भारत मल्होत्रा
अठ्ठाइस साल के मोहम्मद कैफ भी घरेलू क्रिकेट में लगातार अच्छा प्रदर्शन कर खुद को चयनकर्ताओं की निगाह में बनाए रखने में जुटे हुए हैं। दक्षिण क्षेत्र के खिलाफ दिलीप ट्रॉफी के मैच की दोनों पारियों में उनकी जुझारू बल्लेबाजी में इस कोशिश को साफ तौर पढ़ा जा सकता है।
दक्षिण क्षेत्र के खिलाफ दिलीप ट्रॉफी का मैच मध्य क्षेत्र के कप्तान के रूप में भले ही मोहम्मद कैफ के लिए अच्छा नहीं रहा, लेकिन एक बल्लेबाज के तौर पर यह मैच उनके लिए जरूर राहत देने वाला रहा होगा। कैफ ने दोनों पारियों में संघर्षपूर्ण अर्द्धशतक बनाए और अपनी टीम की नैया पार लगाने की कोशिश की, लेकिन उन्हें अपने साथियों का बहुत ज्यादा सहयोग नहीं मिला। लिहाजा, पहली पारी में पिछड़ जाने की वजह से उनकी टीम दिलीप ट्रॉफी से बाहर हो गई।
मध्य क्षेत्र की टीम पहली पारी में दक्षिण क्षेत्र के 329 रनों की बराबरी करने से महज तीन रनों से चूक गई। यही तीन रन उनके लिए निर्णायक साबित हुए। इसी बढ़त के आधार पर दक्षिण क्षेत्र ने दलीप ट्रॉफी के सेमीफाइनल में जगह बना ली। लेकिन, इस मुकाबले में मध्य क्षेत्र के कप्तान मोहम्मद कैफ ने दोनों पारियों में अपनी बल्लेबाजी से सभी को प्रभावित किया। पहली पारी में कैफ ने 73 रनों की बेदाग पारी खेली तो दूसरी पारी में भी 87 रन बनाकर अकेले ही संघर्ष करते नजर आए।
दरअसल, कैफ ने भारतीय टीम में वापसी की उम्मीदें नहीं छोड़ी है। कैफ उस अंडर-19 टीम के कप्तान थे, जिसने साल 2000 में यूथ वर्ल्ड कप जीता था। इस टीम में उनके साथ युवराज सिंह, रतिंदर सिंह सोढ़ी और अजय रात्रा जैसे खिलाड़ी शमिल थे। भारत के लिए 125 वनडे मैचों में शिरकत कर चुके कैफ कभी भी टेस्ट टीम का अहम हिस्सा नहीं बन पाए और बाद में तो वनडे टीम से भी बाहर हो गए।
हालांकि, वनडे मुकाबलों में उन्होने कुछ यादगार पारियां खेली। नेटवेस्ट ट्रॉफी साल 2002 में कैफ ने भारत के लिए मैच जिताने वाली वो पारी खेली, जिसकी उम्मीद उनके पिता को भी नहीं थी। कैफ की 87 रनों की पारी की बदौलत भारत ने इस ट्रॉफी पर कब्जा जमाया। लेकिन, इसके बाद वे अपनी चमक को बरकरार नहीं रख पाए। यही वजह है कि उन्हें भारत के लिए खेले दो साल से भी ज्यादा का वक्त गुजर गया है। टीम इंडिया की ओर से उन्होंने अंतिम बार नवम्बर 2006 में एक वनडे मैच में शिरकत की थी।
टेस्ट में तो उनके लिए राहें कभी आसान नहीं रही। भारतीय गोल्डन मिडल ऑर्डर के बीच कैफ अपनी जगह तलाशते नजर आए। अंतरराष्ट्रीय करियर का आगाज उन्होंने आठ साल पहले किया था, लेकिन इतने लंबे समय में वे सिर्फ 13 टेस्ट मैच खेल पाए यानी एक साल में दो से भी कम टेस्ट मैच।
पिछले साल कैफ के लिए उम्मीद की किरण तब जागी, जब उन्हें ईरानी ट्रॉफी के लिए शेष भारत की टीम में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कह चुके पूर्व भारतीय कप्तान सौरव गांगुली की जगह चुना गया। लेकिन, वे इस मौके को भुना पाने में असफल रहे। इसके बावजूद उन्हें ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ होने वाली सीरीज से पहले बंगुलुरु के कंडीशनिंग कैंप ले जाया गया। इस दौरान भारतीय टीम में सौरव गांगुली के चुने जाने पर संशय के बादल छाए हुए थे। लग रहा था कि कैफ को टेस्ट टीम में जगह मिल सकती है, लेकिन कैफ के साथ 'हाथ आया, पर मुंह न लगाया' वाली बात हो गई। चयनकर्ताओं ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टेस्ट सीरीज के लिए सौरव को टीम में बरकरार रखा और कैफ को निराश होना पड़ा।
इन झटकों के बावजूद उत्तर प्रदेश रणजी टीम और मध्य क्षेत्र के कप्तान ने अभी तक उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा है। यही वजह है कि रणजी ट्राफी 2008-09 सेशन के फाइनल मुकाबले (मुंबई के खिलाफ हुए इस मैच की दूसरी पारी में कैफ ने 72 रन बनाए थे) के बाद जब उत्तर प्रदेश के कप्तान मोहम्मद कैफ से पूछा गया कि इस मैच में कई खिलाडि़यों ने अच्छा प्रदर्शन किया है, आप किसे भारतीय टीम मे आने का दावेदार मानते हैं तो कैफ का जवाब था, ‘मैं अपने आप को भी एक दावेदार के तौर पर देखता हूं।’
हालांकि, कैफ के लिए टीम में जगह बना पाना आसान नजर नहीं आ रहा है। एक सीट के लिए कई दावेदार पहले से लाइन में खड़े नजर आ रहे हैं। युवराज ने इंग्लैंड के खिलाफ बेहरतीन प्रदर्शन कर सीट अपने नाम कर ली है। इसके बाद सुरेश रैना, रोहित शर्मा और एस. बद्रीनाथ जैसे बल्लेबाज भी अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं। वहीं घरेलू क्रिकेट में बेहतरीन प्रदर्शन कर रहे चेतेश्वर पुजारा और अंजिक्या रहाणे जैसे युवा खिलाड़ी भी कतार में लगे हैं। लेकिन, 28 साल के मोहम्मद कैफ भी घरेलू क्रिकेट में लगातार अच्छा प्रदर्शन कर खुद को चयनकर्ताओं की निगाह में बनाए रखने में जुटे हुए हैं।
कैफ ने बीते तीन सालों में दो बार अपनी कप्तानी में उत्तर प्रदेश को रणजी फाइनल तक का सफर तय करवाया है। घरेलू क्रिकेट में उन्होंने ने इस साल आठ मैचों में करीब 51 की औसत से 812 रन बनाए हैं और दक्षिण क्षेत्र के खिलाफ दिलीप ट्रॉफी के मैच की दोनों पारियों में उनकी जुझारू बल्लेबाजी में इस कोशिश को साफ तौर पढ़ा जा सकता है कि वे हार मानने को तैयार नहीं है।
मध्य क्षेत्र की टीम पहली पारी में दक्षिण क्षेत्र के 329 रनों की बराबरी करने से महज तीन रनों से चूक गई। यही तीन रन उनके लिए निर्णायक साबित हुए। इसी बढ़त के आधार पर दक्षिण क्षेत्र ने दलीप ट्रॉफी के सेमीफाइनल में जगह बना ली। लेकिन, इस मुकाबले में मध्य क्षेत्र के कप्तान मोहम्मद कैफ ने दोनों पारियों में अपनी बल्लेबाजी से सभी को प्रभावित किया। पहली पारी में कैफ ने 73 रनों की बेदाग पारी खेली तो दूसरी पारी में भी 87 रन बनाकर अकेले ही संघर्ष करते नजर आए।
दरअसल, कैफ ने भारतीय टीम में वापसी की उम्मीदें नहीं छोड़ी है। कैफ उस अंडर-19 टीम के कप्तान थे, जिसने साल 2000 में यूथ वर्ल्ड कप जीता था। इस टीम में उनके साथ युवराज सिंह, रतिंदर सिंह सोढ़ी और अजय रात्रा जैसे खिलाड़ी शमिल थे। भारत के लिए 125 वनडे मैचों में शिरकत कर चुके कैफ कभी भी टेस्ट टीम का अहम हिस्सा नहीं बन पाए और बाद में तो वनडे टीम से भी बाहर हो गए।
हालांकि, वनडे मुकाबलों में उन्होने कुछ यादगार पारियां खेली। नेटवेस्ट ट्रॉफी साल 2002 में कैफ ने भारत के लिए मैच जिताने वाली वो पारी खेली, जिसकी उम्मीद उनके पिता को भी नहीं थी। कैफ की 87 रनों की पारी की बदौलत भारत ने इस ट्रॉफी पर कब्जा जमाया। लेकिन, इसके बाद वे अपनी चमक को बरकरार नहीं रख पाए। यही वजह है कि उन्हें भारत के लिए खेले दो साल से भी ज्यादा का वक्त गुजर गया है। टीम इंडिया की ओर से उन्होंने अंतिम बार नवम्बर 2006 में एक वनडे मैच में शिरकत की थी।
टेस्ट में तो उनके लिए राहें कभी आसान नहीं रही। भारतीय गोल्डन मिडल ऑर्डर के बीच कैफ अपनी जगह तलाशते नजर आए। अंतरराष्ट्रीय करियर का आगाज उन्होंने आठ साल पहले किया था, लेकिन इतने लंबे समय में वे सिर्फ 13 टेस्ट मैच खेल पाए यानी एक साल में दो से भी कम टेस्ट मैच।
पिछले साल कैफ के लिए उम्मीद की किरण तब जागी, जब उन्हें ईरानी ट्रॉफी के लिए शेष भारत की टीम में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कह चुके पूर्व भारतीय कप्तान सौरव गांगुली की जगह चुना गया। लेकिन, वे इस मौके को भुना पाने में असफल रहे। इसके बावजूद उन्हें ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ होने वाली सीरीज से पहले बंगुलुरु के कंडीशनिंग कैंप ले जाया गया। इस दौरान भारतीय टीम में सौरव गांगुली के चुने जाने पर संशय के बादल छाए हुए थे। लग रहा था कि कैफ को टेस्ट टीम में जगह मिल सकती है, लेकिन कैफ के साथ 'हाथ आया, पर मुंह न लगाया' वाली बात हो गई। चयनकर्ताओं ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टेस्ट सीरीज के लिए सौरव को टीम में बरकरार रखा और कैफ को निराश होना पड़ा।
इन झटकों के बावजूद उत्तर प्रदेश रणजी टीम और मध्य क्षेत्र के कप्तान ने अभी तक उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा है। यही वजह है कि रणजी ट्राफी 2008-09 सेशन के फाइनल मुकाबले (मुंबई के खिलाफ हुए इस मैच की दूसरी पारी में कैफ ने 72 रन बनाए थे) के बाद जब उत्तर प्रदेश के कप्तान मोहम्मद कैफ से पूछा गया कि इस मैच में कई खिलाडि़यों ने अच्छा प्रदर्शन किया है, आप किसे भारतीय टीम मे आने का दावेदार मानते हैं तो कैफ का जवाब था, ‘मैं अपने आप को भी एक दावेदार के तौर पर देखता हूं।’
हालांकि, कैफ के लिए टीम में जगह बना पाना आसान नजर नहीं आ रहा है। एक सीट के लिए कई दावेदार पहले से लाइन में खड़े नजर आ रहे हैं। युवराज ने इंग्लैंड के खिलाफ बेहरतीन प्रदर्शन कर सीट अपने नाम कर ली है। इसके बाद सुरेश रैना, रोहित शर्मा और एस. बद्रीनाथ जैसे बल्लेबाज भी अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं। वहीं घरेलू क्रिकेट में बेहतरीन प्रदर्शन कर रहे चेतेश्वर पुजारा और अंजिक्या रहाणे जैसे युवा खिलाड़ी भी कतार में लगे हैं। लेकिन, 28 साल के मोहम्मद कैफ भी घरेलू क्रिकेट में लगातार अच्छा प्रदर्शन कर खुद को चयनकर्ताओं की निगाह में बनाए रखने में जुटे हुए हैं।
कैफ ने बीते तीन सालों में दो बार अपनी कप्तानी में उत्तर प्रदेश को रणजी फाइनल तक का सफर तय करवाया है। घरेलू क्रिकेट में उन्होंने ने इस साल आठ मैचों में करीब 51 की औसत से 812 रन बनाए हैं और दक्षिण क्षेत्र के खिलाफ दिलीप ट्रॉफी के मैच की दोनों पारियों में उनकी जुझारू बल्लेबाजी में इस कोशिश को साफ तौर पढ़ा जा सकता है कि वे हार मानने को तैयार नहीं है।
1 comment:
बहुत अच्छा......गणतंत्र दिवस की बहुत बहुत शुभकामनाएं।
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