Wednesday, January 28, 2009

जोश, जज्बे और जूनून का दूसरा नाम जयसूर्या

भारत मल्‍होत्रा

सनथ जयसूर्या यह नाम एक खिलाडी भर का नहीं है। यह नाम है एक जज्‍बे का, एक ऐसे जज्‍बे का जो कभी बूढ़ा नहीं होता। एक ऐसे जोश का जो कभी हार नहीं मानता। दांबुला में सनथ जयसूर्या जब शतक लगाकर खुशी में झूम रहे थे, तब उन्‍हें देखकर एक बार भी ऐसा अहसास नहीं हुआ कि यह खिलाड़ी उम्र के चालीसवें पायदान की दहलीज पर खड़ा है। रोहित शर्मा की गेंद को कट कर जयसूर्या एक रन के लिए दौड़े और इसी के साथ उन्‍होंने वनडे क्रिकेट में अपना 28 वां शतक पूरा किया। मैदान पर खुशी से बल्‍ला लहराते जयसूर्या यह संदेश दे रहे थे कि भले ही कागजों पर उनकी उम्र कुछ भी हो, खेल के प्रति उनका समपर्ण और जज्‍बा किसी भी युवा खिलाडी से कमतर नहीं है। यही जोश और जूनून उन्‍हें एक जिंदा मिसाल बना देती है।


सनथ जयसूर्या ने अपने शतकीय सफर के दौरान ही वनडे क्रिकेट में 13हजार रनों का आंकड़ा भी छुआ। इसके अलावा ज्योफ्री बॉयकॉट के 1979 में 39 साल 51 दिन की उम्र में बनाए गए सबसे ज्यादा उम्र में वनडे शतक के रिकॉर्ड को भी तोड़ दिया। 39 की उम्र पार करने के बाद यह वनडे में उनका तीसरा शतक है।

बुधवार (28 जनवरी) की यह पारी कई मायनों में जयसूर्या की चिर परिचित अंदाज से अलग थी। इस पारी में जयसूर्या की ताकतवर स्केअर कट और कलाई की ताकत दिखाते ऑन साइड के स्ट्रोक ही नहीं थे, इस पारी में जयसूर्या का संयम और धैर्य भी था। अपनी 107 रनों की पारी में उन्होने 10 चौके और एक छक्का भी लगाया। दांबुला की थका देने वाली उमस और गर्मी में जयसूर्या ने 37 सिंगल और 12 डबल भागे। यह बात ही यह दिखाने के लिए काफी है कि जयसूर्या आज भी अपने खेल को लेकर उतने ही सजग हैं जितने कि वे पहले हुआ करते थे। आज भी वे रन बनाने में लगने वाली मेहनत की कीमत समझते हैं।

जयसूर्या के कारण ही श्रीलंकाई कप्तान महेला जयवर्द्धने तीसरे बैटिंग पावरप्ले को 38वें ओवर तक ले गए। उस समय श्रीलंका के हाथ में आठ विकेट बाकी थे, और कप्तान को इस बात का भरोसा होगा कि इस मौके को भुनाकर रनगति बढ़ाई जा सकती है। यह बात दीगर है कि जयसूर्या और उनके साथ बल्लेबाजी कर रहे कांदबी शुरुआती दो ओवरों में ही पैवेलियन लौट गए। जयसूर्या की यह साहासिक पारी भी श्रीलंका को जीत दिला पाने में नाकाफी रही, लेकिन इससे वो मेहनत और जज्बा फीका नहीं पड़ जाता जो जयसूर्या ने अपनी पारी के दौरान दिखाया।

श्रीलंका को 1996 विश्व कप जिताने में अहम भूमिका निभाने वाला यह बाएं हत्था बल्लेबाज एक साल पहले तक टीम में वापसी की राह तलाशता नजर रहा था। वेस्टइंडीज दौरे पर गयी श्रीलंकाई टीम को उन्हें चुका हुआ मानकर नहीं चुना गया था। लग रहा था कि अब जयसूर्या कभी भी श्रीलंका के लिए नहीं खेल पाएंगे। इससे पहले भी वे साल 2006 में अंतरराष्‍ट्रीय क्रिकेट से संन्‍यास की घोषणा कर चुके थे, हालांकि वे उन्‍होंने फौरन इस फैसले को बदल भी लिया था। लेकिन, असल में उनके करियर में बदलाव लेकर आया आईपीएल। इं‍डियन प्रीमियर लीग का यह पहला संस्‍करण उनके लिए किसी शक्तिवर्धक टॉनिक की तरह आया। युवाओं के लिए माने जाने वाले खेल के इस प्रारूप में जयसूर्या का बल्ला बोला और सिर्फ बोला बल्कि जमकर बोला। पूरी सीरीज में जयसूर्या ने 514 रन बनाए। टूर्नामेंट में सबसे ज्यादा छक्के लगाने का रिकॉर्ड भी जयसूर्या के नाम ही रहा। आईपीएल में जयसूर्या ने कुल 31 छक्के लगाए, टूर्नामेंट में सबसे ज्यादा। इसके बाद ही जयसूर्या फिनिक् की तरह दोबारा जीवित होते हुए उठ खड़े हुए दुनिया भर के गेंदबाजों की नींद उड़ाने के लिए। उनकी टीम में वापसी में श्रीलंका के खेल मंत्री में बडा अहम किरदार निभाया और जयसूर्या ने भी उनके इस फैसले को सही करार देने में अपनी पूरी ताकत लगा दी।

जब कभी भी जयसूर्या की बात की जाती है तो उनकी बल्लेबाजी को केंद्र में रखा जाता है। इस बीच इस बात को दरकिनार कर दिया जाता है कि 428 वनडे खेल चुके जयसूर्या के खाते में 311 वनडे विकेट भी हैं। यानि, भले ही उनके हाथ में गेंद हो या बल्ला वे अपना 100 फीसदी से ज्यादा देने में यकीन रखते हैं।

इन सबके बीच एक सवाल उठता है कि इस 40 साल के नौजवान में अभी कितना क्रिकेट बचा है क्या वे 2011 विश्व कप के बाद खेल को अलविदा कहने का मन बना रहे हैं तो इस सवाल पर उनका जवाब होता है- मैं अभी उस बारे में नहीं सोच रहा, देखते हैं आगे क्या होता है। यह बात दिखाती है कि वो आज में जीते हैं और जानते हैं कि जब तक उनके बल्ले से रन निकलते रहेंगे उनकी उम्र पर उठने वाले सवाल ठंडे बस्ते में ही रखे रहेंगे।


1 comment:

Anonymous said...

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