‍ट क्रि‍केट को अलवि‍दा कहने की। हालांकि‍, मुरलीधरन ने अभी क्रि‍केट को पूरी तरह से अलवि‍दा नहीं कहा है। उन्‍होंने साफ कर दि‍या है कि‍ अगर टीम प्रबंधन चाहेगा, तो वे 2011 में भारतीय उपमहाद्वीप में होने वाले वि‍श्‍व कप में खेल सकते हैं। लेकि‍न, क्‍या सच में श्रीलंकाई प्रबंधन उन्‍हें वि‍श्व कप में मौका देगा यह अपने आप में एक बड़ा सवाल है।

बीते कुछ समय से मुरली के प्रदर्शन पर भी सवाल उठाये जाने लगे थे। आलोचक मुरली की गेंदबाजी की धार को अब कुंद बताने लगे थे। लेकि‍न, वे लगातार खुद को साबि‍त कि‍ये जा रहे थे। साथ ही रंगना हेराथ, सूरज रणदीप और अजंथा मेंडि‍स के रूप में श्रीलंका में स्‍पि‍न गेंदबाजी की एक बि‍लकुल नयी पौध भी मुरली की परंपरा को आगे बढ़ाने के लि‍ये तैयार हो रही है। ऐसे में, मुरली ने उन पर गहरे और तीक्ष्‍ण सवाल उठने से पहले ही संन्‍यास लेने का सही फैसला कि‍या।

वैसे, रि‍कॉर्डों की बात की जाये, तो अपने समकालीन हर गेंदबाज से बीस ही दि‍खायी पड़ते हैं मुरली। क्रि‍केट इति‍हास के पहले और अब तक के इकलौते गेंदबाज जि‍न्‍होंने 1000 से ज्‍यादा वि‍केट लि‍ये हैं। सत्रह अप्रैल 1972 को कैंडी में जन्में मुलरीधरन ने 133 टेस्ट मैचों में 22.72 की औसत से 800 विकेट चटकाये। प्रज्ञान ओझा को महेला जयवर्द्धने के हाथों कैच कराकर 800 टेस्ट विकेट का आंकड़ा छूने वाले दुनिया के पहले गेंदबाज बने। मुरली की इस कामयाबी ने प्रज्ञान ओझा का नाम भी इति‍हास में दर्ज करा दि‍या। अब जब भी मुरली के नाम का जि‍क्र होगा, उसके साथ-साथ ओझा का नाम भी लि‍या ही जायेगा। मुरली की कामयाबी की कहानी सिर्फ टेस्‍ट क्रि‍केट तक ही सीमि‍त नहीं है। यह कहानी वनडे में दोहरायी गयी , यहां भी वे भीड़ में सबसे आगे नजर आये। 337 वनडे मैचों में 515 वि‍केट का आंकड़ा अपने आप में क्रि‍केट के इस रूप में भी उनकी कामयाबी की कहानी कहता है।

लेकि‍न, क्‍या मुरली की कामयाबी को केवल वि‍केटों के आंकड़ों में तोलकर देखना सही होगा। रन प्रति‍ ओवर और स्‍ट्राइक रेट का चश्‍मा चढ़ाकर मुरली की फि‍रकी को घूमते देखना क्‍या सही होगा। इन सबके बीच मुरलीधरन के घरेलू परि‍पेक्ष्‍य को समझना जरूरी है। मुरलीधरन एक ऐसे देश से आते हैं, जो बीते कई दशकों से जातीय हिंसा का शि‍कार रहा। अपनी टीम में वे लंबे समय तक अकेले तमि‍ल खि‍लाड़ी रहे। एक ऐसा देश जहां सिंहली और तमि‍ल एक दूसरे के खून के प्‍यासे रहे, वहां मुरलीधरन को दोनों ने सि‍र-आंखों पर बि‍ठाया। जातीय हिंसा के बीच मुरली दोनों के बीच एक अनदेखे से पुल का काम करते रहे। मुरली की कामयाबी का जश्‍न पूरे समाज ने मि‍लकर मनाया। इसे भी अजब संयोग ही कहा जायेगा कि‍ मुरली की वि‍रासत संभालने वाले अजंथा मेंडि‍स उसी श्रीलंकाई सेना में काम करते हैं, जो अभी कुछ समय पहले तक लि‍ट्टे से युद्ध लड़ रही थी।

चलि‍ये, अब वापस मुरली के क्रि‍केट पर लौटते हैं। मुरली का क्रि‍केटीय जीवन भी कभी वि‍वादों से दूर नहीं रहा। भले ही उनकी कामयाबी बहुत बड़ी हो, लेकि‍न ऐसे भी लोगों की कमी नहीं जो मुरली की कामयाबी को अधूरा बताते हैं। अपने एक्‍शन को लेकर मुरली हमेशा वि‍वादों में रहे। 1995-96 के ऑस्‍ट्रेलि‍याई दौरे पर अंपायर डेरल हेयर ने पहले-पहल मुरली के एक्‍शन को संदि‍ग्‍ध बताया। पहली बार मुरली स्‍कैनर पर थे। बॉक्‍सिंग डे टेस्‍ट मैच में मुरली की गेदबाजी को तीन ओवरों में सात बार नो बॉल करार दि‍या गया। अंपायर हेयर का मानना था कि‍ 23 साल के मुरली का एक्‍शन क्रि‍केट की नि‍यमों पर खरा नहीं उतरता। मैदान में मौजूद 55 हजार से ज्‍यादा लोग मुरली के गेंद फेंकने से पहले ही 'नो बॉल' चि‍ल्‍लाने लगते। मुरली के लि‍ये हालात बदतर होते जा रहे थे। मुरली खुद बताते हैं कि‍ आलोचनाओं से तंग आकर उन्‍होंने एक बार को ऑफ स्‍पि‍न गेंदबाजी छोड़कर लेग स्‍पि‍न गेंदबाजी करने तक का मन बना लि‍या था। ऐसे बुरे वक्‍त में कप्‍तान अर्जुन राणातुंगा ने उनका भरपूर साथ दि‍या।

1996 और 1999 में आईसीसी के परीक्षणों में मुरली के एक्‍शन को सही पाया गया। 2004 में एक बार फि‍र मुरली के एक्‍शन पर सवाल उठे। इस बार नि‍शाने पर उनका हथि‍यार 'दूसरा' थी। परीक्षण में पाया गया कि‍ अधि‍कतर स्‍पि‍न गेंदबाज 5 डिग्री कोहनी मोड़ने पर खरे नहीं उतरते। इसके बाद 5 डि‍ग्री को 15 डिग्री कर दि‍या गया और मुरली का एक्‍शन नि‍यमों में फि‍ट हो गया। क्रि‍केट जगत में आईसीसी के इस फैसले की कड़ी आलोचना भी की गयी।

मुरली की तमाम उपलब्‍धि‍यों के बावजूद उनके आलोचकों की संख्‍या में कभी कमी नहीं आयी। ऑस्‍ट्रेलि‍यन अंपायर रॉस इमर्सन, जि‍न्‍होंने 1999 में मुरली की गेंदों को 'चक' करार दि‍या था, आज भी अपने फैसले को सही मानते हैं। इमर्सन मानते हैं कि‍ मुरली सही मायनों में रि‍कॉर्ड के हकदार ही नहीं हैं। वे कहते हैं कि‍ मुरली का एक्‍शन नि‍यमों के हि‍साब से सही नहीं ठहराया जा सकता। इससे पहले 1996 में भी इमर्सन मुरली की गेंदबाजी एक्‍शन पर सवाल उठा चुके थे। इमर्सन की नजर में शेन वॉर्न मुरली से कहीं बेहतर गेंदबाज हैं और उन दोनों में कि‍सी तरह की कोई तुलना नहीं की जा सकती।

पूर्व भारतीय कप्‍तान और दि‍ग्‍गज ऑफ स्‍पि‍नर बि‍शन सिंह बेदी भी मुरली के सबसे बड़े आलोचकों में से रहे हैं। बेदी कई बार और कई मंचों पर मुरली को चकर बता चुके हैं। बेदी ने अभी हाल ही में यह कहा है कि‍ अब मुरली के संन्‍यास लेने के बाद आईसीसी को गेंदबाजी को लेकर अपने नि‍यमों को लेकर पुर्नवि‍चार करना चाहि‍ये।

लेकि‍न, लंबे समय तक मुरली के प्रति‍द्वंदी रहे दि‍ग्‍गज शेन वॉर्न का हालि‍या बयान मुरली के लिये सुखद समाचार लेकर आया। वॉर्न ने कहा, मुरली कभी चकर नहीं थे। वॉर्न और मुरली की तुलना कई बार की गयी और आंकड़ों के तराजू में रखकर की गयी। लेकि‍न, सही मायनों में दोनों अपनी-अपनी दि‍ग्‍गज और क्रि‍केट के महानतम स्‍पि‍न गेंदबाजों के तौर पर याद कि‍ये जायेंगे।

आज मुरली आखि‍री बार टेस्‍ट क्रि‍केट के उनके जेहन में अपने 19 साल लंबे टेस्‍ट क्रि‍केट की सभी छवि‍यां ताजा हो रही होंगी। 1996 के वि‍श्व कप जीतने की खुशी और एक्‍शन को लेकर उठाये गये सभी सवाल, सब कुछ आंखों के सामने बॉयोस्‍कोप की तरह चल रहा होगा। साथी खि‍लाड़ि‍यों के कंधे पर सवार होकर मुरली आखि‍री बार दर्शकों का अभि‍नंदन स्‍वीकार कि‍या। इसके बाद शायद हमें यह कहने का मौका कभी न मि‍ले ' मुरली की तान पर नाचे बल्‍लेबाज'

Monday, May 10, 2010

आईपीएल को मत कोसो वि‍श्व कप में हार के लि‍ये

वेस्‍टइंडीज के हाथों हारते ही टीम इंडि‍या का वि‍श्व कप टी20 2010 में सफर लगभग समाप्‍त हो गया। हर क्रि‍केट प्रेमी की तरह मेरे लि‍ये भी यह नि‍राशा की बात थी। आखि‍र हमें अपनी टीम को हारते देख हमेशा ही दुख होता है। हम अपनी टीम को जीतते देखना चाहते हैं और जब यह आशा पूरी नहीं होती, तो दुख होना लाजमी है। क्रि‍केट में हमारे देश के करोड़ों लोगों की भावनायें जुड़ी होती हैं। हार, उन भावनाओं को ठेस पहुंचाती है।

लेकि‍न, हैरानी तब हई जब हार के कारणों की वि‍वेचना करते हुये टीवी चैनल आईपीएल पर जा पहुंचे। वि‍श्व कप की हार के लि‍ये आईपीएल को जि‍म्‍मेदार ठहराया जाने लगा। यह बात अखरने लगी। मुझे लगता है कि हम आईपीएल को बेकार में इस सबके लि‍ये कोस रहे हैं। अगर विश्व कप में टीम इंडि‍या के खराब प्रदर्शन के लि‍ये आईपीएल जि‍म्‍मेदार है, तो हमें यह नहीं भूलना चाहि‍ये कि दूसरी कई टीमों के खि‍लाड़ी भी इस टूर्नामेंट का हि‍स्‍सा थे। ऑस्‍ट्रेलि‍या के 7-8 खि‍लाड़ी अलग-अलग टीमों में खेल रहे थे। इंग्‍लैंड, दक्षि‍ण अफ्रीका, वेस्‍टइंडीज, न्‍यूजीलैंड श्रीलंका आदि सभी देशों के खि‍लाड़ी आईपीएल में थे। इन सब टीमों का प्रदर्शन आईपीएल में अच्‍छा रहा है। दूसरी ओर पाकि‍स्‍तान का एक भी खि‍लाड़ी आईपीएल में नहीं था और अंति‍म चार में पहुंचने की उसकी उम्‍मीदें भी अपने प्रदर्शन से ज्‍यादा भाग्‍य के भरोसे टि‍की रहीं।

ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्‍या टीम इंडि‍या की इस गत का जि‍म्‍मेदार आईपीएल को ठहराना उचि‍त है। नहीं, टीम इंडि‍या का खुद का प्रदर्शन इसके लि‍ये जि‍म्‍मेदार है। ऑस्‍ट्रेलि‍या के खि‍लाफ शॉर्ट पि‍च गेंदों का सामना करते हुये भारतीय बल्‍लेबाज कि‍सी स्‍कूली टीम की तरह नजर आ रहे थे। उस मैच में गेंदबाजों से ज्‍यादा बल्‍लेबाजों का अप्रोच टीम की हार के लि‍ये जि‍म्‍मेदार रहा। रोहि‍त शर्मा ने उस मैच में दि‍खाया था कि‍ अगर टि‍ककर बल्‍लेबाजी की जाती, तो उस वि‍केट पर रन बनाने इतने मुश्कि‍ल भी नहीं थे। वेस्‍टइंडीज के खि‍लाफ भी बल्‍लेबाजी के साथ-साथ खराब फील्‍डिंग का भी योगदान रहा। रवींद्र जडेजा दोनों मैचों में अच्‍छा नहीं खेल पाये। उनकी गेंदबाजी पर लगातार छक्‍के पडे और उन्‍होंने कुछ महत्‍वपूर्ण कैच भी छोड़े। बतौर बल्‍लेबाज भी उन्‍होंने कुछ नहीं कि‍या। वे तो इस बार आईपीएल में नहीं खेले, आखि‍र उन्‍हें क्‍या हो गया था।

दूसरी ओर आईपीएल में खेलते समय इंग्‍लैंड के धाकड़ बल्‍लेबाज केवि‍न पीटरसन ने कहा था कि आईपीएल में खेलने से उन्‍हें फायदा हो रहा है। केपी ने इसके साथ ही इंग्‍लि‍श गेंदबाजों के आईपीएल में न खेलने पर दुख जताया था। श्रीलंका की ओर से शानदार बल्‍लेबाजी कर रहे महेला जयवर्द्धने को अपनी फार्म आईपीएल में ही मि‍ली। क्रि‍स गेल भी आईपीएल में थे और केरॉन पोलार्ड भी। श्रीलंकाई टीम के ज्‍यादातर खि‍लाड़ी इस टूर्नामेंट में आने से पहले आईपीएल में खेल रहे थे। इंग्‍लैंड की टीम बांग्‍लादेश में क्रि‍केट खेल रही थी और ऑस्‍ट्रेलि‍या और न्‍यूजीलैंड भी क्रि‍केट खेलने में व्‍यस्‍त थे।
श्रीलंकाई टीम को चारों खाने चि‍त करने वाली ऑस्‍ट्रेलि‍याई टीम के 11 में सात खि‍लाड़ी आईपीएल में अलग-अलग टीमों का हि‍स्‍सा थे। केवल, मि‍शेल जॉनसन, ब्रेड हैडि‍न, स्‍टीव स्‍मि‍थ और माइकल क्‍लार्क ही आईपीएल में नहीं खेले थे। ऐेसे में खि‍लाड़ि‍यों के खराब प्रदर्शन का ठीकरा आईपीएल के सि‍र फोड़ना कहां तक जायज है। वि‍श्व कप में हार की वजह शॉर्ट पि‍च गेंदों के खि‍लाफ बल्‍लेबाजों की नाकामी है। काफी समय से शॉर्ट पि‍च गेंदें भारतीय उपमहाद्वीपीय टीमों की कमजोरी मानी जाती है। इसमें सुधार करने की जरूरत है।

यहां हमें यह भी देखना चाहि‍ये कि‍ आईपीएल और वि‍श्व कप के फॉरमेट में काफी अंतर है। आईपीएल में हर टीम को 14 मैच खेलने थे और टूर्नामेंट में वापसी के मौके ज्‍यादा थे। चेन्‍नई सुपरकिंग्‍स की टीम लगातार चार मैच हार कर भी वापसी कर सकी और चैंपि‍यन बनी। वि‍श्व कप के सुपर आठ में एक मैच हारते ही मुश्कि‍ल शुरु हो जाती है। तो, बेकार में आईपीएल के रूप में आसान शि‍कार ढूढ़ने की कोशि‍श करने की बजाये, बड़ी तस्‍वीर देखनी चाहि‍ये।

Sunday, September 6, 2009

कामयाबी की नई कहानी लिखते महेंद्र पान सिंह धोनी

इनकी मौजूदगी मैदान पर टीम की जीत का यकीन दिलाती है और यही भरोसा वे मैदान के बाहर व्‍यापार जगत में भी जगाते हैं, तभी तो वे बाजार की पसंद हैं। भारतीय क्रिकेट टीम के कप्‍तान महेंद्र सिंह धोनी ऐसे क्रिकेटरों में पहले नंबर पर हैं। रांची जैसे मध्‍यम दर्जे के शहर से निकल राष्‍ट्रीय परिदृश्‍य पर छा गए धोनी ने जितने कम समय कामयाबी की ऊंची सीढि़यां चढ़ी हैं, वह अपने आप में एक मिसाल है। पांच साल में महेंद्र सिंह धोनी अब एक नाम भर नहीं रह गए हैं, बल्कि एक ब्रांड में तब्‍दील हो चुके हैं। इसलिए ये कोई हैरानी की बात नहीं कि जब जानी-मानी बिजनेस पत्रिका फोर्ब्‍स ने दुनिया के सबसे कमाऊ क्रिकेटरों की लिस्‍ट जारी की, तो इसमें सबसे ऊपर भारतीय कप्‍तान का नाम था।

धोनी ने यह मुकाम क्रिकेट की दुनिया के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर को पीछे छोड़कर हासिल किया है। धोनी ने जहां बीते साल 10 मिलियन डॉलर यानी करीब 49 करोड़ रुपए की कमाई की, वहीं सचिन तेंदुलकर करीब 40 करोड़ रुपए कमा कर दूसरे पायदान पर हैं। इस लिस्‍ट में भारतीय उपकप्‍तान युवराज सिंह, राहुल द्रविड़ और सौरव गांगुली जैसे क्रिकेटर भी शामिल हैं।

धोनी की कमाई में से बड़ा हिस्‍सा मैदान से नहीं, बल्कि मैदान के बाहर विज्ञापनों से होती है। धोनी ने बीते साल विज्ञापनों से 40 करोड़ रुपए कमाई की। बाजार जानता है कि धोनी का सितारा बुलंदी पर है और इस नाम को अपने साथ जोड़ लेना ही कामयाबी की गारंटी है। तभी तो आज धोनी के साथ 17 बड़ी कं‍पनियों के नाम जुड़े हुए हैं। इतने ज्‍यादा ब्रांडों से कोई क्रिकेटर नहीं जुड़ा। धोनी से ज्‍यादा ब्रांड सिर्फ बॉलीवुड के बादशाह शाहरुख खान के पास हैं। यह अपने आप में बताता है कि धोनी का कद आज कितना बड़ा हो चुका है।

दो हजार रुपए से अपनी पहली नौकरी शुरू करने वाले धोनी आज अपने हर रन के लिए करीब ढ़ाई लाख रुपए कमाते हैं। वे आईपीएल की शुरुआती बोली में सबसे मंहगे खिलाड़ी बने, एक युवा क्रिकेटर से टीम इंडिया के कप्‍तान बने, टीम को टी20 विश्‍व कप का ताज दिलाया, टीम इंडिया को कामयाबी की नई ऊचाईयों पर ले गए। धोनी टीम को जीत और सिर्फ जीत का पाठ पढ़ाते हैं। वे मैन मैनेजमेंट की एक बेमिसाल तस्‍वीर पेश करते हैं।

करीब पांच साल पहले धोनी अंतरराष्‍ट्रीय क्रिकेट के मंच पर किसी रॉक स्‍टार की तरह आए और छा गए। लंबे बाल और रोबीला अंदाज। माही का यह स्‍टाइल उनके खेल में भी नजर आता है। गेंदबाज पर हावी होना और आसमान को छूते शॉट, माही के इस बेखौफ अंदाज में युवाओं ने एक नए रोल मॉडल की तस्‍वीर देखी। उन्‍हें लगा कि यह नए भारत का नया हीरो है, जो परिस्थितियों से हार मानकर बैठने या फिर रास्‍ता बदलने की बजाए जिद करने की बात करता है और अपनी जिद के दम पर दुनिया बदलने की राह भी दिखाता है।

धोनी, भारत के उन युवाओं की वह तस्‍वीर दिखाते हैं, जो रहते हैं छोटे शहरों में, लेकिन जिनकी आंखों में बड़े सपने पलते हैं। धोनी ने उन सपनों को पर देने में अहम भूमिका निभाई है। युवा अब सिर्फ सपने देखते ही नहीं हैं, बल्कि उन सपनों को पूरा करने के लिए शिद्दत से कोशिश भी करते है। और, निश्चित रूप से उन्‍हें इस बात की प्रेरणा धोनी जैसे लोगों से मिलती है।

Saturday, April 18, 2009

कई इशारे कर दिया आईपीएल-2 का पहला दिन

भारत मल्‍होत्रा

टी-20 को हमेशा से ही युवाओं का खेल माना जाता है। एक ऐसा खेल जो बहुत तेज चलता है और इस तेजी से कदमताल करने के नौजवान कदमों को बेहद जरूरी माना जाता है। लेकिन, आईपीएल सीजन दो के पहले दिन यह कहानी में बदलाव देखा गया। सचिन तेंदुलकर उम्र 35 साल, राहुल द्रविड़ उम्र 36 साल, और अनिल कुंबले उम्र 38 साल- यह उम्र पहली नजर में टी-20 के लिए माकूल नहीं समझी जाती खासकर तब, जब इनमें से कोई भी टी-20 टीम का हिस्‍सा नहीं है। कुंबले तो अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अ‍‍लविदा कह चुके हैं और राहुल द्रविड़ तो वनडे टीम का भी हिस्‍सा नहीं हैं।

लेकिन, आईपीएल में इन उम्रदराज खिलाडि़यों ने ही अपनी अपनी टीम की जीत में अहम रोल अदा किए। सचिन तेंदुलकर ने मुंबई इंडियंस की ओर से खेलते हुए आईपीएल 09 में पहली हॉफ सेंचुरी लगाई और राहुल द्रविड़ ने महज 48 गेंदों में 66 रन बनाकर इस बात की तस्‍दीक कर दी कि वे‍ परिस्थिति के हिसाब से अपनी पारी को ढ़ाल सकते हैं।

इन सबके बीच अनिल कुंबले ने सिर्फ पांच रन देकर पांच विकेट अपने नाम किए और यह दिखा दिया कि अभी भी उनकी गेंदों में दमखम बाकी है। और शेन वॉर्न ने भी अपनी फिरकी के जादू में फंसा कर रॉयल चैलेंजर्स के दो विकेट अपने नाम किए।

इन अनुभवी खिलाडि़यों का यह प्रदर्शन ने इस बात की ओर भी इशारा करता है कि दक्षिण अफ्रीका की विकेटों पर रन बनाने इतने आसान नहीं होंगे और इसलिए यहां तकनीक की जरुरत पिछली बार से ज्‍यादा होगी। यहां गेंदबाज पर आक्रमण करने से पहले विकेट और हवाओं का मिजाज भांपने की जरुरत होगी। यहां आंख बंद कर बल्‍ला घुमाने से काम नहीं चलेगा। यह पहला दिन इस बात की ओर इशारा करता है कि भले ही टी-20 में गेंदबाजों के लिए कुछ न हो लेकिन, बल्‍लेबाजी भी आंख मूंदकर नहीं की जा सकती। क्रिकेट के इस सबसे छोटे फॉर्मेट में भी बेसिक ठीक करने की जरूरत होती है।

इसके साथ ही टॉस भी जीत हार के फैसले में निर्णायक रोल अदा कर सकता है। माना जाता है कि आमतौर पर दक्षिण अफ्रीका में आमतौर पर फ्लड लाइट में खेलना फील्डिंग टीम के लिए काफी मददगार होता हे। तभी तो रॉयल चैलेंजर्स कप्‍तान केविन पीटरसन ने टॉस जीतने के बाद फौरन बल्‍लेबाजी करने का फैसला किया।

आईपीएल सीजन दो के पहले दिन पिछली बार के फाइनल मुकाबले में पहुंची दोनो टीमों को हार का सामना करना पड़ा है (मुंबई इ‍ंडियंस ने चेन्‍नई सुपरकिंग्‍स को 19 और रॉयल चैलेंजर्स ने राजस्‍थान रॉयल्‍स को 75 रनों से हरा दिया)। खैर! अभी तो पहला ही दिन है और टीमों को अपनी रणनीति तय करने के अभी काफी मौके मिलेंगे। आप बस 37 दिनों तक मजा लीजिए रोमांचक क्रिकेट का।