Thursday, December 15, 2011

सहवाग का बेखौफ अंदाज

'ही इज फीयरलैस'. वीरेंद्र सहवाग के बारे में यह बात सुनील गावस्‍कर ने कही थी. गावस्‍कर ने सहवाग की किसी एक पारी को देखकर ये बात नहीं कही होगी. सहवाग का पूरा करियर ही बेधड़क और बिंदास बल्‍लेबाजी की तस्‍वीर है. इंदौर के होलकर मैदान पर भी जो कुछ हुआ वो सहवाग के उसी अंदाज का एक और रंग है. पिच, मैच के हालात और गेंदबाज से बेपरवाह होकर बल्‍लेबाजी करते हैं सहवाग. कोचिंग की किताबों से इतर अपने ही खुद की ईजाद की गयी तकनीक में. बिल्‍कुल किसी मस्‍त दरिया की तरह जो जानता है केवल अपने ही अंदाज में बहना.

नौ महीने बाद निकला है सहवाग के बल्‍ले से यह वनडे शतक. सहवाग जैसे बल्‍लेबाज के लिए बहुत लंबा अर्सा होता है नौ महीने.
इसी साल फरवरी में बांग्‍लादेश के खिलाफ सहवाग ने 175 रनों की पारी खेली थी. लेकिन, उसके बाद से उनका बल्‍ला शांत था. लेकिन, इंदौर में शायद वे सारी पुरानी कसर पूरी करना चाहते थे.

भारतीय पारी के 44वें ओवर की तीसरी गेंद पर सहवाग के बल्‍ले से निकला ऐतिहासिक चौका. सहवाग के बल्‍ले से टकराकर गेंद थर्डमैन बाउंड्री से बाहर गई और स्‍टेडियम और टीवी से चिपके दर्शक खुशी से झूम उठे. दो सौ रनों की दहलीज के पार खड़े थे सहवाग.
मुठ्ठियां भींचे हवा में लहराते हुए सहवाग. चेहरे पर बेहद खुशी के भाव. नॉन-स्‍ट्राइकर पर खड़े रोहित को गले लगाकर दर्शकों का अभिवादन स्‍वीकार करते सहवाग. किसी भी क्रिकेट प्रेमी में रोमांच पैदा करने के लिए काफी यह तस्‍वीर.

ये वीरेंद्र सहवाग ही कर सकते थे. धूम-धूम और बूम-बूम के साथ उन्‍होंने सचिन के वनडे में इकलौते दोहरे शतक के रिकॉर्ड को न सिर्फ बराबर किया बल्कि 219 रन बनाकर उससे आगे भी निकल गए. सचिन ने भी एक ख‍बरिया चैनल को मैसेज कर कहा 'मैं वीरू के लिए बहुत खुश हूं, यह बात और भी ज्‍यादा संतोषजनक है कि यह रिकॉर्ड अब एक भारतीय के नाम है.'

अहमदाबाद में उन्‍हें पहली गेंद पर आउट कर कैरीबियाई टीम बेहद खुश थी. लेकिन, इंदौर में एक नयी कहानी उनके इंतजार में थी. कहानी जिसे लिखने वाले थे वीरेंद्र सहवाग. और यह कहानी इंडीज टीम के लिए इतनी 'भयावह' होगी इसका अंदाजा सैमी एंड कंपनी को न होगा. इंदौर में सहवाग का बल्‍ला अपने पूरे रंग में नजर आया. जहां पहले 50 रनों के लिए उन्‍होंने 41 गेंदे खेलीं, लेकिन शतक तक पहुंचने की उनकी बेताबी तो देखिए कि अगले 50 रन सिर्फ 28 गेंदों में ठोक डाले. 150 तक पहुंचने के लिए सहवाग के जहां 112 गेंदों का सामना किया वहीं 200 का जादुई आंकडा़ पार करने तक सिर्फ 140 गेंदों का ही सामना किया सहवाग ने. मैच के बाद सहवाग ने अपने सहज अंदाज में कहा कि आज मेरा दिन था और मैं गेंद को अच्‍छा हिट कर रहा था.

ऑस्‍ट्रेलिया दौरे से पहले वीरू के यह रंग टीम इंडिया के लिए अच्‍छी खबर है. और अगर सहवाग का यह अंदाज ऑस्‍ट्रेलिया में भी जारी रहा, तो कंगारू टीम के लिए बड़ी मुश्किलें हो सकती हैं.

Wednesday, February 23, 2011

डेसचेट फूंक सकते हैं नीदरलैंड्स क्रिकेट में जान

किसी भी क्षेत्र में एक 'हीरो' की दरकार होती है. एक ऐसी शख्यिसत जो लोगों के लिए पैमाना तय करे. एक ऐसा चुंबकीय व्‍यक्तित्‍व जो उस क्षेत्र की ओर लोगों को खींचने की ताकत रखता हो. और, उसमें पहले से मौजूद शख्‍सों के लिए प्रेरणास्रोत का काम भी करे. भारतीय क्रिकेट के लगभग 80 साल के सफर की सबसे यादगार तस्‍वीर की बात की जाए, तो ज्‍यादातर लोगों के दिमाग में लॉर्ड्स की बालकनी में वर्ल्‍ड कप थामे कपिल देव की तस्‍वीर ही चस्‍पां होगी. उस एक तस्‍वीर ने इस मुल्‍क में क्रिकेट दीवानगी को एक नया शिखर दिया. उस एक तस्‍वीर ने भारत में क्रिकेट को महज एक खेल से आगे धर्म की राह दी. उस एक तस्‍वीर ने भारत को 'सचिन तेंदुलकर' दिया. और उस तेंदुलकर को एक सपना दिया. उस तस्‍वीर को दोहराने का सपना. और उस तेंदुलकर ने ना जाने कितने हिन्‍दुस्‍तानियों के दिल में गेंद और बल्‍ले के इस खेल के लिए दीवानगी का बीज बोया. तो अगर क्रिकेट अन्‍य खेलों को हाशिए पर धकेल कर हिन्‍दुस्‍तान में खेलों का बादशाह बना हुआ है, तो कहीं न कहीं इसकी शुरुआत 25 जून 1983 के उस लम्‍हे से हुयी. तो क्‍या नीदरलैंड्स के रेयान डेसचेट (उम्‍मीद है कि मैं उनका नाम ठीक लिख रहा हूं) इसी राह पर चल रहे हैं.

कई लोग इसे बहुत जल्‍दबाजी मान रहे होंगे. उनकी राय में सफर अभी बहुत लंबा है, तो इसके जवाब में मैं एक चीनी कहावत दोहराना चाहूंगा - लंबे से लंबे सफर की शुरुआत एक छोटे से कदम से होती है. हालांकि, इससे पहले भी एसोसिएटेड देशों से आए कुछ खिलाड़ी समय-समय पर अपनी मौजूदगी का अहसास कराते आए हैं, लेकिन अपनी कामयाबी के पौधे के दरख्‍त बनने से पहले ही वे कहीं गुम हो गए. डेसचेट को खुद को इससे बचाना होगा. खैर, उनके कदम अभी तक जमीन पर हैं, इस बात का इशारा उन्‍होंने इंग्‍लैंड के खिलाफ खत्‍म हुए मैच के बाद दिया जब उन्‍होंने कहा, 'बतौर टीम हम अपने प्रदर्शन से खुश हैं. निजी तौर पर मेरा कोई लक्ष्‍य नहीं है, हां टीम के रूप में हम अपनी पहचान दर्ज कराना चाहते हैं.' इससे पहले भी अपनी उपलब्धियों के बारे में उनका कहना था कि अभी तक उन्‍होंने जो शतक लगाए हैं वे सब बड़ी टीमें नहीं हैं, लेकिन उनके भीतर इस चीज का मान नहीं दिखा कि वे खुद भी ऐसी ही एक टीम का हिस्‍सा हैं.

उनका नाम अभी कल तक बहुत कम लोगों ने सुना होगा. लेकिन, जिस राह पर वे चल रहे हैं, उम्‍मीद की जानी चाहिए कि बहुत जल्‍दी इनका नाम काफी सुना जाएगा. दक्षिण अफ्रीका में पैदा हुए डेसचेट ससेक्‍स नीदरलैंड्स एक ऐसा देश, जहां खेलों में सबसे बड़ा धर्म है फुटबॉल. तीन बार फीफा वर्ल्‍ड कप के फाइनल में पहुंच चुका है नीदरलैंड्स. हॉकी में भी इस देश की अपनी अलग पहचान है. दो बार ओलंपिक गोल्‍ड के अलावा इस देश के खाते में पदकों की संख्‍या है कुल 15. यहां से निकले बल्‍ले की आवाज अंतरराष्‍ट्रीय मंच पर बहुत कम सुनी जाती है. यहां से एक शख्‍स हाथ में बल्‍ला लेकर निकलता है और बहुत जल्‍द उसकी टंकार दुनिया सुनती है, तो इसे एक शुभ संकेत ही माना जाए.

इंग्‍लैंड के तेज गेंदबाज स्‍टुअर्ट ब्रॉड की गेंद पर गए ओवरथ्रो की मदद से उनका शतक पूरा हुआ. और शायद वे विश्व कप में 'पांच रनों' की मदद से सैकड़े में दाखिल होने वाले पहले शख्‍स बने हों. उनके चेहरे पर आत्‍मसंतोष और खुशी के मिलेजुले भावों को साफ पढ़ा जा सकता था. यह बड़ी टीमों को एक संदेश है कि 'हमें दरकिनार नहीं किया जा सकता और अगर आपने हमें हल्‍के में लिया, तो शायद आपको पछताना भी पड़ सकता है.' भले ही देर से ही हमारी आवाज दुनिया सुनेगी.

मौजूदा समय में क्रिकेट खेल रहे सभी अंतरराष्‍ट्रीय खिलाडि़यों में सबसे ज्‍यादा औसत डेसचेट का ही है. 28 वनडे मैचों में 71.23 का बल्‍लेबाजी औसत उनकी क्षमता की एक बानगी भर है. इसके साथ ही उनके बल्‍ले से निकले चार शतक और आठ अर्द्धशतक यह दिखाते हैं कि इस खिलाड़ी में निरंतरता भी है. सिर्फ बल्‍ले से ही नहीं, गेंद से भी कमाल दिखाने की कुव्‍वत रखते हैं डेसचेट. अपने देश के लिए वनडे मुकाबलों में 50 विकेट लेने वाले पहले गेंदबाज भी हैं. उनकी इन्‍हीं खूबियों के कारण उन्‍हें आईसीसी के एसोसिएटेड क्रिकेट ऑफ 2010 के खिताब से नवाजा गया. अपने खेल के दम पर वे बेशक किसी भी अंतरराष्‍ट्रीय टीम में अपनी जगह बना सकते हैं.

लेकिन, अब उनकी प्रतिभा को एक बड़ा मंच मिल गया है. वर्ल्‍ड कप के बाद वे आईपीएल के चौथे सीजन में जलवा बिखेरते नजर आएंगे. डेसचेट को कोलकाता नाइटराइडर्स ने 1लाख 50 हजार डॉलर में खरीदा है. यह उनके और नीदरलैंड्स क्रिकेट के लिए एक शुभ संकेत है. और शायद इसके बाद हॉकी और फुटबॉल यह मुल्‍क क्रिकेट में भी अपनी मौजूदगी बेहतर तरीके से दर्ज करा सके.

Friday, January 28, 2011

इंतजार बस कुछ दिन और...

बस कुछ दिन और...। लोगों की बातों में, दिल के जज्‍बातों में। चाय के ठेले पर। सब्‍जी के रेले पर। बस-रेल की भीड़ में। हर जगह बस एक ही बात होगी। हर जगह बस एक सवाल। सब बस एक ही चीज पूछेंगे। 'भाई स्‍कोर क्‍या हुआ है।' सारे देश पर छा जाएगा क्रिकेट का खुमार। एक ऐसा नशा जिसमें हर हिन्‍दुस्‍तानी झूमेगा। और इस बार हमारा साथ देगी सारी दुनिया। जी, क्रिकेट विश्व कप शुरू होने को है। और इस बार मेजबानी का जिम्‍मा मिला है हमें। हम यानी क्रिकेट को मजहब मानने वाले लोग। हम यानी खिलाडि़यों को भगवान वाले लोग। हम यानी खेल को किसी उत्‍सव सरीखा मनाने वाले लोग। तो, क्रिकेट का महाकुंभ शुरू होने को है। इंतजार कीजिये बस कुछ दिन और....।

गली के नुक्‍कड़ पर एक्‍सपर्ट कमेंट होंगे। हर गेंद पर दी जाने वाली सलाहों का दौर होगा। चाय की दुकानों पर मेले सरीखा माहौल होगा। कुल्‍लड़ में भी गेंद सरीखे नजर आयेंगे। रिक्‍शे वाले के रेडियो पर कान गढ़ाये कमेंटरी का आनंद लेने से भी नहीं चूकेंगे। थम-थमकर किसी दुकान में झांकने में भी गुरेज नहीं होगा। अर्सा गुजर गया जिन रिश्‍तेदारों से बात किए हुए, उन्‍हें याद कर करके टिकटों का जुगाड़ करने में भी कोई शर्म महसूस नहीं करेंगे। आखिर, ऐसे मौकों पर ही तो अपनों को याद किया जाता है। घर की लाइट जाने का इससे ज्‍यादा दुख कभी नहीं होगा। इसी समय इन्‍वर्टर की कमी सबसे ज्‍यादा महसूस होगी। दोस्‍तों को फोन करके पहला सवाल पूछेंगे, ' भाई स्‍कोर क्‍या हुआ है।' इंतजार कीजिये बस कुछ दिन और...।

टिकटों के लिए लाइन में लगकर डंडे खाएंगे। इस जूनून के लिए कुछ भी गुजर जाएंगे। मैदान नहीं तो उसके सामने की ऊंची बिल्डिंग की छत ही सही। और, वो भी न मिले तो बाहर खड़ा कोई पेड़ ही सही। हमें तो बस तशरीफ रखने भर की जगह मिल जाये। बस किसी तरह से एक झलक हरी घास पर 22 गज की पट्टी पर खेले जाने वाले खेल की बस एक झलक मिल जाये। उस झलक के लिये कुछ भी कर गुजरने को तैयार होंगे हम। जिन्‍हें सीट मिलेगी वे समझेंगे खुद को खुशकिस्‍मत। और नाकाम रहने वाले जम जायेंगे टीवी के सामने। इंतजार कीजिये, बस कुछ दिन और....।

19 फरवरी को भारत और बांग्‍लादेश के बीच होने वाले मुकाबले की शुरुआत के साथ ही बज जाएगी रणभेरी। शुरू हो जाएगा 'विश्व युद्ध।' देशभक्ति होगी, लेकिन अपने अलग अंदाज में। एक अलग ही कशिश होगी हर किसी के मिजाज में। अपने चहेते खिलाडि़यों के लिये हर दर पर सिर झुकाए जाएंगे। भगवान भी इन दिनों खूब मनाए जाएंगे। मन्‍नतों का दौर चल निकलेगा। महजब और जात की दीवार कुछ तो कम होगी। जीत में साथ जश्‍न और हार में आंखें साथ नम होंगी। ढ़ोल पर साथ थिरकेंगे कदम। हर उम्‍मीद कि कप लाएंगे हम। साथ चल पड़ेंगे शायद तब सबके कदम। इंतजार कीजिये, बस कुछ दिन और....।