Friday, January 30, 2009

आईपीएल में गेंदबाजों के साथ भेदभाव क्‍यों

भारत मल्‍होत्रा

क्रिकेट को हमेशा से ही बल्‍लेबाजों का खेल कहा जाता रहा है। यही वजह है कि गेंदबाजों को बल्‍लेबाजों के मुकाबले हमेशा कम अहमियत मिलती रही है। महेंद्र सिंह धोनी की बेस प्राइस 4 लाख अमेरिकी डॉलर थी, लेकिन नीलामी में उन्‍हें लगभग इसकी चौगुनी कीमत (15 लाख अमेरिकी डॉलर) मिलती है। दूसरे सेशन में पीटरसन की बेस प्राइस 13.5 लाख डॉलर तय होती है। माइकल क्‍लार्क भी मिलियन डॉलर बेबी बन जाते हैं। लेकिन, किसी भी गेंदबाज को इस कीमत के लायक नहीं समझा जाता। गेंद और बल्‍ले के इस खेल में गेंद के साथ यह भेदभाव आईपीएल में भी जारी है।

आईपीएल के दूसरे सीजन में इंग्‍लेंड के पूर्व कप्‍तान केविन पीटरसन की बेस प्राइस 13।5 लाख डॉलर तय की गई है। इस बात की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि वे आईपीएल के सबसे मंहगे खिलाड़ी बन जाएं। हालांकि, फिलहाल महेंद्र सिंह धोनी पिछले साल मिले 15 लाख अमेरिकी डॉलर के साथ आईपीएल के सबसे मंहगे खिलाड़ी हैं। लेकिन, पीटरसन की बेस प्राइस और उनकी मांग को देखते हुए यह कोई हैरत की बात नहीं कि वे धोनी को पीछे छोड़ आईपीएल के सबसे महंगे खिलाड़ी बन जाएं। आखिर पीटरसन एक जबर्दस्‍त बल्‍लेबाज हैं, उनके पास क्रिकेट के सारे शॉट्स मौजूद हैं। साथ ही, वे ‘स्विच हिटिंग’ के भी माहिर हैं। लंबे और गगनचुंबी शॉट्स खेलने में भी पीटरसन माहिर खिलाड़ी हैं। अगर धोनी और पीटरसन की बल्‍लेबाजी क्षमता को सामने रखें और थोड़ी देर के लिए भारतीय खिलाडि़यों के प्रति अपने झुकाव को छोड़ दें, तो बल्‍लेबाजी क्षमता के हिसाब से पीटरसन कहीं न कहीं धोनी से आगे ही खड़े नजर आते हैं। इस तुलना का उद्देश्‍य धोनी की क्षमताओं को कमतर करके आंकना कतई नहीं है। ऐसे में फ्रेंचाईजी अगर पीटरसन को धोनी से ज्‍यादा कीमत देकर खरीदते हैं तो इसमें परेशान होने जैसी कोई बात नजर नहीं आती।

पीटरसन ही नहीं, ऑस्‍ट्रेलियाई उपकप्‍तान माइकल क्‍लार्क के लिए भी 12.5 लाख डॉलर की भारी भरकम बेस प्राइस रखे जाने की खबर है। बतौर बल्‍लेबाज क्‍लार्क की प्रतिभा पर संदेह नहीं जताया जा सकता। लेकिन, फिर एक बात जो सामने आती है क्या भारी भरकम रकम के ऊपर सिर्फ बल्‍लेबाजों का ही हक है। क्‍या, क्रिकेट का दूसरा पहलू इस ईनाम का हकदार नहीं। आखिर, क्‍यों बेस प्राइस तय करते समय इन सब बातों को नजरअंदाज कर‍ दिया जाता है। क्‍या, यह सब नियम और कीमतें सिर्फ बल्‍लेबाजों के हितों को ध्‍यान में रखकर नहीं बनाई गई लगती हैं? इस सवाल की वजह भी है। पीटरसन के हमवतन और वर्तमान में दुनिया के सर्वश्रेष्‍ठ आलराउंडर माने जाने वाले एंड्रयू फ्लिंटॉफ की बेस प्राइस साढ़े नौ लाख डॉलर रखी गई है। फ्लिंटॉफ एक ऐसे खिलाड़ी हैं, जो किसी भी टीम में केवल अपनी बल्‍लेबाजी या गेंदबाजी के दम पर जगह बना सकते हैं। उन्‍होंने अपने प्रदर्शन से इस बात को कई मौकों पर साबित किया है। फटाफट क्रिकेट में तो उनकी उपयोगिता और बढ़ जाती है। वे आक्रामक बल्‍लेबाजी में माहिर हैं और बड़े शॉट लगाने की उनकी क्षमता पर किसी को संदेह नहीं है। अपने दम पर मैच का रुख पलटने का माद्दा रखते हैं फ्लिंटॉफ। भले ही उनके हाथ में गेंद हो या बल्‍ला। जानकर उन्‍हें कपिल देव, इमरान खान, रिचर्ड हैडली और इयान बॉथम जैसे महान आलरांउडरों की जमात में खड़ा करते हैं। तो, फिर फ्लिंटॉफ की बेस प्राइस पीटरसन और क्‍लार्क से कम क्‍यों? फ्लिंटॉफ के टीम में होने से टीम में संतुलन बढ़ जाता है। उनकी वजह से कप्‍तान के पास एक अतिरिक्‍त बल्‍लेबाज या गेंदबाज खिलाने का विकल्‍प खुल जाता है। फिर भी इस खिलाड़ी को उसकी प्रतिभा और उपयोगिता के अनुरुप क्‍यों नहीं मापा गया, यह सवाल समझ से परे है।

इस बात में कोई संदेह नहीं कि लोग फटाफट क्रिकेट के नए दौर में बल्‍लेबाजों को हावी होते देखना चाहते हैं। किसी गेंदबाज के बेहतरीन प्रदर्शन के बजाए लोग युसुफ पठान और सनथ जयसूर्या के लंबे लंबे शॉट्स देखने में ज्‍यादा दिलचस्‍पी दिखाते हैं। 59 मैचों के इस टूर्नामेंट में 1702 चौके और 622 छक्‍के लगे। यानी एक मैच में 10 से ज्‍यादा छक्‍के। तो, क्‍या यह सब झमेला लोगों को खुश करने के लिए किया जा रहा है? बल्‍लेबाजों के मुकाबले गेंदबाजों और आलराउंडरों को कमतर कर क्‍यों आंका जा रहा है? पॉल कॉलिंगवुड के लिए बेस प्राइस 2 लाख डॉलर तय की गई है, माना कि पीटरसन एक बेहतर खिलाड़ी हैं, लेकिन क्‍या यह फर्क सात गुना से भी ज्‍यादा है। इसका जवाब है नहीं। आईपीएल को शुरुआत से ही बल्‍लेबाजों का खेल कहा गया। यह बात सच भी होती दिखी जब पहले ही मैच में ब्रेडन मैकुअलम ने 153 रनों की ताबड़तोड़ पारी खेल अपनी तरह के पहले टूर्नामेट का बेहतरीन आगाज किया।

लेकिन, गेंदबाजों ने आईपीएल में अपने हिस्‍से का काम किया। आईपीएल में खेले गए 59 मुकाबलों में एक तिहाई से ज्‍यादा मौके ऐसे रहे, जब आलरांउडर और गेंदबाज ‘मैन ऑफ द मैच’ का खिताब जीतने में सफल रहे। मनप्रीत सिंह गोनी, मखाया नतिनी, सुहैल तनवीर, शोएब अख्‍तर, शॉन पॉलक और धवल कुलकर्णी जैसे स्‍थापित और नए गेंदबाजों सहित यह लिस्‍ट लंबी है। सबसे खास बात यह कि ‘मोस्‍ट वैल्‍यूबल प्‍लेयर’ का खिताब एक ऑलराउंडर शेन वाटसन (राजस्‍थान रॉयल्‍स) ने ही जीता। 20 ओवरों के इस खेल में एक गेंदबाज के पास अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए महज 4 ही ओवर होते हैं। ऐसे में अगर राजस्‍थान रॉयल्‍स के सुहैल तनवीर चेन्‍नई सुपरकिंग्‍स के खिलाफ केवल चार ओवरों में ही 6 विकेट हासिल करता है, तो यह एक बड़ी उपल‍ब्धि ही कही जाएगी। ऐसे में आईपीएल के कर्ताधर्ता यह क्‍यों भूल जाते हैं कि क्रिकेट गेंद और बल्‍ले का खेल है और ऐसे में गेंदबाजों को भी बराबर तवज्‍जो दी जानी चाहिए।

Wednesday, January 28, 2009

जोश, जज्बे और जूनून का दूसरा नाम जयसूर्या

भारत मल्‍होत्रा

सनथ जयसूर्या यह नाम एक खिलाडी भर का नहीं है। यह नाम है एक जज्‍बे का, एक ऐसे जज्‍बे का जो कभी बूढ़ा नहीं होता। एक ऐसे जोश का जो कभी हार नहीं मानता। दांबुला में सनथ जयसूर्या जब शतक लगाकर खुशी में झूम रहे थे, तब उन्‍हें देखकर एक बार भी ऐसा अहसास नहीं हुआ कि यह खिलाड़ी उम्र के चालीसवें पायदान की दहलीज पर खड़ा है। रोहित शर्मा की गेंद को कट कर जयसूर्या एक रन के लिए दौड़े और इसी के साथ उन्‍होंने वनडे क्रिकेट में अपना 28 वां शतक पूरा किया। मैदान पर खुशी से बल्‍ला लहराते जयसूर्या यह संदेश दे रहे थे कि भले ही कागजों पर उनकी उम्र कुछ भी हो, खेल के प्रति उनका समपर्ण और जज्‍बा किसी भी युवा खिलाडी से कमतर नहीं है। यही जोश और जूनून उन्‍हें एक जिंदा मिसाल बना देती है।


सनथ जयसूर्या ने अपने शतकीय सफर के दौरान ही वनडे क्रिकेट में 13हजार रनों का आंकड़ा भी छुआ। इसके अलावा ज्योफ्री बॉयकॉट के 1979 में 39 साल 51 दिन की उम्र में बनाए गए सबसे ज्यादा उम्र में वनडे शतक के रिकॉर्ड को भी तोड़ दिया। 39 की उम्र पार करने के बाद यह वनडे में उनका तीसरा शतक है।

बुधवार (28 जनवरी) की यह पारी कई मायनों में जयसूर्या की चिर परिचित अंदाज से अलग थी। इस पारी में जयसूर्या की ताकतवर स्केअर कट और कलाई की ताकत दिखाते ऑन साइड के स्ट्रोक ही नहीं थे, इस पारी में जयसूर्या का संयम और धैर्य भी था। अपनी 107 रनों की पारी में उन्होने 10 चौके और एक छक्का भी लगाया। दांबुला की थका देने वाली उमस और गर्मी में जयसूर्या ने 37 सिंगल और 12 डबल भागे। यह बात ही यह दिखाने के लिए काफी है कि जयसूर्या आज भी अपने खेल को लेकर उतने ही सजग हैं जितने कि वे पहले हुआ करते थे। आज भी वे रन बनाने में लगने वाली मेहनत की कीमत समझते हैं।

जयसूर्या के कारण ही श्रीलंकाई कप्तान महेला जयवर्द्धने तीसरे बैटिंग पावरप्ले को 38वें ओवर तक ले गए। उस समय श्रीलंका के हाथ में आठ विकेट बाकी थे, और कप्तान को इस बात का भरोसा होगा कि इस मौके को भुनाकर रनगति बढ़ाई जा सकती है। यह बात दीगर है कि जयसूर्या और उनके साथ बल्लेबाजी कर रहे कांदबी शुरुआती दो ओवरों में ही पैवेलियन लौट गए। जयसूर्या की यह साहासिक पारी भी श्रीलंका को जीत दिला पाने में नाकाफी रही, लेकिन इससे वो मेहनत और जज्बा फीका नहीं पड़ जाता जो जयसूर्या ने अपनी पारी के दौरान दिखाया।

श्रीलंका को 1996 विश्व कप जिताने में अहम भूमिका निभाने वाला यह बाएं हत्था बल्लेबाज एक साल पहले तक टीम में वापसी की राह तलाशता नजर रहा था। वेस्टइंडीज दौरे पर गयी श्रीलंकाई टीम को उन्हें चुका हुआ मानकर नहीं चुना गया था। लग रहा था कि अब जयसूर्या कभी भी श्रीलंका के लिए नहीं खेल पाएंगे। इससे पहले भी वे साल 2006 में अंतरराष्‍ट्रीय क्रिकेट से संन्‍यास की घोषणा कर चुके थे, हालांकि वे उन्‍होंने फौरन इस फैसले को बदल भी लिया था। लेकिन, असल में उनके करियर में बदलाव लेकर आया आईपीएल। इं‍डियन प्रीमियर लीग का यह पहला संस्‍करण उनके लिए किसी शक्तिवर्धक टॉनिक की तरह आया। युवाओं के लिए माने जाने वाले खेल के इस प्रारूप में जयसूर्या का बल्ला बोला और सिर्फ बोला बल्कि जमकर बोला। पूरी सीरीज में जयसूर्या ने 514 रन बनाए। टूर्नामेंट में सबसे ज्यादा छक्के लगाने का रिकॉर्ड भी जयसूर्या के नाम ही रहा। आईपीएल में जयसूर्या ने कुल 31 छक्के लगाए, टूर्नामेंट में सबसे ज्यादा। इसके बाद ही जयसूर्या फिनिक् की तरह दोबारा जीवित होते हुए उठ खड़े हुए दुनिया भर के गेंदबाजों की नींद उड़ाने के लिए। उनकी टीम में वापसी में श्रीलंका के खेल मंत्री में बडा अहम किरदार निभाया और जयसूर्या ने भी उनके इस फैसले को सही करार देने में अपनी पूरी ताकत लगा दी।

जब कभी भी जयसूर्या की बात की जाती है तो उनकी बल्लेबाजी को केंद्र में रखा जाता है। इस बीच इस बात को दरकिनार कर दिया जाता है कि 428 वनडे खेल चुके जयसूर्या के खाते में 311 वनडे विकेट भी हैं। यानि, भले ही उनके हाथ में गेंद हो या बल्ला वे अपना 100 फीसदी से ज्यादा देने में यकीन रखते हैं।

इन सबके बीच एक सवाल उठता है कि इस 40 साल के नौजवान में अभी कितना क्रिकेट बचा है क्या वे 2011 विश्व कप के बाद खेल को अलविदा कहने का मन बना रहे हैं तो इस सवाल पर उनका जवाब होता है- मैं अभी उस बारे में नहीं सोच रहा, देखते हैं आगे क्या होता है। यह बात दिखाती है कि वो आज में जीते हैं और जानते हैं कि जब तक उनके बल्ले से रन निकलते रहेंगे उनकी उम्र पर उठने वाले सवाल ठंडे बस्ते में ही रखे रहेंगे।


Sunday, January 25, 2009

कैफ के लिए उम्‍मीद अभी बाकी है

भारत मल्‍होत्रा

अठ्ठाइस साल के मोहम्‍मद कैफ भी घरेलू क्रिकेट में लगातार अच्‍छा प्रदर्शन कर खुद को चयनकर्ताओं की निगाह में बनाए रखने में जुटे हुए हैं। दक्षिण क्षेत्र के खिलाफ दिलीप ट्रॉफी के मैच की दोनों पारियों में उनकी जुझारू बल्‍लेबाजी में इस कोशिश को साफ तौर पढ़ा जा सकता है।

दक्षिण क्षेत्र के खिलाफ दिलीप ट्रॉफी का मैच मध्‍य क्षेत्र के कप्‍तान के रूप में भले ही मोहम्‍मद कैफ के लिए अच्‍छा नहीं रहा, लेकिन एक बल्‍लेबाज के तौर पर यह मैच उनके लिए जरूर राहत देने वाला रहा होगा। कैफ ने दोनों पारियों में संघर्षपूर्ण अर्द्धशतक बनाए और अपनी टीम की नैया पार लगाने की कोशिश की, लेकिन उन्‍हें अपने साथियों का बहुत ज्‍यादा सहयोग नहीं मिला। लिहाजा, पहली पारी में पिछड़ जाने की वजह से उनकी टीम दिलीप ट्रॉफी से बाहर हो गई।

मध्‍य क्षेत्र की टीम पहली पारी में दक्षिण क्षेत्र के 329 रनों की बराबरी करने से महज तीन रनों से चूक गई। यही तीन रन उनके लिए निर्णायक साबित हुए। इसी बढ़त के आधार पर दक्षिण क्षेत्र ने दलीप ट्रॉफी के सेमीफाइनल में जगह बना ली। लेकिन, इस मुकाबले में मध्‍य क्षेत्र के कप्‍तान मोहम्‍मद कैफ ने दोनों पारियों में अपनी बल्‍लेबाजी से सभी को प्रभावित किया। पहली पारी में कैफ ने 73 रनों की बेदाग पारी खेली तो दूसरी पारी में भी 87 रन बनाकर अकेले ही संघर्ष करते नजर आए।

दरअसल, कैफ ने भारतीय टीम में वापसी की उम्‍मीदें नहीं छोड़ी है। कैफ उस अंडर-19 टीम के कप्‍तान थे, जिसने साल 2000 में यूथ वर्ल्‍ड कप जीता था। इस टीम में उनके साथ युवराज सिंह, रतिंदर सिंह सोढ़ी और अजय रात्रा जैसे खिलाड़ी शमिल थे। भारत के लिए 125 वनडे मैचों में शिरकत कर चुके कैफ कभी भी टेस्‍ट टीम का अहम हिस्‍सा नहीं बन पाए और बाद में तो वनडे टीम से भी बाहर हो गए।

हालांकि, वनडे मुकाबलों में उन्‍होने कुछ यादगार पारियां खेली। नेटवेस्‍ट ट्रॉफी साल 2002 में कैफ ने भारत के लिए मैच जिताने वाली वो पारी खेली, जिसकी उम्‍मीद उनके पिता को भी नहीं थी। कैफ की 87 रनों की पारी की बदौलत भारत ने इस ट्रॉफी पर कब्‍जा जमाया। लेकिन, इसके बाद वे अपनी चमक को बरकरार नहीं रख पाए। यही वजह है कि उन्‍हें भारत के लिए खेले दो साल से भी ज्‍यादा का वक्‍त गुजर गया है। टीम इंडिया की ओर से उन्‍होंने अंतिम बार नवम्‍बर 2006 में एक वनडे मैच में शिरकत की थी।

टेस्‍ट में तो उनके लिए राहें कभी आसान नहीं रही। भारतीय गोल्‍डन मिडल ऑर्डर के बीच कैफ अपनी जगह तलाशते नजर आए। अंतरराष्‍ट्रीय करियर का आगाज उन्‍होंने आठ साल पहले किया था, लेकिन इतने लंबे समय में वे सिर्फ 13 टेस्‍ट मैच खेल पाए यानी एक साल में दो से भी कम टेस्‍ट मैच।

पिछले साल कैफ के लिए उम्‍मीद की किरण तब जागी, जब उन्‍हें ईरानी ट्रॉफी के लिए शेष भारत की टीम में अंतरराष्‍ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कह चुके पूर्व भारतीय कप्‍तान सौरव गांगुली की जगह चुना गया। लेकिन, वे इस मौके को भुना पाने में असफल रहे। इसके बावजूद उन्‍हें ऑस्‍ट्रेलिया के खिलाफ होने वाली सीरीज से पहले बंगुलुरु के कंडीशनिंग कैंप ले जाया गया। इस दौरान भारतीय टीम में सौरव गांगुली के चुने जाने पर संशय के बादल छाए हुए थे। लग रहा था कि कैफ को टेस्‍ट टीम में जगह मिल सकती है, लेकिन कैफ के साथ 'हाथ आया, पर मुंह न लगाया' वाली बात हो गई। चयनकर्ताओं ने ऑस्‍ट्रेलिया के खिलाफ टेस्‍ट सीरीज के लिए सौरव को टीम में बरकरार रखा और कैफ को निराश होना पड़ा।

इन झटकों के बावजूद उत्‍तर प्रदेश रणजी टीम और मध्‍य क्षेत्र के कप्‍तान ने अभी तक उम्‍मीद का दामन नहीं छोड़ा है। यही वजह है कि रणजी ट्राफी 2008-09 सेशन के फाइनल मुकाबले (मुंबई के खिलाफ हुए इस मैच की दूसरी पारी में कैफ ने 72 रन बनाए थे) के बाद जब उत्‍तर प्रदेश के कप्‍तान मोहम्‍मद कैफ से पूछा गया कि इस मैच में कई खिलाडि़यों ने अच्‍छा प्रदर्शन किया है, आप किसे भारतीय टीम मे आने का दावेदार मानते हैं तो कैफ का जवाब था, ‘मैं अपने आप को भी एक दावेदार के तौर पर देखता हूं।’

हालांकि, कैफ के लिए टीम में जगह बना पाना आसान नजर नहीं आ रहा है। एक सीट के लिए कई दावेदार पहले से लाइन में खड़े नजर आ रहे हैं। युवराज ने इंग्‍लैंड के खिलाफ बेहरतीन प्रदर्शन कर सीट अपने नाम कर ली है। इसके बाद सुरेश रैना, रोहित शर्मा और एस. बद्रीनाथ जैसे बल्‍लेबाज भी अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं। वहीं घरेलू क्रिकेट में बेहतरीन प्रदर्शन कर रहे चेतेश्‍वर पुजारा और अंजिक्‍या रहाणे जैसे युवा खिलाड़ी भी कतार में लगे हैं। लेकिन, 28 साल के मोहम्‍मद कैफ भी घरेलू क्रिकेट में लगातार अच्‍छा प्रदर्शन कर खुद को चयनकर्ताओं की निगाह में बनाए रखने में जुटे हुए हैं।

कैफ ने बीते तीन सालों में दो बार अपनी कप्‍तानी में उत्‍तर प्रदेश को रणजी फाइनल तक का सफर तय करवाया है। घरेलू क्रिकेट में उन्‍होंने ने इस साल आठ मैचों में करीब 51 की औसत से 812 रन बनाए हैं और दक्षिण क्षेत्र के खिलाफ दिलीप ट्रॉफी के मैच की दोनों पारियों में उनकी जुझारू बल्‍लेबाजी में इस कोशिश को साफ तौर पढ़ा जा सकता है कि वे हार मानने को तैयार नहीं है। 

भारतीय क्रिकेट का पीछा नहीं छोड़ रहा है चैपल का जिन्‍न

भारत मल्‍होत्रा 

ग्रेग चैपल को भारतीय क्रिकेट टीम का कोच पद छोड़े करीब दो साल का वक्‍त गुजर गया, लेकिन ऐसा लगता है कि उनका साया अभी भी भारतीय टीम का पीछा नही छोड़ रहा है। पहले वीरेंद्र सहवाग ने उनकी आलोचना की, फिर पूर्व तेज गेंदबाज जवागल श्रीनाथ ने कह दिया कि भारत 2007 का वर्ल्‍ड कप चैपल की वजह से ही हारा। इन सब से झल्‍लाए चैपल ने भी कह दिया कि उन्‍हें भारतीय क्रिकेट में कोई दिलचस्‍पी नहीं है। सवाल है कि अब, जब चैपल टीम इंडिया से किसी भी तरह से जुड़े नहीं हैं, तो फिर उनको लेकर इतनी हाय-तोबा क्‍यों?


‘ग्रेग चैपल की वजह से हम 2007 का विश्व कप हारे।’ यह बयान है पूर्व भारतीय तेज गेंदबाज व आईसीसी के रेफरी जवागल श्रीनाथ का। श्रीनाथ का कहना है कि सहवाग इस समय भारतीय कोच गैरी कर्स्‍टन के कार्यकाल में ज्‍यादा अच्‍छी बल्‍लेबाजी कर रहे हैं। वे उससे बिल्‍कुल अलग लग रहे हैं जैसा कि वे 2007 के विश्व कप के समय लग रहे थे। श्रीनाथ के मुताबिक 2007 के वर्ल्‍ड कप में हार की यही वजह रही। श्रीनाथ ने यह भी कहा कि चैपल ने भारतीय टीम में दरार डालने का काम किया और सहवाग और गौतम गंभीर की बल्‍लेबाजी शैली में भी बदलाव करने की बात की। 

हाल के कुछ दिनों में चैपल के बारे में नकारात्‍मक प्रतिक्रिया देने वाले श्रीनाथ अकेले नहीं है। अभी कुछ दिन पहले वीरेंद्र सहवाग ने भी चैपल की कार्यशैली पर उंगली उठाते हुए कहा था कि वे खिलाडि़यों पर चीजें थोपने की कोशिश करते थे और आपस की बात को ‘लीक’ कर खिलाडि़यों के भरोसे को तोड़ने का काम करते थे। इसके साथ ही नजफगढ़ के नवाब ने तो चैपल पर यहां तक आरोप लगाया कि गुरु ग्रेग उनकी बल्‍लेबाजी शैली में बदलाव लाने की कोशिश की थी। 

हालांकि, इस सब को सुन चैपल भी कहां चुप रहने वाले थे। उन्‍होंने भी तुरंत एलान कर दिया कि उन्‍हें भारत और भारतीय क्रिकेट में कोई दिलचस्‍पी नहीं है। वे राजस्‍थान क्रिकेट अकादमी के साथ भी नहीं जुड़े रहना चाहते हैं। उन्‍होंने अपनी सफाई में कहा, आप किरण मोरे से पूछ सकते हैं कि मैंने उन्हें क्या सूचना दी थी।’

‘क्रिकगुरु ऑनलाइन’ ने जब इस बाबत चयनसमिति के पूर्व अध्‍यक्ष किरण मोरे से बात की तो पहले उन्‍होंने यह कहकर बात खत्‍म करने की कोशिश करनी चाही, ‘पुरानी बातों को फिर से करने का क्‍या फायदा?’ लेकिन, इसके बाद उन्‍होंने कहा, ‘चैपल चयन समिति को अपनी रिपोर्ट भेजते थे और इसकी कॉपी बीसीसीआई को भी जाती थी। लेकिन खबरों को लीक करने जैसी कोई बात इसमें नहीं थी। मुझे लगता है इसमें बीसीसीआई एडमिनिस्‍ट्रेशन की गलती थी।’

हो सकता है सहवाग भी सही हों, चैपल की भी गलती नहीं हो। लेकिन, मोरे यहां एक अहम सवाल उठाते हैं, और वो यह कि गड़े मुर्दों को फिर से उखाड़ने का क्‍या मतलब है ? ग्रेग चैपल को भारत का कोच पद छोड़े करीब दो साल का समय होने को आया, लेकिन उनका साया अभी भी भारतीय क्रिकेट से चिपका हुआ है। 

चेपल के जाने के बाद भारतीय क्रिकेट में बहुत कुछ बदल चुका है। कप्‍तान बदल चुके हैं, कई नए चेहरे टीम में आ गए हैं। टीम इंडिया इन दिनों लगातार अच्‍छा खेल रही है और उसे आने वाले वक्‍त में नम्‍बर एक  की कुर्सी का दावेदार माना जा रहा है। ऐसे में, पिछली बातों को छेड़कर व्‍यर्थ के विवाद में पड़ने की कोई जरुरत नजर नहीं आती। 

सबसे बड़ी बात यह है कि अगर लोगों को चैपल से परेशानी थी, तो उस समय क्‍यों चुप रहे। अगर कोई समस्‍या थी तो उसी समय आवाज उठानी चाहिए थी। बोलने की जरूरत तो सही मायनों में उसी समय थी क्‍योंकि कोच और खिलाडि़यों के बीच तालमेल बिगड़ जाने की वजह से भारतीय क्रिकेट का नुकसान हो रहा था। अब सांप निकलने के बाद लकीर पीटने का कोई फायदा नहीं है। 

चाहे सहवाग हों या श्रीनाथ या कोई अन्‍य खिलाडी, चैपल के बारे उनके द्वारा कही जा रही बातों से कम से कम अब कोई फायदा नहीं है। सबसे अहम बात यह है कि टीम इस समय गैरी कर्स्‍टन और महेंद्र सिह धोनी के नेतृत्‍व में बेहतरीन खेल रही है। और अगर टीम इंडिया को नम्‍बर वन की कुर्सी तक पहुंचना है तो कटु अतीत को भूलकर शानदार वर्तमान और सुनहले भविष्‍य की ओर नजर  करनी पड़ेगी। 

इसमें कोई शक नहीं कि ग्रेग चैपल का भारतीय क्रिकेट टीम के कोच के रूप में कार्यकाल ज्‍यादातर विवादों से ही घिरा रहा और टीम में बिखराव की स्थिति भी आ गई, निजी रूप से भी कुछ खिलाडि़यों को नुकसान हुआ, लेकिन वह सब गुजरे वक्‍त की बात है। इसलिए, अच्‍छा है कि खुद खिलाड़ी और टीम इंडिया के शुभचिंतक पिछली बुरी बातों को फिर से चर्चा में लाकर टीम की एकाग्रता भंग न करें।

Thursday, January 22, 2009

ऑस्‍ट्रेलियाई खिलाडि़यों के बिना भी आईपीएल का रोमांच होगा चरम पर

ऑस्‍ट्रेलियाई कप्‍तान रिकी पोंटिंग के अपनी टीम के खिलाडि़यों के आईपीएल के दूसरे सीजन में भाग न लेने संबंधी बयान में उनकी अपनी चिंता ज्‍यादा जाहिर होती है। विपक्षी टीमों से मिल रही कड़ी चुनौती को देखते हुए पोंटिंग की वास्‍तविक चिंता विश्‍व क्रिकेट में अपनी टीम की बादशाहत को बनाए रखना है। वैसे भी, खेल तो कभी किसी के लिए रुकता नहीं। 


भारत मल्‍होत्रा

राजकपूर की फिल्‍म 'मेरा नाम जोकर' का एक मशहूर डॉयलॉग है 'शो मस्‍ट गो ऑन'। यानि कोई रहे या न रहे शो चलते रहना चाहिए। ऑस्‍ट्रलियाई कप्‍तान रिकी पोंटिंग को भी यह बात समझ लेनी चाहिए कि भले ही वो और उनकी टीम के खिलाड़ी आईपीएल में भाग न लें, लेकिन आईपीएल इस बार भी कामयाब होगा और उम्‍मीद की जानी चाहिए कि  पिछली बार से ज्‍यादा। 

ऑस्‍ट्रेलियाई कप्‍तान रिकी पोंटिंग ने यह कह कर कि आईपीएल के दूसरे सीजन से ऑस्‍ट्रेलियाई खिलाड़ी दूर रह सकते हैं, एक नई बहस को जन्‍म दे दिया है। पोंटिंग का कहना है कि वे एशेज से पहले अपने खिलाडियों को पूरी तरह फिट रखना चा‍हते हैं। 

तो ऐसे में यह सवाल उठता है कि आखिर ऑस्‍ट्रेलियाई खिलाडि़यों जैसे रिकी पोंटिंग, ब्रेट ली, एंड्रयू सायमंड्स आदि के न आने से इस टूर्नामेंट की चमक पर असर पड़ेगा। शायद नहीं, मेरा यह कहने के पीछे जायज वजह भी है। आईपीएल के पहले सीजन में दर्जन भर से ज्‍यादा ऑस्‍ट्रेलियाई खिलाडि़यों ने भाग लिया था। इनमें मैथ्‍यू हेडन, रिकी पोंटिंग, शॉन मॉर्श, ब्रेट ली, जेम्‍स होप्‍स, माइकल हसी जैसे सितारे शामिल थे।

 वैसे भी, पिछली बार भी ऑस्‍ट्रेलियाई खिलाड़ी आईपीएल में ज्‍यादा वक्‍त तक शिरकत करते नजर नहीं आए थे। मैथ्‍यू हेडन, रिकी पोंटिग, माइकल हसी और ब्रेट ली जैसे उस समय के ऑस्‍ट्रेलियाई टीम के खिलाडि़यों ने अपनी अपनी टीम की ओर से सिर्फ चार आईपीएल मैचों में ही भाग लिया था। मैथ्‍यू हेडन और माइकल हसी ने अपना आईपीएल में आखिरी मैच 29 अप्रैल को ही खेला था जबकि उनकी टीम चेन्‍नई सुपरकिंग्‍स ने टूर्नामेंट का फाइनल एक जून को खेला था। यानि, उनके जाने के एक महीने बाद भी आईपीएल न सिर्फ चला था बल्कि कामयाबी के साथ चला था। दूसरी बात, मौजूदा ऑस्‍ट्रेलियाई टीम में से सिर्फ कप्‍तान रिकी पोंटिंग, ब्रेट ली, माइकल हसी, साइमन कैटिच, एंड्रयू सायमंड्स और शॉन मॉर्श (रिटायर्ट हुए मैथ्‍यू हेडन के स्‍थान के दावेदार) का ही एशेज के लिए चुना जाना संभव नजर आता है। और, अगर वे खेलते भी हैं तो वे भी शायद कुछ ही मैचों के लिए। तो, इन सितारों के न होने से कुछ ज्‍यादा फर्क पड़ता नजर नहीं आ रहा। 

ऑस्‍ट्रेलियाई खिलाडि़यों के न आने से आईपीएल की लोकप्रियता पर असर पड़ेगा ऐसा होता नजर नहीं आ रहा। आईपीएल को उसके कॉन्‍सेप्‍ट और खेल के स्‍तर और रोमांच के कारण मिली थी। यहां पर ऐसे खिलाडि़यों ने भी वाहवाही बटोरी जिनके बारे में इस टूर्नामेंट से पहले कोई जानता तक नहीं था। 

ऑस्‍ट्रेलियाई कप्‍तान की इस बात के पीछे उनकी एक चिंता भी साफ नजर आती है। खराब दौर से गुजर रही कंगारू टीम की बादशाहत पर खतरा मंडरा रहा है। पहले भारत से सीरीज हार कर लौटना, उसके बाद अपने ही घर में दक्षिण अफ्रीकी टीम से सीरीज की हार। ऊपर से आईसीसी ने उससे नम्बर एक की ट्रॉफी जो पिछले आठ सालों से उसके पास थी वो भी वापस मंगा ली है। तो, पोंटिंग एंड कंपनी के लिए अब मुसीबतें पहले से ज्‍यादा हो गयी हैं। दुनिया भर की टीमें अब ऑस्‍ट्रेलिया को उतना बड़ा खतरा नहीं मानते जितना कि कुछ वक्‍त तक पहले तक मानते थे। और रही बात एशेज की तो वह सीरीज ऑस्‍ट्रेलिया के लिए इज्‍जत का सवाल है। भारत दौरे पर आई इंग्‍लैंड ने आतंकवादी हमले के बाद जिस तरह का जज्‍बा दिखाया था वो काबिले-तारीफ था। इंग्‍लैंड ने लोगों की वाहवाही लूटी थी। मैदान पर भी इंग्‍लैंड के खेल को ऑस्‍ट्रेलिया से बेहतर आंका गया। ऐसे में इस साल अपने ही घर में होने वाल एशेज के लिए इंग्‍लैंड कंगारुओं पर भारी ही नजर आ रही है। शायद पोंटिंग भी जानते हैं कि अपनी कप्‍तानी और नम्‍बर एक की सीट बचाने के लिए उनके लिए यह सीरीज कितनी महत्‍वपूर्ण 


Saturday, January 17, 2009

सचिन नहीं आईसीसी की रेटिंग के मोहताज

भारत मल्‍होत्रा

आईसीसी की टेस्‍ट रेटिंग में टॉप टेन में किसी भी भारतीय बल्‍लेबाज को जगह नहीं दी गई। चोटी के 20 बल्‍लेबाजों में भी सिर्फ सुनील गावस्‍कर को ही शुमार किया गया है, वह भी 20वें स्‍थान पर। टेस्‍ट और वनडे में सबसे ज्‍यादा रन बनाने वाले तेंदुलकर 26वें नंबर हैं, हेडन और हसी से पीछे। आईसीसी की ‘ऑल टाइम रैंकिंग’ ने एक नई बहस को जन्‍म दे दिया है।


क्‍या मैथ्‍यू हेडन और कुमार संगकारा सचिन तेंदुलकर और ब्रॉयन लारा से बेहतर बल्‍लेबाज हैं। क्‍या केविन पीटरसन और माइकल हसी की उपलब्धियां तेंदुलकर और लारा से आगे हैं। भले ही यह सवाल अपने आप में बेमानी लगे, हर किसी का अपना पसंदीदा खिलाड़ी हो सकता है। लेकिन, शायद ही आपमें से किसी के दिल में सचिन तेंदुलकर की महानता के बारे में कोई शुबहा होगा। लेकिन, कम से कम आईसीसी तो यही मानती है। यही वजह है कि आईसीसी की बल्‍लेबाजों की ‘ऑल टाइम रैंकिंग’ ने एक नयी बहस को जन्‍म दे दिया है।

आईसीसी की टेस्‍ट रेटिंग में टॉप टेन में किसी भी भारतीय बल्‍लेबाज को जगह नहीं दी गई है। यहां तक कि चोटी के 20 बल्‍लेबाजों में भी सिर्फ सुनील गावस्‍कर को ही शुमार किया गया है, वह भी 20वें स्‍थान पर। टेस्‍ट क्रिकेट में ब्रॉयन लारा के‍ सबसे ज्‍यादा रनों के रिकॉर्ड को तोड़ने वाले सचिन तेंदुलकर जहां इस फेरहिस्‍त में 26वें नंबर पर हैं और राहुल द्रविड़ 30वें स्‍थान पर हैं। वनडे में भी सचिन को 12वें पायदान पर रखा गया है। तो, शायद नम्‍बरों के इस खेल में सचिन काफी पीछे रह गए हैं। हालांकि, आईसीसी ने साफ कर दिया कि रेटिंग किसी खिलाड़ी की महानता को दर्ज करने का पैमाना नहीं है।

अपनी इस लिस्‍ट पर उठते विवाद को देखते हुए आईसीसी ने भी सफाई देने में देर नहीं लगाई। आईसीसी ने यह भी साफ किया कि आखिर रेटिंग प्‍वाइंट देने का सिस्‍टम क्‍या है। आईसीसी के मीडिया मैनेजर जेम्‍स फिटगरलार्ड ने ‘नियो टीवी’ के एक कार्यक्रम में बताया कि यह सिस्‍टम काफी पेचीदा है। उन्‍होंने बताया कि इस सिस्‍टम में कई बातों का ध्‍यान रखा जाता है।

उन्‍होंने साफ किया कि अगर एक किसी मैच में कोई एक बल्‍लेबाज रन बनाता है और उसकी टीम के बाकी खिलाड़ी ऐसा कर पाने में नाकाम रहते हैं, तो उस खिलाड़ी को काफी अंक मिलेंगे। लेकिन, उसी मैच में उसकी टीम के अगर चार-पांच बल्‍लेबाज रन बनाते हैं, तो उसे कम प्‍वाइंट मिलेंगे। इसके साथ ही मैदान, पिच, परिस्थितियां और विपक्षी टीम के खेल जैसे पहलुओं पर भी गौर किया जाता है।साथ ही यह भी देखा जाता है कि बल्‍लेबाज का प्रदर्शन टीम को जिताने में कितना अहम रहा। अगर, एक उदारहण देखा जाए तो , वेस्‍टइंडीज टीम ने जब 2001 में श्रीलंका दौरे पर थी। ब्रॉयन लारा के बल्‍ले से लगातार रन निकल रहे थे। लारा ने तीन मैचों की सीरीज में 688 रन बनाए थे। लेकिन, बावजूद इसके वेस्‍टइंडीज सीरीज 3-0 से हार गई थी। तो भला लारा की क्‍या गलती है अगर उसकी टीम के बाकी खिलाड़ी उनका साथ नहीं निभा पाए।

आईसीसी का कहना है कि भले ही मैथ्‍यू हेडन को टेस्‍ट में 10वें और वनडे में 18वें पायदान पर जगह दी गई हो, लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि वो सार्वकालिक सर्वश्रेष्‍ठ बल्‍लेबाजों की सूची में 10वें या 18वें नंबर पर हैं। आईसीसी ने यह भी साफ कर दिया कि रैंकिंग सिर्फ यह दिखाने का काम करती है कि खिलाड़ी अपने करियर के सफर के दौरान कितनी ऊचाई तक पहुंचा, यह इस बात पर नजर नहीं डालती कि किसी खिलाडी के प्रदर्शन में कितनी निरंतरता है।

यानि, अगर कोई खिलाड़ी किसी एक वक्‍त में 750 की रेटिंग के आसपास होता है और कुछ वक्‍त के लिए ही सही, वो 900 की रेटिंग छू लेता है तो वह उस खिलाड़ी से आगे निकल जाएगा जो लगातार 850 की रेटिंग बरकरार रखे हुए है। यह बात बेमानी सी लगती है। किसी एक खिलाड़ी को भला उसके पूरे करियर की बजाए कुछ समय के प्रदर्शन के लिहाज से परखना सही नहीं लगता। एक तरीका जो सामने आता है वो यह कि किसी खिलाड़ी के पूरे करियर की रेटिंग का औसत निकाला जाए और इसके बाद लिस्‍ट तैयार किया जाए। लेकिन, यह नियम भी पूरी तरह से कारगर सिद्ध नहीं होगा क्‍योंकि इसका खा़मियाज़ा उस खिलाड़ी को भुगतना पड़ सकता है, जिसके करियर ने देर से रफ्तार पकड़ी हो। आईसीसी की रेटिंग को मानें तो सचिन तेंदुलकर करियर में अन्य खिलाडि़यों के मुकाबले कम खराब वक्‍त होते हुए उनसे नीचे रह गए।

आईसीसी ने अपनी लिस्‍ट में ब्रॉयन लारा, ग्रेग चैपल, वॉली हेमंड जैसे दिग्‍गजों को भी चोटी के 20 बल्‍लेबाजों में जगह नहीं दी। लेकिन, क्‍या इससे यह बल्‍लेबाज कम महान हो गए। या क्रिकेट को इनकी देन पहले से कम हो गई। क्‍या, आईसीसी की ‘बेस्‍ट ऐवर लिस्‍ट’ में तवज्‍जो न दिए जाने से लारा और सचिन जैसे खिलाड़ी छोटे हो जाएंगे? बिल्‍कुल नहीं। इन खिलाडि़यों को अपनी पहचान के लिए आईसीसी के इस लिस्‍ट में एक नंबर या दो नंबर पर होने की जरूरत नहीं है।

टेस्‍ट क्रिकेट में 12 हजार से ज्‍यादा रन, 41 शतक, करीब 55 का बल्‍लेबाजी औसत। वनडे में 16000 से ज्‍यादा रन, 400 से ज्‍यादा वनडे और 42 शतक। ये आंकडे अपने आप में सचिन तेंदुलकर की बल्‍लेबाजी की महानता को दिखाने के लिए काफी हैं। इसके साथ ही उनका वनडे में स्‍ट्राइक रेट भी 85 रन प्रति 100 गेंद से ऊपर की है। इंग्‍लैंड के पूर्व सलामी बल्‍लेबाज ज्‍यॉफ बॉयकॉट ने सचिन के बारे में कहा था कि सचिन ने जितने मैच खेले हैं, उसमें इतने ज्‍यादा रन बनाना इतनी बड़ी बात नहीं है, जितना कि स्‍ट्राइक रेट और औसत में शानदार सांमजस्‍य बनाए रखना। और, यही उनके खेल की महानता है।

इसके साथ ही क्रिकेट टीम गेम है। इसमें किसी भी खिलाड़ी की कामयाबी अकेले उसकी कामयाबी नहीं होती, बल्कि वह पूरी टीम की कामयाबी होती है। ऐसे में इस तरह की व्‍यक्तिगत रेटिंग को इतनी तवज्‍जो देने की जरूरत भी क्‍या है।

Friday, January 16, 2009

रणजी ट्रॉफी: युवा खिलाडि़यों ने जगाई नई आस

भारत मल्‍होत्रा

अजिंक्‍य रहाने, धवल कुलकर्णी, शिवकांत शुक्‍ला, भुवनेश्‍वर कुमार, तन्‍मय श्रीवास्‍तव- ये कुछ ऐसे नाम हैं जो इस साल रणजी ट्रॉफी में नए सितारों के रूप में उभरे हैं। अपने प्रदर्शनों से इन खिलाडि़यों ने यह उम्‍मीद जगाई है कि भारतीय क्रिकेट का भविष्‍य सुरक्षित है। राष्‍ट्रीय टीम के खिलाडि़यों की बात छोड़ दें तो इनमें भी यह क्षमता है कि वक्‍त पड़ने पर टीम इंडिया के लिए अच्‍छा प्रदर्शन कर सकें।


रणजी ट्रॉफी 2008-09 मुंबई के नाम रहा। फाइनल में उत्‍तर प्रदेश को 243 रनों से मात देकर मुंबई ने 38वीं बार खिताब पर कब्‍जा किया। दोनो ही टीमों में कुछ सितारे ऐसे थे जो अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर भारतीय टीम का प्रतिनिधित्‍व कर चुके हैं, ज‍बकि कुछ खिला‍ड़ी इस सीजन में शानदार प्रदर्शन कर चर्चाओं में बने हैं। दोनो ही टीमों के कुछ खिलाडि़यों ने इस सीजन में बेहतर प्रदर्शन कर टीम इंडिया के दरवाजे की ओर अपने कदम बढ़ाने शुरु कर दिए हैं।

अंजिक्‍या रहाणे (मुंबई, 1095रन), युवा तेज गेंदबाज धवल कुलकर्णी ( मुंबई, 42 विकेट) और भुवनेश्‍वर कुमार (उत्‍तर प्रदेश, 31 विकेट), ने अपने प्रदर्शनों से अपने लिए एक खास मुकाम बनाया है। भुवनेश्‍वर कुमार की उम्र अभी 18 साल है, तो बाकी दोनो खिलाडि़यों ने उम्र का बीसवां पड़ाव ही पार किया है।

मुंबई के धवल कुलकर्णी का यह पहला घरेलू सीजन है। 20 साल के दाएं हाथ के इस तेज गेंदबाज ने अपने पहले ही सीजन में लोगों का ध्‍यान अपनी ओर खींचा है। इस साल खेले गए 11 मैचों में उन्‍होने 45 विकेट अपने नाम किए हैं। उनकी गेंदबाजी में लाइन और लेंग्‍थ तो अच्‍छी है। फाइनल मुकाबले में उन्‍होने दूसरी पारी में 76 रन देकर उत्‍तर प्रदेश के पांच विकेट अपने नाम किए। सेमीफाइनल में भी उन्‍होने तीन विकेट लिए थे।

मुंबई के ही अंजिक्‍या रहाणे। दाएं हाथ के इस बल्‍लेबाज में काफी संभावनाएं देखी जा रही हैं। इस सीजन में खेले 11 मैचों में उन्‍होंने 1095 रन बनाए हैं। इस दौरान उन्‍होने 4 शतक और पांच अर्द्धशतक लगाए हैं। इससे पता चलता है कि इस बल्‍लेबाज में निरंतर अच्‍छा प्रदर्शन करने का माद्दा है। सेमीफाइनल में भी उन्‍होने सौराष्‍ट्र के खिलाफ 85 रनों की उपयोगी पारी खेली थी। वसीम जाफर इस मैच में तिहरा शतक लगाकर इस साल रन बनाने वालों की लिस्‍ट में सबसे आगे निकल गए थे, लेकिन इससे पहले रहाणे ही इस दौड में सबसे आगे थे।

भले ही उत्‍तर प्रदेश मुकाबला हार गई हो, लेकिन उसके कुछ खिलाडि़यों ने भी अपने प्रदर्शन के दम पर अपनी पहचान दर्ज कराने की कोशिश की है। उत्‍तर प्रदेश के सलामी बल्‍लेबाज शिवकांत शुक्‍ला का नाम सबसे पहले जेहन में आता है। सेमीफाइनल में तमिलनाडु के खिलाफ नाबाद 178 रनों की पारी खेलकर शुक्‍ला ने अपनी टीम को फाइनल में पहुंचाने का काम किया। शुक्‍ला ने इस सीजन में खेले सात मैचों में 532 रन बनाए। भले ही 32 की औसत ज्‍यादा प्रभावशाली न लगे, लेकिन अहम बात रही अहम मौकों पर उनका अच्‍छा प्रदर्शन। शुक्‍ला सेमीफाइनल में अपनी टीम के नायक रहे, वहीं फाइनल में वे अकेले ही मुंबई के आक्रमण से लोहा लेते नजर आए। फाइनल मुकाबले में 99 रनों पर आउट होने के बाद शुक्‍ला ने कहा था कि 'मुझे शतक न बना पाने का इतना दुख नहीं है बल्कि इस बात का दुख है कि हम आधा मैच हार चुके हैं।' उन्‍होने बताया था कि वे अपनी ऑफ ब्रेक गेंदबाजी सुधारने के लिए गए थे। अब चूंकि गेंदबाजी का सेशन दोपहर में शुरु होता था इसलिए सुबह के वक्‍त वे इंडोर विकेटों पर बॉल मशीन से बल्‍लेबाजी का अभ्‍यास करते थे। इससे उनकी बल्‍लेबाजी में निखार आया।

उत्‍तर प्रदेश के ही बाएं हाथ के सलामी बल्‍लेबाज तन्‍मय श्रीवास्‍तव पिछले साल हुए यूथ वर्ल्‍ड कप जीतने वाली भारतीय टीम की ओर से सबसे ज्‍यादा रन बनाने वाले खिलाड़ी थे। तन्‍मय ने चार सालों में तीसरी बार अपनी टीम को फाइनल में पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई। इस सीजन में खेले 9 मैचों में उन्‍होने 2 शतकों की मदद से 664 रन बनाए। हालांकि फाइनल मुकाबले में वे अच्‍छा प्रदर्शन नहीं कर पाए, फिर भी इस बल्‍लेबाज की प्रतिभा को नकार पाना चयनकर्ताओं के लिए आसान नहीं होगा।

भुवनेश्‍वर कुमार, इस गेंदबाज ने रणजी ट्रॉफी के फाइनल में अपनी टीम को शुरुआती बढ़त दिलाकर एक बार तो उत्‍तर प्रदेश को फ्रंट सीट पर लाकर खड़ा कर दिया था। मुंबई महज 55 रनों पर चार विकेट खोकर संकट में थी। जिसमें तीन विकेट 18 साल के इस दाएं हाथ के तेज गेंदबाज के ही खाते में गए थे। इनमें सचिन तेंदुलकर का विकेट भी था। इसके अलावा वसीम जाफर और विनायक सामंत का विकेट भी शामिल था। भले ही उनके पास तेजी न हो, लेकिन नयी गेंद से स्विंग कराने की क्षमता ने मुंबई के टॉप ऑर्डर को टिकने नहीं दिया। इसके बाद भी जब रोहित शर्मा और अभिषेक नायर के बीच 207 रनों की साझेदारी हो चुकी थी, कप्‍तान मोहम्‍मद कैफ ने नयी गेंद लेते ही भुवनेश्‍वर कुमार के हाथ में गेंद पकड़ाई। पहली ही गेंद पर उन्‍होने नायर को 99 पर आउट कर इस साझेदारी का अंत किया। कुमार ने पहली पारी में पांच विकेट लिए। यह प्रदर्शन अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर के आरपी सिंह, प्रवीण कुमार और पीयूष चावला सरीखे गेंदबाजों के होते हुए किया गया था।

अपने प्रदर्शनों से इन खिलाडि़यों ने यह उम्‍मीद जगाई है कि भारतीय टीम का भविष्‍य सुरक्षित है। राष्‍ट्रीय टीम के खिलाडि़यों की बात छोड़ दें तो इनमें भी यह क्षमता है कि वक्‍त पड़ने पर टीम इंडिया के लिए अच्‍छा प्रदर्शन कर सकें। टीम इंडिया के हालिया प्रदर्शन को देखते हुए इनके लिए राष्‍ट्रीय टीम में फिलहाल तो जगह बनती नहीं दिखती, लेकिन इतना तय है कि यदि ये खिलाड़ी अपने प्रदर्शनों का सिलसिला यूं ही जारी रखते हैं तो चयनकर्ताओं के लिए इन्‍हें लंबे वक्‍त तक टीम से बाहर रखना मुश्किल होगा।

विरोधी भले ही बदलते रहें, नहीं बदलता है तो जहीर का जज्‍बा



भारत मल्‍होत्रा

मुंबई ने उत्‍तर प्रदेश को 243 रनों से हराकर 38वीं बार रणजी ट्रॉफी पर अपना कब्‍जा किया। इस मैच में मुंबई की जीत में जहीर खान ने अहम भूमिका निभाई। पहली पारी में सात विकेट अपने नाम कर जहीर ने साबित कर दिया कि मैदान और विरोधी भले ही बदलते रहें, उनका जज्‍बा कभी नहीं बदलता।


वो भारतीय तेज गेंदबाजी के अगुवा हैं। हर गेंद में वे अपना सौ प्रतिशत से ज्‍यादा देते नजर आते हैं। मैदान पर अपनी पूरी ताकत झोंकना ही उनकी पहचान है। बल्‍लेबाज की आंख में आंख डालकर देखना और उस पर दबाव बनाना उनकी रणनीति का एक हिस्‍सा है। नई गेंद से जहां परंपरागत स्विंग नजर आता है तो गेंद पुरानी होने के साथ ही रिवर्स स्विंग का खतरनाक तीर उनके तरकश से बाहर आता है। हम बात कर रहे हैं मुंबई के तेज गेंदबाज जहीर खान की। इसमें कोई संदेह नहीं कि बाएं हाथ का यह तेज गेंदबाज इस समय अपने क्रिकेट करियर के सर्वश्रेष्‍ठ दौर से गुजर रहा है।

उत्‍तर प्रदेश की उम्‍मीदें एक बार फिर सेमीफाइनल की अपनी स्‍टार जोड़ी शिवाकांत शुक्‍ला और परविंदर सिंह पर टिकी थी। मुंबई के अभिषेक नायर ने प‍रविंदर सिंह को आउट कर इस साझेदारी का अंत तो क‍र दिया, लेकिन शुक्‍ला ने भुवनेश्‍वर कुमार के साथ मिलकर उत्‍तर प्रदेश की उम्‍मीदों को जिंदा रखा। मैच किसी भी ओर रुख कर सकता था।

लेकिन, बावजूद इसके मुंबई की टीम किसी तरह की चिंता में नजर नहीं आ रही थी। जहीर खान ने पहले सेशन में ज्‍यादा गेंदबाजी नहीं की। लेकिन, दूसरे सेशन में उन्‍होंने सारी कमी दूर कर दी। जहीर ने उत्‍तर प्रदेश की पहली पारी में एक-दो नहीं पूरे सात विकेट अपने नाम किए। इनमें से आखिरी चार विकेट तो उन्‍होने आठ गेंदों के अंतराल में हासिल किए। पहली पारी में उनका गेंदबाजी प्रदर्शन पर नजर डालें तो उन्‍होंने 27.2 ओवरों में 14 मे‍डन रखते हुए 54 रन देकर सात विकेट हासिल किए। दूसरी पारी में भी उन्‍होने एक विकेट लिया।

दरअसल, मुकाबला चाहे कोई भी हो जहीर किसी भी मुकाबले को हल्‍के में नहीं लेते। मुकाबले में कोताही बरतना जहीर की फितरत का हिस्‍सा ही नहीं है। उनका मंत्र है 'पूरी ताकत हर बार'। फिर चाहे वो रिकी पोंटिंग के नेतृत्‍व वाली विश्‍व चैंपियन ऑस्‍ट्रेलिया हो या फिर केविन पीटरसन की इंग्‍लैंड। और फिर चाहे वो रणजी ट्रॉफी का घरेलू मैच ही क्‍यों न हो। इंग्‍लैंड के खिलाफ हाल ही में खेली गई टेस्‍ट सीरीज में मैन ऑफ द सीरीज रहे जहीर खान की गेंदबाजी की धार में किसी तरह की कमी नजर नहीं आती। वे उसी लगन और मेहनत के साथ गेंदबाजी करते नजर आते हैं जैसे कि किसी अंतरराष्‍ट्रीय मैच में दिखाई पड़ते हैं। उनका जज्‍बा देखते ही बनता है। वह हर गेंद उतनी ही शिद्दत से फेंकते हैं। रन-अप में वही रिदम, गेंदों में वही तेजी और दिल में वही जूनून यही तो जहीर की पहचान।


अनिल कुंबले के अंतरराष्‍ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कहने के बाद जहीर खान ने भारतीय गेंदबाजी की कमान अपने हाथ में संभाल ली है। वे नए गेंदबाजों को सहयोग और सलाह देते भी नजर आते हैं। जरुरी नहीं कि वे विकेट लेकर ही अपनी उपयोगिता साबित करें बल्कि, अपने अनुभवों को दूसरे नौजवान गेंदबाजों के साथ बांटकर वे उनकी मदद भी करते हैं। भारतीय टीम में जहां वे ईशांत शर्मा को सलाह देते नजर आते हैं वहीं रणजी मुकाबलों में उन्‍हें धवल कुलकर्णी को गेंदबाजी के गुर सिखाते हुए देखा गया।

मुंबई को 38वीं बार रणजी खिताब दिलाने वाले जहीर को एक दौर में मुंबई के साथ पूरे सीजन रहने के बाद भी खेलने का मौका नहीं मिला था। इसके बाद जहीर ने मुंबई की बजाए बड़ौदा का रुख किया। हालांकि जहीर हमेशा से ही मुंबई को अपनी घरेलू टीम मानते हैं।

जहीर का कहना है कि जब वे श्रीरामपुर से मुंबई आए तो उनके दो ही सपने थे एक मुंबई के लिए रणजी खेलना और दूसरा इसके जरिए भारतीय टीम में अपनी जगह बनाना। क्‍योंकि उन्‍हें पहले मुंबई की ओर से खेलने का मौका नहीं मिला तो उन्‍होने बड़ौदा की ओर से खेलना शुरु किया। साल 2006-07 में मुंबई के लिए अपना पहला मैच खेलने के बाद जहीर खान का यह तीसरा रणजी मुकाबला है।

इंग्‍लैंड के खिलाफ हाल ही में खेली गई टेस्‍ट सीरीज में मैन ऑफ द सीरीज रहे जहीर खान ने उत्‍तर प्रदेश के बल्‍लेबाजों के लिए रन बनाना भी मुश्किल किए रखा। इस फाइनल मुकाबले में मुंबई की जीत के नायकों में रोहित शर्मा ने अगर बल्‍ले से अपना रोल अदा किया तो जहीर खान ने अपनी गेंदबाजी के दम पर उत्‍तर प्रदेश के बल्‍लेबाजों के लिए परेशानी खड़ी की।

मुंबई के कप्‍तान वसीम जाफर ने कहा था कि सचिन तेंदुलकर और जहीर खान की मौजूदगी उनकी टीम के लिए काफी मददगार साबित होगी। भले ही सचिन का बल्‍ला इस मुकाबले में न बोला हो, लेकिन जहीर खान ने अपनी मौजूदगी का अहसास बड़े शानदार तरीके से करवाया। बड़े खिलाडि़यों के घरेलू मैचों में शिरकत करने से खेल का स्‍तर तो सुधरता है ही साथ ही साथ नौजवान खिलाडि़यों को काफी कुछ सीखने को भी मिल जाता है।