भारत मल्होत्रा
अजिंक्य रहाने, धवल कुलकर्णी, शिवकांत शुक्ला, भुवनेश्वर कुमार, तन्मय श्रीवास्तव- ये कुछ ऐसे नाम हैं जो इस साल रणजी ट्रॉफी में नए सितारों के रूप में उभरे हैं। अपने प्रदर्शनों से इन खिलाडि़यों ने यह उम्मीद जगाई है कि भारतीय क्रिकेट का भविष्य सुरक्षित है। राष्ट्रीय टीम के खिलाडि़यों की बात छोड़ दें तो इनमें भी यह क्षमता है कि वक्त पड़ने पर टीम इंडिया के लिए अच्छा प्रदर्शन कर सकें।
रणजी ट्रॉफी 2008-09 मुंबई के नाम रहा। फाइनल में उत्तर प्रदेश को 243 रनों से मात देकर मुंबई ने 38वीं बार खिताब पर कब्जा किया। दोनो ही टीमों में कुछ सितारे ऐसे थे जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं, जबकि कुछ खिलाड़ी इस सीजन में शानदार प्रदर्शन कर चर्चाओं में बने हैं। दोनो ही टीमों के कुछ खिलाडि़यों ने इस सीजन में बेहतर प्रदर्शन कर टीम इंडिया के दरवाजे की ओर अपने कदम बढ़ाने शुरु कर दिए हैं।
अंजिक्या रहाणे (मुंबई, 1095रन), युवा तेज गेंदबाज धवल कुलकर्णी ( मुंबई, 42 विकेट) और भुवनेश्वर कुमार (उत्तर प्रदेश, 31 विकेट), ने अपने प्रदर्शनों से अपने लिए एक खास मुकाम बनाया है। भुवनेश्वर कुमार की उम्र अभी 18 साल है, तो बाकी दोनो खिलाडि़यों ने उम्र का बीसवां पड़ाव ही पार किया है।
मुंबई के धवल कुलकर्णी का यह पहला घरेलू सीजन है। 20 साल के दाएं हाथ के इस तेज गेंदबाज ने अपने पहले ही सीजन में लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा है। इस साल खेले गए 11 मैचों में उन्होने 45 विकेट अपने नाम किए हैं। उनकी गेंदबाजी में लाइन और लेंग्थ तो अच्छी है। फाइनल मुकाबले में उन्होने दूसरी पारी में 76 रन देकर उत्तर प्रदेश के पांच विकेट अपने नाम किए। सेमीफाइनल में भी उन्होने तीन विकेट लिए थे।
मुंबई के ही अंजिक्या रहाणे। दाएं हाथ के इस बल्लेबाज में काफी संभावनाएं देखी जा रही हैं। इस सीजन में खेले 11 मैचों में उन्होंने 1095 रन बनाए हैं। इस दौरान उन्होने 4 शतक और पांच अर्द्धशतक लगाए हैं। इससे पता चलता है कि इस बल्लेबाज में निरंतर अच्छा प्रदर्शन करने का माद्दा है। सेमीफाइनल में भी उन्होने सौराष्ट्र के खिलाफ 85 रनों की उपयोगी पारी खेली थी। वसीम जाफर इस मैच में तिहरा शतक लगाकर इस साल रन बनाने वालों की लिस्ट में सबसे आगे निकल गए थे, लेकिन इससे पहले रहाणे ही इस दौड में सबसे आगे थे।
भले ही उत्तर प्रदेश मुकाबला हार गई हो, लेकिन उसके कुछ खिलाडि़यों ने भी अपने प्रदर्शन के दम पर अपनी पहचान दर्ज कराने की कोशिश की है। उत्तर प्रदेश के सलामी बल्लेबाज शिवकांत शुक्ला का नाम सबसे पहले जेहन में आता है। सेमीफाइनल में तमिलनाडु के खिलाफ नाबाद 178 रनों की पारी खेलकर शुक्ला ने अपनी टीम को फाइनल में पहुंचाने का काम किया। शुक्ला ने इस सीजन में खेले सात मैचों में 532 रन बनाए। भले ही 32 की औसत ज्यादा प्रभावशाली न लगे, लेकिन अहम बात रही अहम मौकों पर उनका अच्छा प्रदर्शन। शुक्ला सेमीफाइनल में अपनी टीम के नायक रहे, वहीं फाइनल में वे अकेले ही मुंबई के आक्रमण से लोहा लेते नजर आए। फाइनल मुकाबले में 99 रनों पर आउट होने के बाद शुक्ला ने कहा था कि 'मुझे शतक न बना पाने का इतना दुख नहीं है बल्कि इस बात का दुख है कि हम आधा मैच हार चुके हैं।' उन्होने बताया था कि वे अपनी ऑफ ब्रेक गेंदबाजी सुधारने के लिए गए थे। अब चूंकि गेंदबाजी का सेशन दोपहर में शुरु होता था इसलिए सुबह के वक्त वे इंडोर विकेटों पर बॉल मशीन से बल्लेबाजी का अभ्यास करते थे। इससे उनकी बल्लेबाजी में निखार आया।
उत्तर प्रदेश के ही बाएं हाथ के सलामी बल्लेबाज तन्मय श्रीवास्तव पिछले साल हुए यूथ वर्ल्ड कप जीतने वाली भारतीय टीम की ओर से सबसे ज्यादा रन बनाने वाले खिलाड़ी थे। तन्मय ने चार सालों में तीसरी बार अपनी टीम को फाइनल में पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई। इस सीजन में खेले 9 मैचों में उन्होने 2 शतकों की मदद से 664 रन बनाए। हालांकि फाइनल मुकाबले में वे अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाए, फिर भी इस बल्लेबाज की प्रतिभा को नकार पाना चयनकर्ताओं के लिए आसान नहीं होगा।
भुवनेश्वर कुमार, इस गेंदबाज ने रणजी ट्रॉफी के फाइनल में अपनी टीम को शुरुआती बढ़त दिलाकर एक बार तो उत्तर प्रदेश को फ्रंट सीट पर लाकर खड़ा कर दिया था। मुंबई महज 55 रनों पर चार विकेट खोकर संकट में थी। जिसमें तीन विकेट 18 साल के इस दाएं हाथ के तेज गेंदबाज के ही खाते में गए थे। इनमें सचिन तेंदुलकर का विकेट भी था। इसके अलावा वसीम जाफर और विनायक सामंत का विकेट भी शामिल था। भले ही उनके पास तेजी न हो, लेकिन नयी गेंद से स्विंग कराने की क्षमता ने मुंबई के टॉप ऑर्डर को टिकने नहीं दिया। इसके बाद भी जब रोहित शर्मा और अभिषेक नायर के बीच 207 रनों की साझेदारी हो चुकी थी, कप्तान मोहम्मद कैफ ने नयी गेंद लेते ही भुवनेश्वर कुमार के हाथ में गेंद पकड़ाई। पहली ही गेंद पर उन्होने नायर को 99 पर आउट कर इस साझेदारी का अंत किया। कुमार ने पहली पारी में पांच विकेट लिए। यह प्रदर्शन अंतरराष्ट्रीय स्तर के आरपी सिंह, प्रवीण कुमार और पीयूष चावला सरीखे गेंदबाजों के होते हुए किया गया था।
अपने प्रदर्शनों से इन खिलाडि़यों ने यह उम्मीद जगाई है कि भारतीय टीम का भविष्य सुरक्षित है। राष्ट्रीय टीम के खिलाडि़यों की बात छोड़ दें तो इनमें भी यह क्षमता है कि वक्त पड़ने पर टीम इंडिया के लिए अच्छा प्रदर्शन कर सकें। टीम इंडिया के हालिया प्रदर्शन को देखते हुए इनके लिए राष्ट्रीय टीम में फिलहाल तो जगह बनती नहीं दिखती, लेकिन इतना तय है कि यदि ये खिलाड़ी अपने प्रदर्शनों का सिलसिला यूं ही जारी रखते हैं तो चयनकर्ताओं के लिए इन्हें लंबे वक्त तक टीम से बाहर रखना मुश्किल होगा।
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