युवाओं के युवा कप्तान महेंद्र सिंह धोनी जानते हैं कि युवाओं की इस फौज से बेहतर प्रदर्शन कैसे करवाया जाता है। अपने खिलाडियों में विश्वास भरने में माही का कोई सानी नहीं है। उन पर जिम्मेदारी डालकर उनमें आत्मविश्वास भरने की कला में भी माहिर हैं माही। वे जानते हैं कि उनके युवा खिलाडियों से उन्हें कब क्या और कैसे काम लेना है । अपनी टीम के हर खिलाडी की नब्ज पर उनकी गहरी पकड़ है।
श्रीलंका दौरे के आखिरी मैच के बाद प्रेजेन्टेशन के बाद भी धोनी की यही बात सामने आई। सीरीज का आखिरी मैच हारने के बावजूद भारत 3-2 से सीरीज पर कब्जा करने में कामयाब रहा। धोनी को आइडिया कप लेने के लिए स्टेज पर जाना था। स्टेज पर जाते हुए धोनी अचानक रूके और फिर अचानक किसी एक खिलाड़ी को आवाज लगाई और साथ चलने के लिए कहा। यह खिलाड़ी था विराट कोहली। भारतीय टीम की इस सीरीज के साथ ही अपने वनडे क्रिकेट करियर का आगाज करने वाला अंडर-19 कप्तान। धोनी ने विराट के साथ मिलकर आइडिया कप थामा। अब सवाल यह उठता है कि धोनी ने विराट को ही साथ ले जाने के लिए क्यों चुना। आखिर विराट में ऐसी क्या खूबी है जो अन्य खिलाडियों में नहीं। तो, इसके दो जवाब हो सकते हैं। पहला, वीरेंद्र सहवाग और सचिन तेंदुलकर की अनुपस्थिति में जिस तरह से विराट ने बतौर ओपनर बल्लेबाजी की उससे धोनी खुश हुए होंगें। आखिर विराट ने रेगुलर ओपनर बल्लेबाज गौतम गंभीर से अच्छा ही प्रदर्शन किया और भी एक मध्यमक्रम का बल्लेबाज होते हुए।
मगर यह बात शायद उतनी कारगर न लगे जितनी कि दूसरी वाली हो सकती है। दरअसल, विराट को साथ ले जाकर धोनी भारतीय क्रिकेट के आने वाले वक्त की तस्वीर दिखाना चाहते थे। वह तस्वीर जिसमें वे स्वयं सेना नायक हैं और साथी खिलाड़ी उनके जांबाज सिपाही। वो सिपाही जो मैदान पर जीत और सिर्फ जीत के इरादे से उतरते हैं।
विराट को साथ ले जाकर धोनी ने उनके अंदर यह भावना भी जगाई कि वे टीम का एक अहम हिस्सा हैं न कि सिर्फ किसी की जगह भरने वाले फिलर। विराट के लिए भी यह बात काफी खुश करने वाली होगी कि पहली ही सीरीज में आधुनिक भारतीय क्रिकेट टीम के सबसे ताकतवर इंसान की नजर में उनकी और उनके टेलेंट की कद्र होने लगी है। जरूरत यह है कि विराट इसके बावजूद अपने कदम जमीन पर रखें।
धोनी ने भी बता दिया कि वे जानते हैं कि किस तरह से नए खिलाडियों के भीतर विश्वास भरना है ताकि वे अपना बेहरतीन प्रदर्शन दे सकें। ऐसा पहली बार नहीं है जब धोनी ने अपने हुनर से युवाओं की ब्रिगेड का खुद को ब्रिगेडियर बनाया हो। फिर चाहे वो अनुभवी जहीर के होते हुए प्रवीण कुमार को नई गेंद सौंपना हो या फिर टी-20 का आखिरी ओवर हरभजन के होते हुए जोगिन्दर शर्मा से फेंकवाने का रिस्क हो। धोनी हर जगह बहादुरी से फैसले लेते हैं और अगर परिणाम आशा के अनुरूप न आए तो उसकी जिम्मेदारी लेने की हिम्मत भी है इस युवा कप्तान में। मगर ज्यादातर मामलों में धोनी के धुरंधर अपने नायक को नाकामी का दर्द महसूस नहीं होने देते और मैदान के अंदर और बाहर दोनो ही जगह अपना भरपूर प्रदर्शन देने में जी जान लगा देते हैं। क्योंकि उन्हें पता है कि धोनी जानते है.....
श्रीलंका दौरे के आखिरी मैच के बाद प्रेजेन्टेशन के बाद भी धोनी की यही बात सामने आई। सीरीज का आखिरी मैच हारने के बावजूद भारत 3-2 से सीरीज पर कब्जा करने में कामयाब रहा। धोनी को आइडिया कप लेने के लिए स्टेज पर जाना था। स्टेज पर जाते हुए धोनी अचानक रूके और फिर अचानक किसी एक खिलाड़ी को आवाज लगाई और साथ चलने के लिए कहा। यह खिलाड़ी था विराट कोहली। भारतीय टीम की इस सीरीज के साथ ही अपने वनडे क्रिकेट करियर का आगाज करने वाला अंडर-19 कप्तान। धोनी ने विराट के साथ मिलकर आइडिया कप थामा। अब सवाल यह उठता है कि धोनी ने विराट को ही साथ ले जाने के लिए क्यों चुना। आखिर विराट में ऐसी क्या खूबी है जो अन्य खिलाडियों में नहीं। तो, इसके दो जवाब हो सकते हैं। पहला, वीरेंद्र सहवाग और सचिन तेंदुलकर की अनुपस्थिति में जिस तरह से विराट ने बतौर ओपनर बल्लेबाजी की उससे धोनी खुश हुए होंगें। आखिर विराट ने रेगुलर ओपनर बल्लेबाज गौतम गंभीर से अच्छा ही प्रदर्शन किया और भी एक मध्यमक्रम का बल्लेबाज होते हुए।
मगर यह बात शायद उतनी कारगर न लगे जितनी कि दूसरी वाली हो सकती है। दरअसल, विराट को साथ ले जाकर धोनी भारतीय क्रिकेट के आने वाले वक्त की तस्वीर दिखाना चाहते थे। वह तस्वीर जिसमें वे स्वयं सेना नायक हैं और साथी खिलाड़ी उनके जांबाज सिपाही। वो सिपाही जो मैदान पर जीत और सिर्फ जीत के इरादे से उतरते हैं।
विराट को साथ ले जाकर धोनी ने उनके अंदर यह भावना भी जगाई कि वे टीम का एक अहम हिस्सा हैं न कि सिर्फ किसी की जगह भरने वाले फिलर। विराट के लिए भी यह बात काफी खुश करने वाली होगी कि पहली ही सीरीज में आधुनिक भारतीय क्रिकेट टीम के सबसे ताकतवर इंसान की नजर में उनकी और उनके टेलेंट की कद्र होने लगी है। जरूरत यह है कि विराट इसके बावजूद अपने कदम जमीन पर रखें।
धोनी ने भी बता दिया कि वे जानते हैं कि किस तरह से नए खिलाडियों के भीतर विश्वास भरना है ताकि वे अपना बेहरतीन प्रदर्शन दे सकें। ऐसा पहली बार नहीं है जब धोनी ने अपने हुनर से युवाओं की ब्रिगेड का खुद को ब्रिगेडियर बनाया हो। फिर चाहे वो अनुभवी जहीर के होते हुए प्रवीण कुमार को नई गेंद सौंपना हो या फिर टी-20 का आखिरी ओवर हरभजन के होते हुए जोगिन्दर शर्मा से फेंकवाने का रिस्क हो। धोनी हर जगह बहादुरी से फैसले लेते हैं और अगर परिणाम आशा के अनुरूप न आए तो उसकी जिम्मेदारी लेने की हिम्मत भी है इस युवा कप्तान में। मगर ज्यादातर मामलों में धोनी के धुरंधर अपने नायक को नाकामी का दर्द महसूस नहीं होने देते और मैदान के अंदर और बाहर दोनो ही जगह अपना भरपूर प्रदर्शन देने में जी जान लगा देते हैं। क्योंकि उन्हें पता है कि धोनी जानते है.....
3 comments:
धोनी की नेतृत्व शैली के दो महत्वपूर्ण पहलू हैं। पहला तो वह व्यक्तिगत प्रदर्शन से साथी खिलाडि़यों को अच्छा प्रदर्शन करने का विश्वास दिलाते हैं। श्रीलंका दौरे पर गौर करें, तो धोनी ने अजंता मेंडिस की गेंदों पर कभी ज्यादा आक्रामक शॉट्स नहीं खेले, लेकिन एक-एक दो-दो रन लेकर मेंडिस को अपने ऊपर कभी हावी नहीं होने दिया। इसका असर सुरेश रैना और बद्रीनाथ की बल्लेबाजी में देखने को मिला। इन दोनों ही खिलाडि़यों ने मेंडिस का सामना ऐसे किया, जैसे घरेलू क्रिकेट में किसी औसत दर्जे के स्पिनर को खेल रहे हों।
धोनी की लीडरशिप का दूसरा महत्वपूर्ण पक्ष है उनका लाजवाब मैन मैनेजमेंट स्किल। आइडिया कप लेने के लिए जाते समय विराट कोहली को अपने साथ लेना इसी पहलू को उजागर करता है। आपका आकलन बिल्कुल सही है कि धोनी को मनोविज्ञान की अच्छी समझ है।
वाकई आपने जो लिखा उस बात में दम तो बहुत है। धोनी ने अपने खिलाडि़यों के दिमाग की काफी पढाई की है और वे जानते हैं कि किस खिलाड़ी को कैसे अच्छा बनाना है। साथ ही वे अच्छे खिलाडी की कद्र भी करना जानते हैं।
dhoni is fantastic leader .
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