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Friday, January 30, 2009

आईपीएल में गेंदबाजों के साथ भेदभाव क्‍यों

भारत मल्‍होत्रा

क्रिकेट को हमेशा से ही बल्‍लेबाजों का खेल कहा जाता रहा है। यही वजह है कि गेंदबाजों को बल्‍लेबाजों के मुकाबले हमेशा कम अहमियत मिलती रही है। महेंद्र सिंह धोनी की बेस प्राइस 4 लाख अमेरिकी डॉलर थी, लेकिन नीलामी में उन्‍हें लगभग इसकी चौगुनी कीमत (15 लाख अमेरिकी डॉलर) मिलती है। दूसरे सेशन में पीटरसन की बेस प्राइस 13.5 लाख डॉलर तय होती है। माइकल क्‍लार्क भी मिलियन डॉलर बेबी बन जाते हैं। लेकिन, किसी भी गेंदबाज को इस कीमत के लायक नहीं समझा जाता। गेंद और बल्‍ले के इस खेल में गेंद के साथ यह भेदभाव आईपीएल में भी जारी है।

आईपीएल के दूसरे सीजन में इंग्‍लेंड के पूर्व कप्‍तान केविन पीटरसन की बेस प्राइस 13।5 लाख डॉलर तय की गई है। इस बात की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि वे आईपीएल के सबसे मंहगे खिलाड़ी बन जाएं। हालांकि, फिलहाल महेंद्र सिंह धोनी पिछले साल मिले 15 लाख अमेरिकी डॉलर के साथ आईपीएल के सबसे मंहगे खिलाड़ी हैं। लेकिन, पीटरसन की बेस प्राइस और उनकी मांग को देखते हुए यह कोई हैरत की बात नहीं कि वे धोनी को पीछे छोड़ आईपीएल के सबसे महंगे खिलाड़ी बन जाएं। आखिर पीटरसन एक जबर्दस्‍त बल्‍लेबाज हैं, उनके पास क्रिकेट के सारे शॉट्स मौजूद हैं। साथ ही, वे ‘स्विच हिटिंग’ के भी माहिर हैं। लंबे और गगनचुंबी शॉट्स खेलने में भी पीटरसन माहिर खिलाड़ी हैं। अगर धोनी और पीटरसन की बल्‍लेबाजी क्षमता को सामने रखें और थोड़ी देर के लिए भारतीय खिलाडि़यों के प्रति अपने झुकाव को छोड़ दें, तो बल्‍लेबाजी क्षमता के हिसाब से पीटरसन कहीं न कहीं धोनी से आगे ही खड़े नजर आते हैं। इस तुलना का उद्देश्‍य धोनी की क्षमताओं को कमतर करके आंकना कतई नहीं है। ऐसे में फ्रेंचाईजी अगर पीटरसन को धोनी से ज्‍यादा कीमत देकर खरीदते हैं तो इसमें परेशान होने जैसी कोई बात नजर नहीं आती।

पीटरसन ही नहीं, ऑस्‍ट्रेलियाई उपकप्‍तान माइकल क्‍लार्क के लिए भी 12.5 लाख डॉलर की भारी भरकम बेस प्राइस रखे जाने की खबर है। बतौर बल्‍लेबाज क्‍लार्क की प्रतिभा पर संदेह नहीं जताया जा सकता। लेकिन, फिर एक बात जो सामने आती है क्या भारी भरकम रकम के ऊपर सिर्फ बल्‍लेबाजों का ही हक है। क्‍या, क्रिकेट का दूसरा पहलू इस ईनाम का हकदार नहीं। आखिर, क्‍यों बेस प्राइस तय करते समय इन सब बातों को नजरअंदाज कर‍ दिया जाता है। क्‍या, यह सब नियम और कीमतें सिर्फ बल्‍लेबाजों के हितों को ध्‍यान में रखकर नहीं बनाई गई लगती हैं? इस सवाल की वजह भी है। पीटरसन के हमवतन और वर्तमान में दुनिया के सर्वश्रेष्‍ठ आलराउंडर माने जाने वाले एंड्रयू फ्लिंटॉफ की बेस प्राइस साढ़े नौ लाख डॉलर रखी गई है। फ्लिंटॉफ एक ऐसे खिलाड़ी हैं, जो किसी भी टीम में केवल अपनी बल्‍लेबाजी या गेंदबाजी के दम पर जगह बना सकते हैं। उन्‍होंने अपने प्रदर्शन से इस बात को कई मौकों पर साबित किया है। फटाफट क्रिकेट में तो उनकी उपयोगिता और बढ़ जाती है। वे आक्रामक बल्‍लेबाजी में माहिर हैं और बड़े शॉट लगाने की उनकी क्षमता पर किसी को संदेह नहीं है। अपने दम पर मैच का रुख पलटने का माद्दा रखते हैं फ्लिंटॉफ। भले ही उनके हाथ में गेंद हो या बल्‍ला। जानकर उन्‍हें कपिल देव, इमरान खान, रिचर्ड हैडली और इयान बॉथम जैसे महान आलरांउडरों की जमात में खड़ा करते हैं। तो, फिर फ्लिंटॉफ की बेस प्राइस पीटरसन और क्‍लार्क से कम क्‍यों? फ्लिंटॉफ के टीम में होने से टीम में संतुलन बढ़ जाता है। उनकी वजह से कप्‍तान के पास एक अतिरिक्‍त बल्‍लेबाज या गेंदबाज खिलाने का विकल्‍प खुल जाता है। फिर भी इस खिलाड़ी को उसकी प्रतिभा और उपयोगिता के अनुरुप क्‍यों नहीं मापा गया, यह सवाल समझ से परे है।

इस बात में कोई संदेह नहीं कि लोग फटाफट क्रिकेट के नए दौर में बल्‍लेबाजों को हावी होते देखना चाहते हैं। किसी गेंदबाज के बेहतरीन प्रदर्शन के बजाए लोग युसुफ पठान और सनथ जयसूर्या के लंबे लंबे शॉट्स देखने में ज्‍यादा दिलचस्‍पी दिखाते हैं। 59 मैचों के इस टूर्नामेंट में 1702 चौके और 622 छक्‍के लगे। यानी एक मैच में 10 से ज्‍यादा छक्‍के। तो, क्‍या यह सब झमेला लोगों को खुश करने के लिए किया जा रहा है? बल्‍लेबाजों के मुकाबले गेंदबाजों और आलराउंडरों को कमतर कर क्‍यों आंका जा रहा है? पॉल कॉलिंगवुड के लिए बेस प्राइस 2 लाख डॉलर तय की गई है, माना कि पीटरसन एक बेहतर खिलाड़ी हैं, लेकिन क्‍या यह फर्क सात गुना से भी ज्‍यादा है। इसका जवाब है नहीं। आईपीएल को शुरुआत से ही बल्‍लेबाजों का खेल कहा गया। यह बात सच भी होती दिखी जब पहले ही मैच में ब्रेडन मैकुअलम ने 153 रनों की ताबड़तोड़ पारी खेल अपनी तरह के पहले टूर्नामेट का बेहतरीन आगाज किया।

लेकिन, गेंदबाजों ने आईपीएल में अपने हिस्‍से का काम किया। आईपीएल में खेले गए 59 मुकाबलों में एक तिहाई से ज्‍यादा मौके ऐसे रहे, जब आलरांउडर और गेंदबाज ‘मैन ऑफ द मैच’ का खिताब जीतने में सफल रहे। मनप्रीत सिंह गोनी, मखाया नतिनी, सुहैल तनवीर, शोएब अख्‍तर, शॉन पॉलक और धवल कुलकर्णी जैसे स्‍थापित और नए गेंदबाजों सहित यह लिस्‍ट लंबी है। सबसे खास बात यह कि ‘मोस्‍ट वैल्‍यूबल प्‍लेयर’ का खिताब एक ऑलराउंडर शेन वाटसन (राजस्‍थान रॉयल्‍स) ने ही जीता। 20 ओवरों के इस खेल में एक गेंदबाज के पास अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए महज 4 ही ओवर होते हैं। ऐसे में अगर राजस्‍थान रॉयल्‍स के सुहैल तनवीर चेन्‍नई सुपरकिंग्‍स के खिलाफ केवल चार ओवरों में ही 6 विकेट हासिल करता है, तो यह एक बड़ी उपल‍ब्धि ही कही जाएगी। ऐसे में आईपीएल के कर्ताधर्ता यह क्‍यों भूल जाते हैं कि क्रिकेट गेंद और बल्‍ले का खेल है और ऐसे में गेंदबाजों को भी बराबर तवज्‍जो दी जानी चाहिए।

Friday, November 21, 2008

पीटरसन को तलाशनी होंगी जीत की नई राहें



भारत और इंग्‍लैंड की इस सीरीज को दो टीमों से ज्‍यादा दो कप्‍तानों की जंग कहा गया। दो युवा जाबांज कप्‍तान। दो ऐसे कप्‍तान जिनके लिए जीत ही एकमात्र लक्ष्‍य। दो ऐसे कप्‍तान जो विरोधी को दिमागी लड़ाई में हराने में यकीन रखते हों। लेकिन, महेंद्र सिंह धोनी और केविन पीटरसन के बीच इस दिमागी जंग में पीटरसन कहीं पिछड़ते नजर आ रहे हैं।

भारत मल्‍होत्रा

राजकोट, इंदौर और अब कानपुर। इंग्‍लैंड के लिए मैदान बदलते रहे, लेकिन किस्‍मत नहीं। सात मैचों की वनडे सीरीज में अभी तक हुए मुकाबलों में केविन पीटरसन की टीम हर मोर्चे पर धोनी की टीम के मुकाबले उन्‍नीस ही नजर आ रही है।

केविन पीटरसन का बतौर कप्‍तान विदेशी जमीन पर यह पहला दौरा है। लेकिन, अभी तक इस दौरे पर उनके लिए कुछ भी सही होता नजर नहीं आ रहा। मुंबई एकादश के‍ खिलाफ अभ्‍यास मैच की हार से शुरु हुआ सिलसिला अभी तक जारी है। सात मैचों की सीरीज में पीटरसन की टीम अब एक ऐसे मुकाम पर खड़ी है जहां से उसकी वापसी की राहें अब लगभग नामुनकिन सी हो गयी हैं। सीरीज में 3-0 से पिछड़ने के बाद इंग्‍लैंड अब बचाव की मुद्रा में आ गई है।

भारत दौरे पर आने से पहले इंग्‍लैंड के कोच पीटर मूर्स और पीटरसन की ओर से लगातार इस तरह की बयानबाजी हो रही थी कि भारत दौरे पर वे जीतने आ रहे हैं। लेकिन भारत की जमीं पर उतरने के एक पखवाड़ा बीतने के बाद वो बातें हवाई महल नजर आने लगे हैं।

इस सीरीज को केविन पीटरसन और महेंद्र सिंह धोनी की दिमागी जंग कहा गया। ऐसा कहा जाने लगा कि इन दोनो में जो यह जंग जीतेगा अंत में सीरीज का ताज भी उसी के सिर होगा। पीटरसन काफी आक्रामक कप्‍तान माने जाते हैं। एक ऐसा कप्‍तान जो बने बनाए रास्‍तों पर चलने में विश्‍वास नहीं रखता वो अपने रास्‍ते खुद तय करता है। मंजिल पर पहुंचने का हर मुनकिन रास्‍ता अपनाते के लिए तैयार दिखायी देते थे पीटरसन- लेकिन भारत दौरे पर उनका सामना भारत के महेंद्र सिंह धोनी से हुआ। धोनी की चालों के सामने पीटरसन के सभी मोहरे कमजोर साबित हो रहे हैं।

उनके बल्‍लेबाज रन बनाने में कामयाब नहीं हो रहे और गेंदबाज विकेटों को तरसते नजर आ रहे हैं। अंग्रेजों के लिए यह बड़ी समस्‍या तो है ही लेकिन एक आदमी जिस पर सबसे ज्‍यादा दबाव हैं वो है केविन पीटरसन। बल्‍लेबाजी क्रम में बदलाव किया गया टीम का कॉम्बिनेशन बदला गया। लेकिन नतीजा वही सिफर। दक्षिण अफ्रीकी मूल के इस इंग्लिश कप्‍तान के सामने इस समय काफी मुश्किलें हैं।

वैसे पीटरसन का क्रिकेट करियर भी किसी रोमांच से कम नहीं है। पीटरसन ने अपने क्रिकेट करियर की वहीं से की। लेकिन, जब राष्‍ट्रीय टीम के लिए खेलने की बात सामने आयी तो दक्षिण अफ्रीका में मौजूद कोटा सिस्‍टम उनके आड़े आ गया। इस वजह से उन्‍हें दक्षिण अफ्रीका के लिए खेलने का मौका नहीं मिल सका। पीटरसन ने हार नहीं मानी। और वे पहुंच गए अपनी मां के देश इंग्‍लैंड। उनके काउंटी के दिनों से ही उन्‍हें टीम मे लिए जाने की मांग उठने लगी। चार साल तक यहां कांउटी क्रिकेट में शिरकत करने के बाद उन्‍होने खुद को इंग्‍लैंड की टीम में खेलने की शर्त को पूरा किया। उसके बाद अंतरराष्‍ट्रीय क्रिकेट के मंच पर उन्‍होने खुद को एक धमाके के साथ पेश किया।

अगस्‍त में जब माइकल वॉन के कप्‍तानी छोड़ने के बाद इंग्‍लैंड की बागडोर केविन पीटरसन के हाथों में आई। बतौर कप्‍तान अपनी पहली वनडे सीरीज में उन्‍होने दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ 5 मैचों की सीरीज में 4-0 से जीत हासिल की। इस जीत के पीछे पीटरसन के उस गुस्‍से को भी वजह माना गया जो उनके अंदर कहीं छिपा हुआ था। शायद वो खीझ भी थी जिसकी वजह से उन्‍हें दक्षिण अफ्रीका के लिए खेलने का मौका नहीं मिला। पीटरसन की कप्‍तानी में टीम इंग्‍लैंड के प्रदर्शन में जबरदस्‍त उछाल देखा गया। क्रिकेट के जानकार और पुराने इंग्‍लैंड खिलाडि़यों को पीटरसन के रूप में इंग्‍लैंड क्रिकेट का नया तारणहार नजर आने लगा। हालांकि उनके चाहने वालों के बीच एक जमात ऐसी भी थी जो पीटरसन को कप्‍तान बनाए जाने के खिलाफ था। और अगर पीटरसन भारत से बुरी तरह से हारकर जाते हैं जो कहीं न कहीं उन आवाजों को फिर से दम मिलेगा।

उनकी कप्‍तानी का असल इम्तिहान भारत के खिलाफ माना गया। और, यहां पर उनके दांव कामयाब होते नहीं दिख रहे। इस सब के बीच पीटरसन के चरित्र को देखते हुए एक बात तो कही जा सकती है कि वो इतनी आसानी से हार नहीं मानेंगे। बेशक सीरीज में उनके लिए अब जीत की उम्‍मीद लगभग न के बराबर हो लेकिन केपी अपनी ओर से पूरा जोर लगाएंगे कि सीरीज में रोमांच बना रहे।

Wednesday, November 19, 2008

टीम इंडिया से पहले युवराज से पार पाना होगा इंग्‍लैंड की टीम को

दो मैचों में 253 का रन औसत। दो शतक। युवराज सिंह का यह प्रदर्शन इंग्‍लैंड कप्‍तान केविन पीटरसन के लिए बड़ी चिंता का विषय है। कानपुर के ग्रीन पॉर्क में केपी के सामने सबसे बड़ी समस्‍या टीम इंडिया के युवराज से पार पाने की होगी।

भारत मल्‍होत्रा

‘मैं युवराज को होटल के बाहर ले जाउंगा और कुछ ऐसा करूंगा ताकि वो कानपुर वनडे में न खेल पाएं’- 17 नवम्‍बर को खेले गए दूसरे वनडे के बाद इंग्‍लैंड के कप्‍तान केविन पीटरसन ने भले ही यह बात मजाक में कही हो, लेकिन यह बात युवराज के प्रति इंग्‍लैंड टीम के खौफ को दिखाने के लिए काफी है। युवराज सिंह इस सीरीज से पहले फॉर्म में नहीं थे, लेकिन इंग्‍लैंड सीरीज के अब तक दोनों मैचों में युवराज ने शानदार खेल दिखाया है। पहले मैच में सिर्फ 78 गेंद में 138 रन की ताबड़तोड़ पारी खेल युवराज ने अंग्रेज गेंदबाजों के धुर्रे बिखेर दिए। दूसरे मैच में 29 के स्‍कोर पर तीन भारतीय बल्‍लेबाजों को पैवेलियन भेजने के बाद अंग्रेज टीम इंडिया को झटका देने की उम्‍मीद पालने लगे थे, लेकिन इस बार भी उनके अरमानो पर पानी फेरने का काम किया पंजाब के युवराज सिंह ने। युवराज ने एक बार फिर सैकड़ा जड़ा और भारत का स्‍कोर 290 के पार पहुंचाया। इतना होता तो भी खैर थी, लेकिन बल्‍ले के बाद युवी ने अपनी गेंदों से भी कहर बरपा दिया। उन्‍होंने चार इंग्लिश बल्‍लेबाजों को पैवेलियन की राह भेजा। तो, अब राजकोट और इंदौर के इन दो मुकाबलों के बाद इंग्‍लैंड टीम के लिए कानपुर में टीम इंडिया का युवराज सबसे बड़ा खतरा है। धोनी कहते हैं कि युवराज जब फॉर्म में होते हैं तो वे सचिन और सहवाग से ज्‍यादा आक्रामक होते हैं और दूसरी ओर इंग्‍लैंड टीम के खिलाड़ी ग्रीम स्‍वॉन खुद को बदकिस्‍मत मानते हैं क्‍यों‍कि युवराज ने उनकी टीम के खिलाफ अपनी खोयी हुई फॉर्म पाई। कानपुर मुकाबले में अंग्रेजों के सामने सबसे बड़ी चुनौती आग उगलते युवराज के बल्‍ले को शांत करने की होगी। अभी तक खेले गए दोनो मुकाबलों में केविन पीटरसन की युवराज को रोकने की हर कोशिश नाकाम साबित हुई है। उनका कोई भी गेंदबाज युवराज पर किसी भी प्रकार का दबाव बना पाने में असफल रहा है। केपी की तेज गेंदबाजों की चौकड़ी स्‍टीव हॉर्मिसन, जेम्‍स एंडरसन और स्‍टुअर्ट ब्रॉड और एंड्रयू फ्लिंटॉफ भी युवराज को बांध पाने में असफल रही। युवराज अपने मन माफिक शॉट खेलते रहे और इंग्‍लैंड टीम उनके सामने लाचार नजर आई। उन्‍हें कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर इस खब्‍बू बल्‍लेबाज को कैसे रोका जाए। युवराज भी इस अंदाज में खेलते नजर आए मानो कि पिछले काफी अर्से से चले आ रहे रनों के सूखे को अंग्रेजों के खिलाफ ही पूरा करेंगे। इंग्‍लैंड टीम के थिंक टैंक में अब जिस भारतीय खिलाड़ी को लेकर सबसे ज्‍यादा चर्चा हो रही होगी, वो बेशक युवराज सिंह ही होंगे। कोच पीटर मूर्स और कप्‍तान केविन पीटरसन इसी बात पर विचार कर रहे होंगे कि आख्रिर किस तरह से युवराज को रन बनाने से रोका जाए। आखिर टीम इंडिया का यह जाबांज उनके रास्‍ते का सबसे बड़ा रोड़ा बना हुआ है। युवराज को रोकने के लिए मेहमान टीम तमाम तरह की नीतियों पर विचार कर रही होंगी। युवराज को रोकने का सबसे आसान तरीका जो जगजाहिर है- स्पिन गेंदबाजों के खिलाफ उनका कमजोर प्रदर्शन। लेकिन, यहां पर अंग्रेजों के पास कुछ खास औजार नहीं है। इंग्‍लैंड की ओर से समित पटेल को अभी तक दो मैचों में बतौर स्पिनर खिलाया गया, लेकिन किसी भी मैच में उन्‍होने अपने कोटा के पूरे 10 ओवर नहीं फेंके। ऐसे में टीम में ग्रीम स्‍वॉन को शामिल किया जा रहा है। उम्‍मीद यही कि एक विशेषज्ञ ऑफ स्पिनर होने के नाते स्‍वॉन कुछ खास कर पाएंगे। बात तो यह भी चली कि मोंटी पनेसर को टीम का साथ देने के लिए इंग्‍लैंड से बुलाया जाए।
युवराज पर दबाव बनाने की नीति अपनाकर केपी एंड कंपनी उन्‍हें सस्‍ते में आउट करने की कोशिश कर सकती है। वो चाहेंगे कि युवराज को पारी की शुरुआत में आसानी से रन न बनाने दिए जाएं। उन्‍हें खुलकर खेलने से रोककर उनके नैचुरल फ्लो को रोकना इंग्‍लैंड की रणनीति का हिस्‍सा हो सकता है।