करीब चार साल पहले भारतीय टीम में जगह बनाने वाले महेंद्र सिंह धोनी आज भारतीय किक्रेट के सबसे चमकते सितारे हैं। इतने कम समय में उन्होंने क्रिकेट के बारे में जो समझ विकसित की है, वह काबिले-दाद है। यही वजह है कि कप्तान रूप में ट्वेंटी-20 और वनडे में उनके प्रदर्शन को देखते हुए लोग उन्हें टेस्ट टीम की कप्तानी सौंपने की बात कह रहे हैं। इस कड़ी में सबसे नया नाम टीम इंडिया के कोच गैरी कर्स्टन का है।
भारत मल्होत्राभारत-श्रीलंका वनडे सीरीज का तीसरा मैच। 91 रन पर भारत के चार खिलाड़ी आउट हो चुके थे। ऐसे हालात में धोनी नम्बर 6 पर बल्लेबाजी करने आते हैं। पहले सुरेश रैना के साथ 54 रनों की साझेदारी और उसके बाद रोहित शर्मा के साथ 67 रनों की साझेदारी। इन दो अहम साझेदारियों की बदौलत भारत का स्कोर 200 के पार पहुंचता है। 23वें ओवर में बल्लेबाजी करने आए धोनी 49 वें ओवर तक बल्लेबाजी कर 76 रन बनाते हैं। भारत यह मैच जीत कर सीरीज में 2-1 की बढ़त हासिल करता है।इससे अगले मैच में रैना शानदार बल्लेबाजी कर रहे थे, विराट कोहली के आउट होने के बाद (81/3) धोनी नम्बर इस बार पांच पर बल्लेबाजी करने आते हैं। वजह, रैना के साथ मिलकर रन गति को बनाए रखना। धोनी का यह तीर पर निशाने पर लगा। उनके और रैना के बीच 143 रनों की साझेदारी की बदौलत पहली बार (और अंतिम बार भी) स्कोर 250 के पार पहुंचता है। दोनों टीमों की ओर से यह सीरीज में एक पारी का उच्चतम स्कोर था। भारत यह मैच जीत कर सीरीज में 3-1 में निर्णायक बढ़त हासिल कर लेता है। ये दोनो उदाहरण यह दिखाते हैं धोनी परिस्थितियों को पढ़कर उसके हिसाब से खुद को ढालने में कितने माहिर हैं। वह जानते है कि कब, कौन सा फैसला टीम के लिए फायदेमंद होगा। उनकी इसी खूबी ने भारतीय कोच गैरी कर्स्टन को भी उनका दीवाना बना दिया है। आखिर, कोच को भी कहना ही पड़ा कि धोनी अब टेस्ट कप्तानी संभालने के लिए तैयार हैं।
वैसे, धोनी के टेस्ट कप्तान बनने की सुगबुआहट तो काफी समय पहले ही शुरू हो गई थी, मगर अब जब कर्स्टन की ओर से यह बयान आया है तो इस बात को और बल मिला है कि अब धोनी के टेस्ट कप्तान बनने में ज्यादा देर नहीं है। यह बात सही है कि अब अनिल कुंबले ज्यादा वक्त तक क्रिकेट नहीं खेल पाएंगें। आखिर वे अपने करियर के अंतिम पड़ाव पर हैं। इन हालातों में धोनी ही सबसे ताकतवर विकल्प के तौर पर सामने आते हैं। धोनी के अलावा वीरेन्द्र सहवाग भी कुंबले का विकल्प बन सकते हैं, मगर इस दौड़ में वे काफी पिछड़ते नजर आ रहे हैं। रही बात युवराज की, तो उनके लिए टीम में अपनी जगह बचाना ही काफी मुश्किल नजर आ रहा है। ऐसे में कप्तानी की बात तो काफी दूर की कौड़ी नजर आती है। साल 2004 में भारतीय टीम में कदम रखने वाले महेंद्र सिंह धोनी ने बहुत जल्दी कामयाबी की उचाईयां छू ली हैं। साल 2007 में इंग्लैंड दौरे से आने के बाद जब धोनी को ट्वेंटी-20 और वनडे टीम की कमान सौंपी गई, तब टीम सही मायनों में काफी परेशानियों से जूझ रही थी। उस संकट की घड़ी से टीम को निकालकर ट्वेंटी-20 विश्व कप विजेता बनाना और उसके बाद ऑस्ट्रेलिया में कॉमनवेल्थ बैंक सीरीज में जीत हासिल करना धोनी के करियर की सबसे बड़ी कामयाबियां कही जा सकती हैं। हाल ही में श्रीलंका को उसी के घर में वनडे में मात देकर धोनी ने एक और बड़ी कामयाबी हासिल की है। कोच कर्स्टन भी इस राय से इत्तेफाक रखते हैं कि धोनी सर्वश्रेष्ठ वनडे बल्लेबाजों में शुमार है और अपने प्रदर्शन के दम पर खेल का रुख बदलने का माद्दा रखते हैं। टीम वनडे मुकाबलों में उनकी कप्तानी में जीत भी हासिल कर रही है। धोनी ने कप्तान बनने के बाद अपनी बल्लेबाजी करने के तरीके में भी बदलाव किए हैं।
धोनी ने अपने करियर की शुरुआत एक आक्रामक बल्लेबाज के तौर पर की। अपने पांचवें ही मैच में धोनी ने पाकिस्तान के खिलाफ शानदार 148 रनों की नाबाद पारी खेली। उसके बाद श्रीलंका के खिलाफ भी जयपुर में धोनी ने धुंआधार 183 रन रन बनाए। मगर, धोनी अब सिर्फ धूम-धूम में ही विश्वास नहीं रखते। परिस्थितियों के अनुसार खुद को ढालकर मैच को विरोधी के पंजे से खींचकर लाना धोनी की आदत सी हो गई है।
विरोधी टीमें जानती हैं कि धोनी के विकेट की अहमियत क्या है। धोनी खुद भी अपने विकेट की कीमत पहले से बेहतर समझते हैं। अगर विकेट पर टिककर बल्लेबाजी करने की जरूरत है तो धोनी उसी के हिसाब से बल्लेबाजी कर पारी को आगे बढ़ाते हैं। साथ ही, बीच-बीच में कमजोर गेंद पर प्रहार कर गेंदबाजों को हावी होने का मौका भी नहीं देते। गियर बदलने में उन्हें देर नहीं लगती। असल में वे जानते हैं कि कैसे धीरे-धीरे अपने लक्ष्य की बढ़ते हुए रफ्तार में बदलाव करना है।
अगर इस बात को आंकड़ों की नजर से देखा जाए तो, 120 वनडे खेल चुके धोनी का करियर औसत 47।81 है, वहीं 36 मैचों में बतौर कप्तान उन्होंने 57.83 की औसत से रन बनाए हैं। इससे पता चलता है कि वे कप्तानी की जिम्मेदारी से टूटने वाले खिलाडियों में से नहीं है, बल्कि यह जिम्मेदारी उन्हें और मजबूत बनाती है। कप्तान, विकेटकीपर और बल्लेबाज की तिहरी भूमिका निभाने वाले धोनी सभी जिम्मेदारियों को अच्छी तरह से निभाने में सक्षम रहें हैं। नम्बर 5 या 6 पर कठिन परिस्थितियों में बल्लेबाजी कर धोनी कई बार टीम के लिए संकटमोचक की भूमिका निभा चुके हैं। जिन 36 मैचों में धोनी ने कप्तानी की है उनमें से 19 बार टीम को जीत मिली है और 14 में हार। जीते हुए मुकाबलों में धोनी का औसत 82.44 का है, वहीं जिन मैचों में टीम हारी है उनमें उनका औसत गिरकर 32.07 रह जाता है। यह बात साबित करती है कि धोनी का प्रदर्शन टीम की जीत में अहम रोल अदा करता है।
कप्तान के तौर पर धोनी में जोखिम लेने की हिम्मत भी नजर आती है। वे लकीर के फकीर बनने के बजाए जीत हासिल करने के लिए नए तरीके आजमाने से पीछे नहीं हटते। चौथे मैच में ही सनत जयसूर्या भारतीय गेंदबाजों के लिए खतरा बनते जा रहे थे, ऐसे मौके पर धोनी गेंद हरभजन सिंह को थमाते हैं। हरभजन भी अपने कप्तान के फैसले को सही साबित करते हुए जयसूर्या को आउट कर देते हैं। कप्तानी की समझ के बारे में कहा जाए तो धोनी प्रयोग करने से नहीं डरते और अपने फैसले के परिणाम भुगतने के लिए भी तैयार रहते हैं। वे हार और जीत दोनो के लिए किसी एक को नहीं, बल्कि उसे टीम की साझा जिम्मेदारी मानते हैं। यह एक कप्तान की सबसे बड़ी खूबी है जो व्यक्गित
आरोपों से बचते हुए पूरी टीम को साथ लेकर चलने की कला जानता हो।
धोनी के पूर्व के कप्तानों के प्रदर्शन पर देखा जाए तो राहुल द्रविड़ ने 79 वनडे मैचों में भारत की कप्तानी की। बतौर कप्तान उन्होंने 42 से ज्यादा की औसत से रन बनाए, जबकि उनका करियर औसत 39.49 का ही है। सचिन तेंदुलकर के लिए कप्तानी एक बुरे दौर की तरह रही। अपने 73 मैचों के कप्तानी के सफर में सचिन का औसत 37.75 ही रहा, जबकि उनका करियर औसत 44 के ज्यादा है। सचिन की बल्लेबाजी पर कप्तानी का दबाव साफ तौर पर देखा जा सकता था। धोनी जानते हैं कि उन्हें टीम के युवा खिलाडियों से कैसे काम कराना है। युवाओं को तरजीह देने के कारण कई बार उनकी तुलना सौरव गांगुली से भी की जाती है जिन्होने अपनी कप्तानी में युवाओं की टीम बनाने का काम किया था।
भारत मल्होत्राभारत-श्रीलंका वनडे सीरीज का तीसरा मैच। 91 रन पर भारत के चार खिलाड़ी आउट हो चुके थे। ऐसे हालात में धोनी नम्बर 6 पर बल्लेबाजी करने आते हैं। पहले सुरेश रैना के साथ 54 रनों की साझेदारी और उसके बाद रोहित शर्मा के साथ 67 रनों की साझेदारी। इन दो अहम साझेदारियों की बदौलत भारत का स्कोर 200 के पार पहुंचता है। 23वें ओवर में बल्लेबाजी करने आए धोनी 49 वें ओवर तक बल्लेबाजी कर 76 रन बनाते हैं। भारत यह मैच जीत कर सीरीज में 2-1 की बढ़त हासिल करता है।इससे अगले मैच में रैना शानदार बल्लेबाजी कर रहे थे, विराट कोहली के आउट होने के बाद (81/3) धोनी नम्बर इस बार पांच पर बल्लेबाजी करने आते हैं। वजह, रैना के साथ मिलकर रन गति को बनाए रखना। धोनी का यह तीर पर निशाने पर लगा। उनके और रैना के बीच 143 रनों की साझेदारी की बदौलत पहली बार (और अंतिम बार भी) स्कोर 250 के पार पहुंचता है। दोनों टीमों की ओर से यह सीरीज में एक पारी का उच्चतम स्कोर था। भारत यह मैच जीत कर सीरीज में 3-1 में निर्णायक बढ़त हासिल कर लेता है। ये दोनो उदाहरण यह दिखाते हैं धोनी परिस्थितियों को पढ़कर उसके हिसाब से खुद को ढालने में कितने माहिर हैं। वह जानते है कि कब, कौन सा फैसला टीम के लिए फायदेमंद होगा। उनकी इसी खूबी ने भारतीय कोच गैरी कर्स्टन को भी उनका दीवाना बना दिया है। आखिर, कोच को भी कहना ही पड़ा कि धोनी अब टेस्ट कप्तानी संभालने के लिए तैयार हैं।
वैसे, धोनी के टेस्ट कप्तान बनने की सुगबुआहट तो काफी समय पहले ही शुरू हो गई थी, मगर अब जब कर्स्टन की ओर से यह बयान आया है तो इस बात को और बल मिला है कि अब धोनी के टेस्ट कप्तान बनने में ज्यादा देर नहीं है। यह बात सही है कि अब अनिल कुंबले ज्यादा वक्त तक क्रिकेट नहीं खेल पाएंगें। आखिर वे अपने करियर के अंतिम पड़ाव पर हैं। इन हालातों में धोनी ही सबसे ताकतवर विकल्प के तौर पर सामने आते हैं। धोनी के अलावा वीरेन्द्र सहवाग भी कुंबले का विकल्प बन सकते हैं, मगर इस दौड़ में वे काफी पिछड़ते नजर आ रहे हैं। रही बात युवराज की, तो उनके लिए टीम में अपनी जगह बचाना ही काफी मुश्किल नजर आ रहा है। ऐसे में कप्तानी की बात तो काफी दूर की कौड़ी नजर आती है। साल 2004 में भारतीय टीम में कदम रखने वाले महेंद्र सिंह धोनी ने बहुत जल्दी कामयाबी की उचाईयां छू ली हैं। साल 2007 में इंग्लैंड दौरे से आने के बाद जब धोनी को ट्वेंटी-20 और वनडे टीम की कमान सौंपी गई, तब टीम सही मायनों में काफी परेशानियों से जूझ रही थी। उस संकट की घड़ी से टीम को निकालकर ट्वेंटी-20 विश्व कप विजेता बनाना और उसके बाद ऑस्ट्रेलिया में कॉमनवेल्थ बैंक सीरीज में जीत हासिल करना धोनी के करियर की सबसे बड़ी कामयाबियां कही जा सकती हैं। हाल ही में श्रीलंका को उसी के घर में वनडे में मात देकर धोनी ने एक और बड़ी कामयाबी हासिल की है। कोच कर्स्टन भी इस राय से इत्तेफाक रखते हैं कि धोनी सर्वश्रेष्ठ वनडे बल्लेबाजों में शुमार है और अपने प्रदर्शन के दम पर खेल का रुख बदलने का माद्दा रखते हैं। टीम वनडे मुकाबलों में उनकी कप्तानी में जीत भी हासिल कर रही है। धोनी ने कप्तान बनने के बाद अपनी बल्लेबाजी करने के तरीके में भी बदलाव किए हैं।
धोनी ने अपने करियर की शुरुआत एक आक्रामक बल्लेबाज के तौर पर की। अपने पांचवें ही मैच में धोनी ने पाकिस्तान के खिलाफ शानदार 148 रनों की नाबाद पारी खेली। उसके बाद श्रीलंका के खिलाफ भी जयपुर में धोनी ने धुंआधार 183 रन रन बनाए। मगर, धोनी अब सिर्फ धूम-धूम में ही विश्वास नहीं रखते। परिस्थितियों के अनुसार खुद को ढालकर मैच को विरोधी के पंजे से खींचकर लाना धोनी की आदत सी हो गई है।
विरोधी टीमें जानती हैं कि धोनी के विकेट की अहमियत क्या है। धोनी खुद भी अपने विकेट की कीमत पहले से बेहतर समझते हैं। अगर विकेट पर टिककर बल्लेबाजी करने की जरूरत है तो धोनी उसी के हिसाब से बल्लेबाजी कर पारी को आगे बढ़ाते हैं। साथ ही, बीच-बीच में कमजोर गेंद पर प्रहार कर गेंदबाजों को हावी होने का मौका भी नहीं देते। गियर बदलने में उन्हें देर नहीं लगती। असल में वे जानते हैं कि कैसे धीरे-धीरे अपने लक्ष्य की बढ़ते हुए रफ्तार में बदलाव करना है।
अगर इस बात को आंकड़ों की नजर से देखा जाए तो, 120 वनडे खेल चुके धोनी का करियर औसत 47।81 है, वहीं 36 मैचों में बतौर कप्तान उन्होंने 57.83 की औसत से रन बनाए हैं। इससे पता चलता है कि वे कप्तानी की जिम्मेदारी से टूटने वाले खिलाडियों में से नहीं है, बल्कि यह जिम्मेदारी उन्हें और मजबूत बनाती है। कप्तान, विकेटकीपर और बल्लेबाज की तिहरी भूमिका निभाने वाले धोनी सभी जिम्मेदारियों को अच्छी तरह से निभाने में सक्षम रहें हैं। नम्बर 5 या 6 पर कठिन परिस्थितियों में बल्लेबाजी कर धोनी कई बार टीम के लिए संकटमोचक की भूमिका निभा चुके हैं। जिन 36 मैचों में धोनी ने कप्तानी की है उनमें से 19 बार टीम को जीत मिली है और 14 में हार। जीते हुए मुकाबलों में धोनी का औसत 82.44 का है, वहीं जिन मैचों में टीम हारी है उनमें उनका औसत गिरकर 32.07 रह जाता है। यह बात साबित करती है कि धोनी का प्रदर्शन टीम की जीत में अहम रोल अदा करता है।
कप्तान के तौर पर धोनी में जोखिम लेने की हिम्मत भी नजर आती है। वे लकीर के फकीर बनने के बजाए जीत हासिल करने के लिए नए तरीके आजमाने से पीछे नहीं हटते। चौथे मैच में ही सनत जयसूर्या भारतीय गेंदबाजों के लिए खतरा बनते जा रहे थे, ऐसे मौके पर धोनी गेंद हरभजन सिंह को थमाते हैं। हरभजन भी अपने कप्तान के फैसले को सही साबित करते हुए जयसूर्या को आउट कर देते हैं। कप्तानी की समझ के बारे में कहा जाए तो धोनी प्रयोग करने से नहीं डरते और अपने फैसले के परिणाम भुगतने के लिए भी तैयार रहते हैं। वे हार और जीत दोनो के लिए किसी एक को नहीं, बल्कि उसे टीम की साझा जिम्मेदारी मानते हैं। यह एक कप्तान की सबसे बड़ी खूबी है जो व्यक्गित
आरोपों से बचते हुए पूरी टीम को साथ लेकर चलने की कला जानता हो।
धोनी के पूर्व के कप्तानों के प्रदर्शन पर देखा जाए तो राहुल द्रविड़ ने 79 वनडे मैचों में भारत की कप्तानी की। बतौर कप्तान उन्होंने 42 से ज्यादा की औसत से रन बनाए, जबकि उनका करियर औसत 39.49 का ही है। सचिन तेंदुलकर के लिए कप्तानी एक बुरे दौर की तरह रही। अपने 73 मैचों के कप्तानी के सफर में सचिन का औसत 37.75 ही रहा, जबकि उनका करियर औसत 44 के ज्यादा है। सचिन की बल्लेबाजी पर कप्तानी का दबाव साफ तौर पर देखा जा सकता था। धोनी जानते हैं कि उन्हें टीम के युवा खिलाडियों से कैसे काम कराना है। युवाओं को तरजीह देने के कारण कई बार उनकी तुलना सौरव गांगुली से भी की जाती है जिन्होने अपनी कप्तानी में युवाओं की टीम बनाने का काम किया था।
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