भारत मल्होत्रा
मुंबई ने उत्तर प्रदेश को 243 रनों से हराकर 38वीं बार रणजी ट्रॉफी पर अपना कब्जा किया। इस मैच में मुंबई की जीत में जहीर खान ने अहम भूमिका निभाई। पहली पारी में सात विकेट अपने नाम कर जहीर ने साबित कर दिया कि मैदान और विरोधी भले ही बदलते रहें, उनका जज्बा कभी नहीं बदलता।
वो भारतीय तेज गेंदबाजी के अगुवा हैं। हर गेंद में वे अपना सौ प्रतिशत से ज्यादा देते नजर आते हैं। मैदान पर अपनी पूरी ताकत झोंकना ही उनकी पहचान है। बल्लेबाज की आंख में आंख डालकर देखना और उस पर दबाव बनाना उनकी रणनीति का एक हिस्सा है। नई गेंद से जहां परंपरागत स्विंग नजर आता है तो गेंद पुरानी होने के साथ ही रिवर्स स्विंग का खतरनाक तीर उनके तरकश से बाहर आता है। हम बात कर रहे हैं मुंबई के तेज गेंदबाज जहीर खान की। इसमें कोई संदेह नहीं कि बाएं हाथ का यह तेज गेंदबाज इस समय अपने क्रिकेट करियर के सर्वश्रेष्ठ दौर से गुजर रहा है।
उत्तर प्रदेश की उम्मीदें एक बार फिर सेमीफाइनल की अपनी स्टार जोड़ी शिवाकांत शुक्ला और परविंदर सिंह पर टिकी थी। मुंबई के अभिषेक नायर ने परविंदर सिंह को आउट कर इस साझेदारी का अंत तो कर दिया, लेकिन शुक्ला ने भुवनेश्वर कुमार के साथ मिलकर उत्तर प्रदेश की उम्मीदों को जिंदा रखा। मैच किसी भी ओर रुख कर सकता था।
लेकिन, बावजूद इसके मुंबई की टीम किसी तरह की चिंता में नजर नहीं आ रही थी। जहीर खान ने पहले सेशन में ज्यादा गेंदबाजी नहीं की। लेकिन, दूसरे सेशन में उन्होंने सारी कमी दूर कर दी। जहीर ने उत्तर प्रदेश की पहली पारी में एक-दो नहीं पूरे सात विकेट अपने नाम किए। इनमें से आखिरी चार विकेट तो उन्होने आठ गेंदों के अंतराल में हासिल किए। पहली पारी में उनका गेंदबाजी प्रदर्शन पर नजर डालें तो उन्होंने 27.2 ओवरों में 14 मेडन रखते हुए 54 रन देकर सात विकेट हासिल किए। दूसरी पारी में भी उन्होने एक विकेट लिया।
दरअसल, मुकाबला चाहे कोई भी हो जहीर किसी भी मुकाबले को हल्के में नहीं लेते। मुकाबले में कोताही बरतना जहीर की फितरत का हिस्सा ही नहीं है। उनका मंत्र है 'पूरी ताकत हर बार'। फिर चाहे वो रिकी पोंटिंग के नेतृत्व वाली विश्व चैंपियन ऑस्ट्रेलिया हो या फिर केविन पीटरसन की इंग्लैंड। और फिर चाहे वो रणजी ट्रॉफी का घरेलू मैच ही क्यों न हो। इंग्लैंड के खिलाफ हाल ही में खेली गई टेस्ट सीरीज में मैन ऑफ द सीरीज रहे जहीर खान की गेंदबाजी की धार में किसी तरह की कमी नजर नहीं आती। वे उसी लगन और मेहनत के साथ गेंदबाजी करते नजर आते हैं जैसे कि किसी अंतरराष्ट्रीय मैच में दिखाई पड़ते हैं। उनका जज्बा देखते ही बनता है। वह हर गेंद उतनी ही शिद्दत से फेंकते हैं। रन-अप में वही रिदम, गेंदों में वही तेजी और दिल में वही जूनून यही तो जहीर की पहचान।
अनिल कुंबले के अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कहने के बाद जहीर खान ने भारतीय गेंदबाजी की कमान अपने हाथ में संभाल ली है। वे नए गेंदबाजों को सहयोग और सलाह देते भी नजर आते हैं। जरुरी नहीं कि वे विकेट लेकर ही अपनी उपयोगिता साबित करें बल्कि, अपने अनुभवों को दूसरे नौजवान गेंदबाजों के साथ बांटकर वे उनकी मदद भी करते हैं। भारतीय टीम में जहां वे ईशांत शर्मा को सलाह देते नजर आते हैं वहीं रणजी मुकाबलों में उन्हें धवल कुलकर्णी को गेंदबाजी के गुर सिखाते हुए देखा गया।
मुंबई को 38वीं बार रणजी खिताब दिलाने वाले जहीर को एक दौर में मुंबई के साथ पूरे सीजन रहने के बाद भी खेलने का मौका नहीं मिला था। इसके बाद जहीर ने मुंबई की बजाए बड़ौदा का रुख किया। हालांकि जहीर हमेशा से ही मुंबई को अपनी घरेलू टीम मानते हैं।
जहीर का कहना है कि जब वे श्रीरामपुर से मुंबई आए तो उनके दो ही सपने थे एक मुंबई के लिए रणजी खेलना और दूसरा इसके जरिए भारतीय टीम में अपनी जगह बनाना। क्योंकि उन्हें पहले मुंबई की ओर से खेलने का मौका नहीं मिला तो उन्होने बड़ौदा की ओर से खेलना शुरु किया। साल 2006-07 में मुंबई के लिए अपना पहला मैच खेलने के बाद जहीर खान का यह तीसरा रणजी मुकाबला है।
इंग्लैंड के खिलाफ हाल ही में खेली गई टेस्ट सीरीज में मैन ऑफ द सीरीज रहे जहीर खान ने उत्तर प्रदेश के बल्लेबाजों के लिए रन बनाना भी मुश्किल किए रखा। इस फाइनल मुकाबले में मुंबई की जीत के नायकों में रोहित शर्मा ने अगर बल्ले से अपना रोल अदा किया तो जहीर खान ने अपनी गेंदबाजी के दम पर उत्तर प्रदेश के बल्लेबाजों के लिए परेशानी खड़ी की।
मुंबई के कप्तान वसीम जाफर ने कहा था कि सचिन तेंदुलकर और जहीर खान की मौजूदगी उनकी टीम के लिए काफी मददगार साबित होगी। भले ही सचिन का बल्ला इस मुकाबले में न बोला हो, लेकिन जहीर खान ने अपनी मौजूदगी का अहसास बड़े शानदार तरीके से करवाया। बड़े खिलाडि़यों के घरेलू मैचों में शिरकत करने से खेल का स्तर तो सुधरता है ही साथ ही साथ नौजवान खिलाडि़यों को काफी कुछ सीखने को भी मिल जाता है।
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